केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद के दोनों सदनों में यूपीए सरकार के 10 साल के कार्यकाल को लेकर श्वेत पत्र (White Paper) पेश किया है। इस पर शुक्रवार को लोकसभा में चर्चा होगी। श्वेत पत्र के जरिए मोदी सरकार यूपीए के 10 सालों के दौरान अर्थव्यवस्था की स्थित को एनडीए सरकार के समय से कंपेयर करेगी। श्वेत पत्र संभवतः फिस्कल पॉलिसी, मॉनेटरी पॉलिसी, ट्रेड पॉलिसी नीति और एक्सचेंज रेट पॉलिसी जैसे विभिन्न सबसेट्स को कवर करते हुए पिछले कुछ सालों में भारत सरकार की ओवर ऑल इकोनॉमिक पॉलिसी का वर्णन, मूल्यांकन और विश्लेषण करेगा।
भारत सरकार का कहना है कि 2014 में जो अर्थव्यवस्था एनडीए को विरासत में मिली, वह खस्ताहाल स्थिति में थी। बता दें कि श्वेत पत्र एक सरकारी दस्तावेज होता है जिसमें सरकार अपनी नीतियों नीतियों और उलब्धियों को हाई लाइट करने का प्रयास करेगी और उनका रिएक्शन जानने की कोशिश भी करेगी। सरकार का दावा है कि 2004 में यूपीए सरकार को वाजपेयी सरकार से मिली अर्थव्यवस्था तंदरुस्त हाल में थी और बड़े सुधार के लिए तैयार थी मगर यूपीए की सरकार ने 10 बरसों में भारत की इकॉनोमी का बुरा हाल किया।
श्वेत पत्र में क्या-क्या?
मोदी सरकार ने श्वेत पत्र में कहा कि यूपीए सरकार का सबसे बड़ा आर्थिक कुप्रबंधन बैंकिंग संकट के रूप में था। जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने कार्यभार संभाला, तब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में जी एनपीए का अनुपात 16.0 प्रतिशत था। जब उन्होंने पद छोड़ा था, तब यह 7.8 प्रतिशत था। सितंबर 2013 में, यह अनुपात सरकारी बैंकों के कमर्शियल लोन निर्णयों में यूपीए सरकार द्वारा राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण 12.3 प्रतिशत तक चढ़ गया था। वर्ष 2014 में बैंकिंग संकट काफी बड़ा था। मार्च 2004 में सरकारी क्षेत्र के बैंकों द्वारा सकल अग्रिम केवल 6.6 लाख करोड़ रुपये था। मार्च 2012 में यह 39.0 लाख करोड़ रुपये था।
कांग्रेस ने पेश किया ब्लैक पेपर
मोदी सरकार के श्वेत पत्र के खिलाफ कांग्रेस ने ब्लैक पेपर जारी किया है। इसमें मोदी सरकार के 10 साल के कार्यकाल को ‘अन्याय काल’ कहा गया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि मोदी सरकार की नीति पीएसयू को बेचने और लूटने की रही। बेरोजगारी, किसानों की स्थिति, सरकारी पदों में ओबीसी, एससी, एसटी के पद खाली होने का मुद्दा भी ब्लैक पेपर में उठाया गया। कांग्रेस का कहना है कि ये सरकार सच नहीं बताती है और आज की महंगाई की तुलना पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय से करती है।