Jammu Kashmir High Court: कश्मीरी पंडित महिलाएं गैर-प्रवासियों (Non-Migrants) से शादी करने पर क्या प्रवासी (Migrants) का दर्जा खो देती हैं? इसको लेकर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि एक कश्मीरी पंडित महिला जिसे सुरक्षा कारणों से 1989 के बाद घाटी से पलायन करना पड़ा था, वह सिर्फ इसलिए अपना ‘प्रवासी’ दर्जा नहीं खोएंगी, क्योंकि उसने एक गैर-प्रवासी से शादी कर ली है।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, 1990 के दशक में क्षेत्र में बढ़ते संघर्ष के कारण कश्मीरी पंडितों को घाटी से भागना पड़ा था। 2009 में राज्य ने प्रवासियों के लिए विशेष नौकरियों की घोषणा की ताकि उनकी कश्मीर में वापसी और पुनर्वास सुनिश्चित हो सके।

स्पेशल नौकरी योजना से संबंधित मामले में जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस मोहम्मद यूसुफ वानी की खंडपीठ ने 11 नवंबर को इस बात पर विचार किया कि क्या कश्मीर की प्रवासी महिला केवल इस आधार पर अपना दर्जा खो देगी कि उसने एक गैर-प्रवासी से विवाह किया है।

इस सवाल का जवाब देते हुए हाई कोर्ट ने कहा, ऐसा मानना ​​मानवीय स्वभाव के विरुद्ध होगा। यहां उत्तरदाता, जो महिलाएं हैं और बिना किसी गलती के उन्हें कश्मीर घाटी में अपना मूल निवास स्थान छोड़ना पड़ा, उनसे यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वे केवल प्रवासी के रूप में कश्मीर घाटी में नौकरी पाने के लिए अविवाहित रहें।

हाई कोर्ट ने आगे कहा कि यह मानना ​​उचित होगा कि प्रवास के कारण हर कश्मीरी महिला को कश्मीरी जीवनसाथी नहीं मिल पाया होगा। इसमें कहा गया है कि ऐसी स्थिति में यह मान लेना कि महिला प्रवासी के रूप में अपना दर्जा सिर्फ इसलिए खो देगी क्योंकि उसे परिवार बनाने की स्वाभाविक इच्छा के कारण मौजूदा परिस्थितियों के कारण गैर-प्रवासी से विवाह करना पड़ा, घोर भेदभावपूर्ण होगा और न्याय की अवधारणा के खिलाफ होगा।

कोर्ट ने आगे कहा कि यह भेदभाव और भी अधिक निर्लज्ज हो जाता है, क्योंकि एक पुरुष प्रवासी, इस तथ्य के बावजूद कि उसने एक गैर-प्रवासी से विवाह किया है, प्रवासी ही बना रहता है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति केवल मानव जाति में व्याप्त पितृसत्ता के कारण उत्पन्न हुई है। हालांकि, राज्य/संघ शासित प्रदेश के तहत रोजगार से संबंधित मामलों में इस तरह के भेदभाव को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।

न्यायालय केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के आदेश के खिलाफ जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें सरकार को आपदा प्रबंधन राहत, पुनर्वास और पुनर्निर्माण विभाग में दो कश्मीरी पंडित महिलाओं को कानूनी सहायक के रूप में नियुक्त करने का निर्देश दिया गया था।

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महिलाओं को अंतिम चयन सूची से हटा दिया गया था क्योंकि उन्होंने दो गैर-प्रवासियों से शादी की थी। अपील में राज्य ने कहा कि उन्होंने इस तथ्य को छुपाया था। हालांकि, महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने तर्क दिया कि गैर-प्रवासियों से विवाह करने के कारण प्रवासी की स्थिति समाप्त नहीं हो जाती। कैट के फैसले को बरकरार रखते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि ‘प्रवासी’ का दर्जा वापस नहीं लिया जाएगा।

प्रवासी वह व्यक्ति है जिसे 1989 के बाद कश्मीर घाटी से बाहर निकाल दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि इस तथ्यात्मक पहलू पर अपीलकर्ताओं द्वारा विवाद नहीं किया गया है। इस प्रकार, प्रतिवादियों को दिए गए प्रवासी दर्जे के संबंध में कोई संदेह नहीं है।

न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक स्थिति का खुलासा न करने का तर्क कोई महत्व नहीं रखता, क्योंकि नोटिस में इस आधार पर उम्मीदवारी रद्द करने का प्रावधान नहीं था। इसके अलावा, अपीलकर्ता [राज्य] यह दिखाने में सक्षम नहीं हैं कि उन लोगों के साथ कैसेअन्याय हुआ है जो इस तरह के गैर-प्रकटीकरण के कारण अन्यथा चयनित नहीं हो सके। इसलिए, यह तर्क भी खारिज किया जाता है। राज्य की अपील को खारिज करते हुए कोर्ट ने प्राधिकारियों को निर्देश दिया कि वे चार सप्ताह के भीतर दोनों महिलाओं को नियुक्ति आदेश जारी करें।

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