हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर हिमाचल प्रदेश और पंजाब के बीच ब्रिटिश काल की 110 मेगावाट की शानन हाइडल परियोजना को लेकर चल रहे कानूनी विवाद में नया मोड़ आ गया है। हरियाणा ने मामले में पक्षकार बनाए जाने का अनुरोध किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह हरियाणा द्वारा उठाया गया अभूतपूर्व कदम है, क्योंकि 1966 से पहले हिमाचल प्रदेश की तरह ही यह राज्य अविभाजित पंजाब का हिस्सा था। हरियाणा इस मामले में अपनी आवाज बुलंद करना चाहता है।

शानन परियोजना क्या है?

मंडी के जोगिंदरनगर में स्थित शानन हाइडल परियोजना को 1925 में 99 साल के लिए पंजाब को पट्टे पर दिया गया था। पट्टा समझौते पर मंडी के तत्कालीन शासक राजा जोगिंदर बहादुर और ब्रिटिश प्रतिनिधि तथा पंजाब के मुख्य अभियंता कर्नल बी सी बैटी के बीच हस्ताक्षर हुए थे। आजादी से पहले यह परियोजना अविभाजित पंजाब, लाहौर और दिल्ली को बिजली आपूर्ति करती थी। विभाजन के बाद लाहौर को बिजली आपूर्ति बंद कर दी गई और अमृतसर के वेरका गांव में ट्रांसमिशन लाइन को समाप्त कर दिया गया।

शुरुआत में 48 मेगावाट की परियोजना के रूप में डिजाइन की गई शानन परियोजना को बाद में पंजाब द्वारा अपनी बढ़ती बिजली की मांग को पूरा करने के लिए 60 मेगावाट और अंत में 110 मेगावाट तक अपग्रेड किया गया था। मौजूदा पट्टे की शर्तों के तहत यह परियोजना हिमाचल प्रदेश को 500 किलोवाट मुफ्त बिजली भी प्रदान करती है क्योंकि यह राज्य में स्थित उहल नदी से पानी खींचती है।

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पुनर्गठन के बाद पंजाब को परियोजना का नियंत्रण क्यों दिया गया?

1966 में पंजाब के पुनर्गठन के बाद शानन हाइडल परियोजना पंजाब को आवंटित की गई थी क्योंकि उस समय हिमाचल प्रदेश एक केंद्र शासित प्रदेश था। 1 मई, 1967 को सिंचाई और बिजली मंत्रालय द्वारा जारी एक अधिसूचना ने पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के तहत पंजाब को परियोजना पर कानूनी नियंत्रण प्रदान किया। हालांकि, 2 मार्च, 2024 को परियोजना का पट्टा समाप्त होने के बाद हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सुखू ने दृढ़ता से कहा कि पंजाब इस परियोजना पर दावा नहीं कर सकता। हिमाचल प्रदेश ने आरोप लगाया है कि पंजाब द्वारा परियोजना का खराब रखरखाव किया गया है क्योंकि उसने मरम्मत कार्य की उपेक्षा की है।

पंजाब ने सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा?

20 सितंबर को पंजाब ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर हिमाचल प्रदेश को शानन हाइडल प्रोजेक्ट के कब्जे और संचालन में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की। पंजाब के सिविल सूट में दावा किया गया है कि इस परियोजना का प्रबंधन पंजाब स्टेट पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (पूर्व में पंजाब स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड) द्वारा किया जाता है और इसे 1967 की अधिसूचना के तहत कानूनी रूप से पंजाब को आवंटित किया गया था। पंजाब ने यथास्थिति बनाए रखने के लिए एक अस्थायी निषेधाज्ञा का भी अनुरोध किया।

हिमाचल प्रदेश ने सुप्रीम कोर्ट में क्या तर्क दिया?

पंजाब के सिविल सूट के जवाब में हिमाचल प्रदेश ने एक याचिका दायर की, जिसमें सुप्रीम कोर्ट से पंजाब के दावों को खारिज करने का आग्रह किया गया। हिमाचल प्रदेश ने तर्क दिया कि मामले की नींव संविधान से पहले के समझौते पर आधारित है और संविधान के अनुच्छेद 131 के अनुसार यह विवाद सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। अनुच्छेद 131 सर्वोच्च न्यायालय को भारत सरकार और एक या अधिक राज्यों, एक तरफ भारत सरकार और कुछ राज्य से संबंधित विवादों को निपटाने का विशेष अधिकार देता है, यदि मुद्दा कानूनी अधिकार से जुड़ा हो। इन मामलों की सुनवाई केवल सुप्रीम कोर्ट ही कर सकता है। किसी अन्य न्यायालय को यह अधिकार नहीं है। हालांकि संविधान सुप्रीम कोर्ट को इंटर स्टेट रिवर विवादों पर अधिकार क्षेत्र से वंचित करता है।

अनुच्छेद 262 में कहा गया है कि संसद किसी भी अंतरराज्यीय नदी या नदी घाटी के जल के उपयोग, वितरण या नियंत्रण से संबंधित किसी भी विवाद के निर्णय के लिए कानून बना सकती है। ये विवाद अंतरराज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम 1956 द्वारा शासित होते हैं। इस कानून के तहत निर्णय के लिए जल विवाद न्यायाधिकरण की स्थापना की जाती है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे न्यायाधिकरण के निर्णयों को लागू करने या न्यायाधिकरण के निर्णय के खिलाफ अपील में कई अंतरराज्यीय नदी जल विवादों में हस्तक्षेप किया है। हिमाचल प्रदेश ने यह भी उजागर किया है कि 1925 का समझौता ब्रिटिश सरकार और मंडी के राजा के बीच था और मंडी राज्य कभी भी पंजाब का हिस्सा नहीं था।

केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया क्या?

लीज समाप्त होने से एक दिन पहले 1 मार्च, 2024 को, विद्युत मंत्रालय ने अंतरिम उपाय के रूप में शानन परियोजना के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। आदेश में कहा गया कि यह परियोजना के निरंतर संचालन को सुनिश्चित करने और व्यवधानों से बचने के लिए था। मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि आदेश किसी भी दावे या हितों को स्थापित नहीं करता है और पक्षों को उचित कानूनी चैनलों के माध्यम से विवाद को हल करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

हरियाणा ने आवेदन क्यों दायर किया है?

12 दिसंबर को प्रस्तुत अपने आवेदन में हरियाणा ने तर्क दिया कि उहल नदी पर स्थित शानन परियोजना (ब्यास की एक सहायक नदी) भाखड़ा बांध को भी पानी देती है। चूंकि हरियाणा की भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) में हिस्सेदारी है, इसलिए उसका तर्क है कि परियोजना पर उसका वैलिड दावा है। हरियाणा के आवेदन में पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 का भी हवाला दिया गया है, जिसमें अविभाजित पंजाब के हिस्से के रूप में इसके ऐतिहासिक संबंध पर जोर दिया गया है। हिमाचल प्रदेश के महाधिवक्ता अनूप कुमार रतन ने कहा कि हिमाचल प्रदेश हरियाणा के आवेदन का विरोध करेगा, क्योंकि यह मामला मुख्य रूप से पंजाब और हिमाचल प्रदेश के बीच का है। पंजाब द्वारा हरियाणा के कदम का विरोध किए जाने की भी उम्मीद है। हिमाचल प्रदेश 15 जनवरी, 2025 को होने वाली सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान अपनी आपत्ति दर्ज कराने की योजना बना रहा है।