कैबिनेट फेरबदल के बाद केंद्र सरकार के कई बड़े चेहरे अहम पदों से विदा कर दिए गए। कुल 12 मंत्रियों ने इस्तीफा दिया, जिनमें से छह कैबिनेट मंत्री शामिल हैं। इस्तीफा देने वालों में एक नाम कोरोनाकाल में भारत की बचाव नीतियां तैयार करने वाले स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन का भी रहा। केंद्र सरकार ने दूसरी लहर में नाकामियों के मद्देनजर आखिरकार हर्षवर्धन को पद से हटा दिया। कहा जा रहा है कि सरकार ने यह कदम उठाकर कोरोना संभालने में हुई अपनी नाकामी को भी स्वीकार कर लिया। साथ ही अपने समर्थकों को खराब क्रम सुधारने का भरोसा भी देने की कोशिश की है।

बता दें कि डॉक्टर हर्षवर्धन ने कोरोना की पहली लहर धीमी पड़ने के बाद 7 मार्च को ऐलान कर दिया था कि देश में कोरोना के कुछ आखिरी दिन बचे हैं। लेकिन मार्च के अंतिम हफ्ते से ही कोरोना की दूसरी लहर ने सिर उठा लिया और अप्रैल आते-आते पूरे देश में ऑक्सीजन की कमी से भारी संकट की स्थिति पैदा हो गई। इस दौरान हर्षवर्धन की स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर भूमिका को काफी नुकसान पहुंचा।

बताया जाता है कि इसके बाद ही प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) और नीति आयोग की तरफ से कोरोना महामारी पर बनाए गए एम्पावर्ड ग्रुप्स के बड़े अधिकारियों ने मोर्चा संभाल लिया था और स्थिति से निपटने की योजना बनाने में जुट गए थे।

कैबिनेट में स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर हर्षवर्धन की घटती भूमिका के कई सबूत बाद में प्रधानमंत्री की बैठकों से मिले। 17 मार्च को कई राज्यों में कोरोना मामले बढ़ने के बाद पीएम और मुख्यमंत्रियों के बीच बैठक हुई थी। पीएमओ के बयान के मुताबिक इसमें गृह मंत्री ने बताया था कि किन जिलों में मुख्यमंत्रियों को कोरोना रोकने के लिए ध्यान केंद्रित करना है। वहीं कोरोनावायरस के बढ़ते केसों पर प्रेजेंटेशन देने का काम केंद्र स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण को सौंपा गया था।

इसके बाद 8 अप्रैल को भी पीएम ने कोरोना की स्थिति को लेकर मुख्यमंत्रियों के साथ बातचीत की। पीएमओ के बयान के मुताबिक, इसमें भी प्रेजेंटेशन एक बार फिर स्वास्थ्य सचिव ने ही दी। 23 अप्रैल को मोदी ने कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित 11 राज्यों के सीएम से बात की थी। इस बैठक में भी देश की कोविड टास्क फोर्स के प्रमुख और नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल ने प्रेजेंटेशन दी थी।

मोदी ने अप्रैल में दूसरी लहर के दौरान ही कई केंद्रीय अफसरों के साथ बैठकें की थीं। लेकिन इन सभी मीटिंग्स से हर्षवर्धन गायब दिखे। 4 अप्रैल और 27 अप्रैल को पीएम ने देश में महामारी की स्थिति पर समीक्षा बैठक की और इसमें प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव से लेकर कैबिनेट सचिव तक शामिल हुए। 30 अप्रैल को पीएम ने एम्पावर्ड ग्रुप्स की कार्यशैली परखने के लिए एक बैठक बुलाई। इसी तरह उन्होंने 16 अप्रैल, 22 अप्रैल और 23 अप्रैल को भी देश में ऑक्सीजन की उपलब्धि को लेकर बैठकें कीं। इन बैठकों में भी सभी बड़े अधिकारी और ऑक्सीजन उत्पादक शामिल हुए।

दूसरी तरफ इस दौरान हर्षवर्धन लगातार महामारी को संभालने में नाकामी के आरोपों का जवाब देते रहे और विपक्षी दलों पर निशाना साधने में जुटे रहे। उन्होंने दूसरी लहर के दौरान विपक्षी शासन वाले राज्यों को कोरोना को रोकने के लिए उचित कदम उठाने के लिए कहा और पिछली लहर से सीख लेने की भी बात कही।

इतना ही नहीं 7 अप्रैल को जब कुछ राज्यों की तरफ से 18 साल के ऊपर के सभी लोगों के लिए टीकाकरण खोलने की मांग की गई, तो हर्षवर्धन ने आरोप लगाते हुए कहा था कि ये राज्य अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए ध्यान बंटाने की कोशिश में जुटे हैं और लोगों में डर फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने यह बातें पीएम और राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक के बाद कही थी। इसके बाद 19 अप्रैल को हर्षवर्धन ने पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह को कड़े शब्दों में एक चिट्ठी भी लिखी थी, जिसमें उन्होंने कांग्रेस नेताओं पर उनके शासन वाले राज्यों में झूठ फैलाने और वैक्सीन को लेकर डर फैलाने का आरोप भी लगाया था।