मुनीष भाटिया

आज मानव भौतिकतावादी दौर में जी रहा है और अपने को सर्वश्रेष्ठ देखने की होड़ में उलझता जा रहा है। दिखावटी खुशी के मायाजाल में खुद को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने की प्रवृत्ति समाज में विकराल रूप धारण कर रही है। व्यक्ति कई बार सामाजिक मानकों और दृष्टिकोणों के प्रति अत्यधिक ध्यान देता है, जिससे वह खुद को सर्वोत्तम बनाने की दिशा में उलझ रहा है। इसमें दिखावटी खुशी और असली सुख की भ्रमजाल की स्थिति पैदा हो रही है। दिखावे के युग में अपनी आय के सीमित साधनों को नजरअंदाज कर उधार लेकर लोग खुशियों को खरीद रहे हैं। सवाल है कि खरीदी गई खुशियों की उम्र कितनी होती है।

यह सत्य है कि दिखावटी खुशी और असली सुख की पहचान में कई बार कठिनाइयां हो सकती हैं। समृद्धि की परिभाषा को समझते हुए सावधानी के साथ संतुलित रहना महत्त्वपूर्ण है। समाज की छोटी इकाई व्यक्ति से लेकर समग्र स्वरूप राष्ट्र तक कर्जे से अपनी जरूरतों को पूरा करना एक चलन-सा हो गया है।

पुराने कर्ज की किश्त चुकाने के लिए नए कर्ज लेना और फिर कर्ज के दलदल में फंसते चले जाना न केवल एक इंसान की जिंदगी को प्रभावित करता है, बल्कि कुंठित मन से जीने के नतीजे में लोगों के भीतर हताशा में भी बढ़ोतरी हो रही है। कर्ज लेना और उसे चुकाने के चक्कर में व्यक्ति कभी-कभी अपने मानसिक स्वास्थ्य को खो देता है। कर्ज का सही प्रबंधन और न्यायपूर्ण प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण है, ताकि जीवन को सुरक्षित रूप से मानवाधिकारों के अनुपालन के साथ जिया जा सके।

कर्ज के बोझ से लोग अक्सर अपने जीवन को संघर्षपूर्ण बना लेते हैं। बड़ी चालाकी से बुने गए जाल और उसके चक्र में फंसने के बाद वे आर्थिक, मानसिक और सामाजिक बाधाओं का सामना करते हैं। इस स्थिति में उनकी स्वतंत्रता और खुशी प्रभावित हो सकती है और उन्हें अपने लक्ष्यों तक पहुंचने में बाधा आ सकता है। इसलिए समय रहते कर्जों को संभालना और उचित आर्थिक नियोजन करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

वर्तमान दौर में सहजता की जगह लगातार सिमटती जा रही है और अमूमन हर स्तर पर प्रतियोगिता का दौर विकसित हो रहा है, आपसी प्रतिद्वंद्विता बढ़ रही है। जबकि लोगों के आपसी व्यवहार और जीवन में सकारात्मकता होनी चाहिए, ताकि भविष्य उज्ज्वल नजर आए। मगर होता यह है कि अक्सर लोग उज्ज्वल भविष्य के चक्कर में विपरीत दिशा वाले कदम उठा लेते हैं। मसलन, साइकिल खरीदने की स्थिति में नहीं होते, मगर कर्ज लेकर कार खरीदने की सोचने लगते हैं जो कि आर्थिक बोझ को बढ़ावा देता है। आर्थिक सीमा से बाहर के खर्च लोगों को एक घेरे में जकड़ते हैं।

यह सच है कि पैसे का महत्त्व बढ़ चुका है, मगर यह भी सत्य है कि इंसान के व्यक्तित्व का मूलभूत आधार उसके गुणों, नैतिकता और सामाजिक संबंधों में होता है, न कि सिर्फ उसके पैसे या उसके कद में। धन के साथ-साथ अच्छाई और नेकी के प्रति व्यक्ति का भावनात्मक समर्थन भी महत्त्वपूर्ण है। इसलिए इस दौर में अहंकार और मानवीय संबंधों के मूल्यों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।

कर्ज लेना कई बार व्यक्ति की जरूरतों को पूरा करने के लिए होता है। हालांकि, यह भी सत्य है कि आज बहुत सारे लोग सिर्फ अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अधिक कर्ज लेते हैं, जिससे उन्हें आगे चल कर आर्थिक समस्याएं होती हैं। इसलिए समय-समय पर अपनी आर्थिक स्थिति का पुनर्विचार करना और उचित आर्थिक योजना बनाना महत्त्वपूर्ण है।

व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कर्ज लेना पड़ता है, तो इसमें कोई गलत बात नहीं है। मगर जरूरतों के मुकाबले शौक के लिए कर्ज लेना सही फैसला नहीं है। वास्तविकता यह है कि अगर एक किसान अपनी उपज को गिरवी रखते हुए अपने जीवनयापन के लिए कर्ज लेता है और उपज पर कोई संकट आता है, तो खराब स्थिति में वह उसी कर्ज को न उतार पाने की स्थिति में चला जाता है।

यह कर्ज उसकी आर्थिक स्थिति में कोई स्थायी सुधार ला पाने की क्षमता नहीं रखता है। कर्ज के इस दुश्चक्र में फिर कर्जदार और कर्जदाता के बीच संघर्ष का एक नए दौर का आरंभ होता है। इसके बाद कर्जमाफी की उभरी मांग के बाद कमजोर लोग तो पिस जाते हैं, मगर बड़ी कंपनियों को कई तरह के फायदे मिल जाते हैं।

कई बार कर्जदार अपने कर्ज की माफी के लिए सड़क और रेल मार्गों पर संघर्ष करते हैं। ऐसा करने से सार्वजनिक सुरक्षा और सामाजिक अनुशासन पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसके बजाय कर्ज के मामले में समाधान के लिए कानूनी और सामाजिक माध्यमों का सही उपयोग करना चाहिए। हालांकि पूंजीपति जब कर्ज लेते हैं तब सरकार का रुख कुछ और होता है।

जमीनी स्तर पर देखें तो अपनी आर्थिक दृष्टिकोण को संतुलित रखने के लिए कर्ज लेने की आदत में सुधार लाना महत्त्वपूर्ण है। यह आर्थिक स्थिति में सुरक्षित और स्थिर बनाए रखने में मदद कर सकता है, अधिक आत्मनिर्भर बनाने में मदद कर सकता है। संघर्ष और परिश्रम के माध्यम से शिखर को प्राप्त करने में जो आनंद होता है, वह कोई और अनुभव नहीं कर सकता।

हालांकि, जीवन के अन्य पहलुओं के माध्यम से भी हम अनेक अनुभवों और आनंद का अनुभव करते हैं, जो हमें संघर्ष की यात्रा के दौरान मिलते हैं। जीवन के हर पल को उत्सव मानने में हमें आनंद मिलता है, जिससे हमें नया संदेश और उत्साह प्राप्त होता है।