जामिया मिल्लिया इस्लामिया में लड़कियों के देर रात आने-जाने पर बंदिश के फरमान ने नया विवाद पैदा कर दिया है। होस्टल की छात्राओं में नाराजगी तो है ही महिला संगठनों व महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने भी जामिया के इस प्रशासनिक चुस्त सर्कुलर का विरोध किया है। दिल्ली विवि और जवाहर लाल नेहरू विवि के छात्राएं भी इससे मानो स्तबध हैं। बता दें कि जामिया के हास्टलों में छात्राओं को अब आठ बजे के पहले लौट आना होगा जो पहले 10 बजे तक की समय सीमा थी।

जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रावासों में रहने वाली लड़कियों के लिए देर रात में आने-जाने को लेकर इजाजत लेने संबंधी नई व्यवस्था लागू किए जाने से छात्रों के एक वर्ग में नाराजगी है, और दबे जुबान से वो इसका विरोध कर रहीं है। इन्होंने इस कदम को ‘खास सोंच से प्रेरित ’ और ‘पक्षपातपूर्ण’ करार दिया है। दूसरी तरफ, विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि यह कदम छात्र-छात्राओं के हित को देखते हुए उठाया गया है तथा अगर कोई वाजिब जरूरत आन पड़ेगी तो छात्रावास प्रबंधन उसे देखेगा। प्रवक्ता ने कहा कि यह प्रशासनिक कदम है और इस बाबत बनी कमेटी की सिफारिश पर उठाया गया है। उन्होंने साफ किया कि देर रात आने जाने पर ‘पूर्ण’ पाबंदी नहीं है और छात्राओं को कारण बताकर आने जाने की छुट है।

प्रगति महिला संघ की पूनम कौशिक ने कहा- दिल्ली जैसे शहर में जहां रात 10 बजे तक तय भागादौड़ी होती है, सड़को पर जाम की स्थित बनी रहती है, ऐसे में जामिया जैसे संस्थान की ओर से उठाया गया यह कदम हमें सोंचने पर पजहूत करेगा कि हम कहां जा रहे हैं? कभी यहीं की छात्रा की रहीं मधुलिका ने कहा कि महानगरों में आठ बजे तक घर वापसी की समय सीमा अब्यवहारिक है। आठ बजे के बाद के समय को ‘देर रात’ मान लेना प्रशासनिक नहीं अदूरदर्शी कदम है।

भाकपा (माले) की सदस्य कविता कृष्णन ने कहा कि यह कदम महिलाओं पर अपराध बोध का दंस है। मानो अनहोनी के लिए सिर्फ वो ही जिम्मेदार हैं! दामिनी बलात्कार कांड के बाद सेंट स्टीफन, इंद्रप्रस्थ सहित कुछ संस्थानों ने ऐसे कदम उठाए थे, जिनका जोर शोर से विरोध हुआ और कई सर्कुलर वापस हुए। उन्होंने कहा, दिल्ली में लेटनाईट किसे माना जाना चाहिए? निश्चत तौर पर ‘एट पीएम’ नहीं, लेटनाईट का मतलब लेटनाईट।

बहरहाल, विश्वविद्यालय की ओर से जारी नोटिस में कहा गया है कि लड़कियों के छात्रावासों में रहने वालों को सूचित किया जाता है कि देर रात में आनेजाने (लेटनाइट) की इजाजत अब नहीं होगी। ऐसे में आपको अपने हित में इन नियमों का पालन करना होगा। छात्राओं को महीने में दो दिन परिसर से बाहर रहने की इजाजत थी क्योंकि उस वक्त रात आठ बजे की समयसीमा जरूरी नहीं थी। अब जो लड़कियां इस समयसीमा से थोड़ा वक्त ज्यादा परिसर से बाहर रहना चाहती हैं तो वो अपने स्थानीय अभिभावकों से लिखित अनुमति के साथ ऐसा कर सकती हैं।

एक छात्रा ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर कहा कि विश्वविद्यालय में लड़कियों के छात्रावास में नियम सेक्सिस्ट हैं क्योंकि लड़कों के लिए कोई समय निर्धारित नहीं है। अगर लड़कियों के लिए सख्त नियम की वजह सुरक्षा है तो फिर लड़के की सुरक्षा के बारे में क्या कहना है? अगर हम व्यस्क लड़किया कुछ भी करना चाहें तो उसे कौन रोक सकता? सहमति से किए जाने वाले किसी भी निजी कार्य के लिए समय सीमा बाधक है क्या? लेकिन रोजमरर्रा के काम निपटाने के लिए आठ बजे का कमय दिल्ली के लिए कहीं से वाजिब नहीं हो सकता। मसलन कई छात्राएं बच्चों को ट्वीशन पढा कर भी कुछ कमाती है।

कई ‘प्रोजेक्ट’ पर काम करती हैं। सबकी आर्थिक स्थिति एक जैसी कहां होती? जेएनयू छात्र संघ की पूर्व अध्यक्ष व आईसा की नेता सुचिता डे ने इसका विरोध करते हुए कहा, अगर मुद्दा सुरक्षा है तो माहौल ठीक करिए, न कि पाबंदी। यह यूजीसी के उस नियम का भी उल्लंघन है जिसमें सहा गया है कि शिक्षण संस्थान लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा, स्टूडेंट (छात्र) का मतलब छात्र और छात्रा दोनों से है।

दरअसल इस सर्कुलर ने यहां संस्थान और समाज के बीच सवाल खड़ा कर दिया है। कैंपस और घर के माहौल को पुर्नपरिभाषित करने की जमीं तैयार कर दी है। मनो विशेषज्ञों का इस बाबत कहना है कि कैंपस का अपना एक चरित्र है। यहां के मुखिए को ‘पापा-मम्मी की’ सोंच से ऊपर उठना होगा। खासकर ऐसे में जब लड़कियां ब्यस्क हैं और सामाजिक व कानूनी तौर पर जागरूक हैं, अपना भला बूरा समझने के मुकाम पर हैं।

प्रशासनिक निर्णय स्वचछंदता को रोकने के जरूर होने चाहिए लेकिन स्वतंत्रता की कीमत पर नहीं। कैंपस से बाहर की घटना के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन जिम्मेदार नहीं होता। विशेषज्ञों का कहना है कि कुलपति को कैंपस का माहौल ठीक करने पर केंद्रीत होना चाहिए, देर रात भी गार्डों की उपस्थिति दिखे। हास्टल के अंदर नियम कायदे सख्ती से लागू हों, न कि आठ बजे के बाद ही आने जाने पर अंकुश लगा दी जाए। महिलाओं के प्रति अपराध रोकने से बाबत बनी दिल्ली पुलिस के सेल के एक वरिष्ट अधिकारी ने कहा कि देखा गया है कि महिलाओं के प्रति अपराध में समय से ज्यादा सोसाइटी जिम्मेदार होती है। हालाकि देर रात में अपराधी चुस्त रहते हैं लेकिन यह समय बारह एक बजे से ढाई-तीन बजे तक का होता है।
प्रियरंजन