विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की हाल में आई एक रपट ने गैर-संक्रामक रोगों की तरफ दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। यह रपट जहां गैर-संचारी रोगों के खतरे की गंभीरता को दर्शाती है, वहीं इनसे बचने की आवश्यकता भी बताती है। इस रपट में चेताया गया है कि गैर-संक्रामक रोग विश्व में होने वाली मौतों की प्रमुख वजह है। वर्ष 2021 में विश्व में 65.3 फीसद लोगों की मृत्यु गैर-संक्रामक रोगों के कारण हुई। सबसे ज्यादा 13 फीसद मौत की वजह हृदय रोग है। अन्य कारणों में फेफड़ों या सांस के रोग, अल्जाइमर, डिमेंशिया, मधुमेह और गुर्दे से संबंधित बीमारियां शामिल की गई हैं।
डब्लूएचओ की रपट से जाहिर है कि सिर्फ संक्रामक रोगों को नहीं, गैर-संक्रामक रोगों को भी एक चुनौती के रूप में लेने की जरूरत है। संक्रामक रोगों से तो हम सावधानी बरत कर बचने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन गैर-संक्रामक रोग कब दबे पांव आकर जकड़ लें, इसका पता नहीं चलता है। दरअसल, जन स्वास्थ्य को जितना खतरा संक्रामक रोगों से है, उतनी ही चिंता की वजह गैर-संक्रामक रोग बनते जा रहे हैं। हमारे स्वास्थ्य को जितना खतरा जीवन शैली से जुड़े गैर-संक्रामक रोगों से है, उससे ज्यादा खतरा इस बात से है कि समुदाय में गैर-संक्रामक रोगों को अपेक्षित गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है।
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डब्लूएचओ की ताजा रपट बताती है कि वर्ष 2000 से 2021 के बीच मधुमेह और गुर्दा रोगों में सर्वाधिक 95 फीसद की वृद्धि देखी गई है। अन्य संगठन भी अपने शोध और अध्ययनों से समय-समय पर गैर-संक्रामक रोगों के प्रति अपनी चिंता जाहिर करते आ रहे हैं। डब्लूएचओ इससे पहले भी अपनी एक रपट में बता चुका है कि दुनिया में कुल होने वाली मौतों में से प्रति वर्ष 75 फीसद मृत्यु गैर-संक्रामक रोगों के कारण होती हैं। गैर-संक्रामक रोग जिस तेजी से बढ़ रहे हैं और जितनी बड़ी तादाद में यह लोगों के मरने की वजह बन रहे हैं, वह निश्चय ही चिंता का विषय है।
2050 तक नौ करोड़ मौत
डब्लूएचओ द्वारा वर्ष 2022 तक के जुटाए आंकड़ों से पता चलता है कि गैर-संक्रामक रोगों का कितना बड़ा खतरा मंडरा रहा है। यानी ये रोग जिंदगियों, स्वास्थ्य प्रणालियों, समुदायों, अर्थव्यवस्थाओं और समाज को लगातार और बहुत बड़ा नुकसान पहुंचा रहे हैं। उसकी इस चेतावनी की ओर ध्यान देने की जरूरत है कि कुल स्वास्थ्य प्रगति के बावजूद गैर-संक्रामक रोगों की वजह से हो रहे भारी नुकसान के बड़े खतरे हैं। अगर यही चलन जारी रहा तो वर्ष 2050 तक हृदय संबंधी बीमारियों, कैंसर, मधुमेह और सांस संबंधी बीमारियां आदि हर साल होने वाली लगभग नौ करोड़ मौतों में से 86 फीसद के लिए जिम्मेदार होंगी।
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गैर-संक्रामक रोगों के मामले में हमारे देश की स्थिति चिंताजनक है। यहां लोगों में मधुमेह, हृदय रोग, कैंसर और फेफड़ों से संबंधित बीमारियां बढ़ रही हैं। डब्लूएचओ के मुताबिक भारत में 2019 में हुई कुल मौतों में से 66 फीसद के लिए गैर-संक्रामक रोग ही जिम्मेदार रहे। भारत मेंं 2021 में भी प्रति एक लाख लोगों में 120 लोगों को हृदय रोग के कारण जान से हाथ धोना पड़ा। हालांकि कई रोग संक्रामक नहीं हैं, फिर भी बढ़ रहे हैं और मौत का कारण बन रहे हैं। मधुमेह का प्रसार बढ़ने से भारत को ‘विश्व की मधुमेह राजधानी’ भी कहा जाने लगा है।
बढ़ते रोगों पर डब्लूएचओ की चिंता
बढ़ते मरीजों की वजह से मधुमेय की ‘राजधानी’ बना भारत, हृदय रोग से मरने वाले सबसे ज्यादा
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गैर-संक्रामक रोगों का खतरा किस कदर बढ़ रहा है, इसका अंदाजा डब्लूएचओ की चिंता से लगाया जा सकता है। डब्लूएचओ मानव स्वास्थ्य पर मंडराते खतरे से आगाह करते हुए समय-समय पर रपट जारी करता है। इसके पीछे उद्देश्य यही होता है कि लोग इस बारे में ज्यादा से ज्यादा जानें और जागरूक होकर बीमारी से बचने के कदम उठाएं, लेकिन अफसोस कि स्वास्थ्य से जुड़ी ऐसी अहम रपटें दब कर रह जाती हैं। संगठन की एक अन्य रपट दर्शाती है कि निम्न और मध्य आय वाले देशों में प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति एक डालर से भी कम अतिरिक्त निवेश कर, वर्ष 2030 तक लगभग 7.7 करोड़ लोगों को बचाया जा सकता है।
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डब्लूएचओ हमेशा गैर-संक्रामक बीमारियों की रोकथाम और उपचार के नजरिए से तत्काल उपाय करने की पुरजोर वकालत करता आ रहा है, क्योंकि दुनिया में हर दस में से सात मौतें गैर-संचारी रोगों के कारण होती हैं, जिनमें हृदय रोग, मधुमेह, कैंसर और श्वसनतंत्र रोगों सहित अन्य बीमारियां शामिल हैं। संगठन का यह भी मानना है कि बांग्लादेश, भारत, नेपाल, मिस्र, इंडोनेशिया, बोलिविया, रवांडा, सीरिया, वियतनाम, मोरक्को, मोलदोवा सहित अन्य देशों में ये बीमारियां, स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक नजरिए से एक बड़ा बोझ हैं। 30 से 69 वर्ष आयु वर्ग में, गैर-संक्रामक रोगों के कारण 85 फीसद असामयिक मौतें निम्न और मध्य आय वाले देशों में ही होती हैं।
गैर-संक्रामक बीमारियों का भारी बोझ सहने वाले देश उचित रणनीति अपनाएं
डब्लूएचओ का कहना है कि गैर-संक्रामक बीमारियों का भारी बोझ सहने वाले देश आदि उचित रणनीति अपनाएं, तो बीमारी की दिशा बदल सकते हैं और अपने नागरिकों के लिए ठोस स्वास्थ्य और आर्थिक प्रगति सुनिश्चित कर सकते हैं। अगर इस दिशा में व्यापक काम किया जाए, तो जहां गैर-संचारी बीमारियों से लोगों की रक्षा करना संभव है, वहीं इससे भविष्य में कोविड-19 जैसी संक्रामक बीमारियों का असर भी कम करने में मदद मिल सकती है। अगर किसी भी देश में आम लोग स्वस्थ होंगे, तो बीमारियों पर होने वाले खर्च में कमी आएगी। जो धन अब बीमारियों पर खर्च करना पड़ रहा है, वह विकास पर व्यय किया जा सकेगा।
विशेषज्ञ देश में फैल रहे गैर-संक्रामक रोगों की मुख्य वजह खराब जीवन शैली को मानते हैं। उनके मुताबिक तंबाकू और शराब का सेवन, शारीरिक गतिविधियों का अभाव और अच्छे आहार की कमी ऐसे मुख्य कारण हैं, जिनकी वजह से लोगों का जीवन जोखिम में पड़ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों और बड़ों में बढ़ते मोटापे के कारण उन बीमारियों का जोखिम बढ़ रहा है। लोग पैदल चलना ही छोड़ रहे हैं। आरामतलब जीवन उन्हें एक स्थान पर पड़े रहने का आदी बना रहा है। समय-समय पर जांच के अभाव में लोगों को इन बीमारियों की भनक भी नहीं लग पाती। जब तक मालूम पड़ता है, तब तक स्थिति गंभीर हो चुकी होती है।
खराब जीवन शैली, असंतुलित आहार है मुख्य वजह
मोटापे की वजह से न केवल बड़ों, बल्कि बच्चों और युवाओं में भी लीवर की समस्याएं, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हाई कोलेस्ट्रोल और पित्ताशय में पथरी की दिक्कतें सामने आ रही हैं। खराब जीवन शैली, असंतुलित आहार, शारीरिक गतिविधि में कमी और तनाव इसका कारण है। जाहिर है, गैर-संक्रामक रोगों से बचना है तो जीवन शैली में सुधार लाना होगा। अब हमें वह सब करना होगा, जिससे जीवन की गुणवत्ता बढ़े। ऐसा होने पर ही हमारा स्वास्थ्य बेहतर होगा, जो हमें गैर-संक्रामक रोगों से बचाएगा।
विशेषज्ञ देश में फैल रहे गैर-संक्रामक रोगों की मुख्य वजह खराब जीवन शैली को मानते हैं। उनके मुताबिक तंबाकू और शराब का सेवन, शारीरिक गतिविधियों का अभाव और अच्छे आहार की कमी ऐसे मुख्य कारण हैं, जिनकी वजह से लोगों का जीवन जोखिम में पड़ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों और बड़ों में बढ़ते मोटापे के कारण उन बीमारियों का जोखिम बढ़ रहा है। लोग पैदल चलना ही छोड़ रहे हैं। आरामतलब जीवन उन्हें एक स्थान पर पड़े रहने का आदी बना रहा है। समय-समय पर जांच के अभाव में लोगों को इन बीमारियों की भनक भी नहीं लग पाती। जब तक मालूम पड़ता है, तब तक स्थिति गंभीर हो चुकी होती है।