चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर इस समय चर्चा में हैं। हालही में पंजाब कांग्रेस में उनकी एंट्री को लेकर बयानबाजी सामने आई थी। दरअसल पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी ने कहा था कि उन्हें एआईसीसी पंजाब प्रभारी हरीश चौधरी ने सलाह दी थी कि प्रशांत किशोर को चुनावी रणनीति बनाने की जिम्मेदारी दी जाए, जिसके बाद पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा था कि ये फैसला तो आलाकमान लेगा।

ये खबर इसलिए अहम है क्योंकि इसी साल मार्च में पंजाब के तत्कालीन सीएम अमरिंदर सिंह ने घोषणा की थी कि प्रशांत किशोर उनके प्रमुख सलाहकार के तौर पर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं और उन्हें 1 रुपए का मानदेय दिया जाएगा। हालांकि अगस्त में प्रशांत किशोर ने इस पद से इस्तीफा दे दिया था।

प्रशांत की कांग्रेस में एंट्री को लेकर ‘सत्य हिंदी’ पर डिबेट हुई, जिसमें वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने कहा कि प्रशांत किशोर बिहार में फ्री हैंड चाहते थे, लेकिन लालू यादव को ये मंजूर नहीं है, क्योंकि वे नहीं चाहते कि तेजस्वी के नेतृत्व को कोई चुनौती दे।

बादल ने कहा कि लालू यादव बिहार में यूपीए सरकार का किसी कांग्रेसी से बढ़कर बचाव करते रहे हैं। ऐसे में लालू यादव ने प्रशांत किशोर को लेकर कांग्रेस आलाकमान को बहुत अनुकूल टिप्पणियां नहीं पहुंचाईं और बिहार में कांग्रेस आरजेडी को नाराज नहीं करना चाहती। यही वजह है कि प्रशांत की एंट्री को कांग्रेस ने स्थगित कर रखा है।

बादल ने ये भी कहा कि पंजाब में जो अस्थिरता नवजोत सिंह सिद्धू के स्वभाव में है, वही अस्थिरता प्रशांत किशोर में भी है। हमें ये भी देखना होगा कि प्रशांत के पास राजनीतिक अनुभव क्या है, एक बार वो पीएम मोदी के लिए चुनाव देखते हैं, फिर नीतीश कुमार के पास चले जाते हैं, इसके बाद तमिलनाडु में एमके स्टालिन के पास चले जाते हैं, फिर ममता के पास चले जाते हैं, अब शरद पवार और अखिलेश से बातें कर रहे हैं। ये उनका पेशेवर अनुबंध है, जिसे वह राजनीतिक अनुभव में जोड़ रहे हैं। उनके पास वैचारिक निरंतरता नहीं है।

बादल ने कहा कि मुझे लगता है कि यही वजह है कि कांग्रेस आलाकमान जोखिम नहीं लेना चाहेगा। प्रशांत की एक मात्र उपलब्धि ये है कि वह परसेप्शन (समझ) बेचते हैं, उसे गढ़ते हैं और उसकी मार्केटिंग करते हैं।