दिल्ली दंगों की खौफनाक तस्वीर का प्रतीक बन चुके मोहम्मद जुबैर जिस्मानी जख्मों से धीरे-धीरे उबर रहे हैं, पर उनके मन का घाव भरने में शायद लंबा वक्त लगे। जुबैर 24 फरवरी को घर लौट रहे थे कि उन्हें दंगाई भीड़ ने अपनी चपेट में ले लिया। उन्हें बुरी तरह पीटा गया। जुबैर कहते हैं कि उन्हें पीटने वाले न हिंदू हो सकते, न मुसलमान। वो तो बस दरिंदे थे।
जुबैर ने कई मीडिया संस्थानों के साथ आपबीती साझा की है। बीबीसी हिंदी से बातचीत में भी उन्होंने उस खौफनाक दिन को याद किया। उन्होंने बताया- शाही ईदगाह सदर बाजार में आयोजित इजतिमा में दुआ के बाद घर लौट रहे थे। घर में सबको खुशी थी कि वो हर साल की तरह इस बार भी परिवार के लिए कुछ लेकर आएंगे। भाई-बहनों और अपने बच्चों के लिए मैंने दिल्ली ईदगाह से हलवा-पराठा खरीदा। हमें पता चला है कि आगे (भजनपुरा के आसपास) हालात ठीक नहीं हैं। दो समुदायों के बीच लड़ाई हो रही है, जिसके चलते सार्वजनिक वाहन से रास्ते में ही उतरना पड़ा।
दिल्ली हिंसा से जुड़ी सभी खबरें पढ़ने के लिए क्लिक करें
जुबैर बताते हैं कि उस दिन भजनपुरा रोड (मजार के पास) के दोनों तरफ भीड़ एक-दूसरे पर पत्थर फेंक रही थी। हालात खराब और पथराव होता देख मैंने पीछे लौटने की कोशिश की मगर भीड़ ने देख लिया। वहां मौजूद सब किसी शिकार की तरह मुझपर झपट पड़े। किसी ने सिर पर रॉड मारी। सिर से खून बहने लगा, फिर भी एक के बाद एक रॉड पड़ती रहीं। बुरी तरह कराहते हुए मैं घुटनों के बल नीचे बैठता चला गया।
उत्तर-पूर्वी दिल्ली निवासी जुबैर बताते हैं कि इस बीच किसी ने उनके सिर पर तलवार मारने की कोशिश की, मगर किस्मत से वो उनके सिर के बजाय पीछे की तरफ लगी। जुबैर कहते हैं, ‘भीड़ जोर-जोर से जय श्रीराम के नारे लगा रही थी। दगांई कह रहे थे मारो… मुल्ला को मारो। उसके बाद मुझे होश नहीं रहा।’
बता दें कि जुबैर अहमद को उनके नाम से ज्यादा लोग नहीं पहचानते, मगर दंगाईयों के बीच घिरे उनकी एक तस्वीर दिल्ली दंगे की सबसे दर्दनाक तस्वीरों में शुमार है। एक तस्वीर, जिसमें लहूलुहान होकर जमीन पर गिरे एक शख्स को चारों तरफ से घेरकर दंगाई लाठी-डंडों से पीट रहे हैं। दिल्ली हिंसा का प्रतीक बनी इस तस्वीर में जो लहूलुहान होकर अधमरा पड़ा है, वो जुबैर ही हैं।
जुबैर पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि जिस वक्त उन्हें पीटा जा रहा था, तब पुलिसवाले घूम रहे थे। वर्दीधारी वहां टहल रहे थे। मालूम होता है जैसे वहां जो कुछ घट रहा था, उससे कोई मतलब ना हो। चांदबाग निवासी जुबैर कहते हैं, ‘जिस वक्त मुझे पीटा जा रहा था, डर मेरे अंदर तब भी नहीं था। चूंकि कुछ दरिंदे आपको सिर्फ मार सकते हैं। वो तो सिर्फ दरिंदे थे। डरना तो उन्हें चाहिए जो इस तरह का जुल्म कर रहे हैं। उसे मार रहे हैं जो सिर्फ अपने बच्चों और परिवार का जीवनयापन चलाने में व्यस्त है।’
कूलर का काम करने वाले जुबैर कहते हैं, ‘किसी भी मजहब या हिंदुओं ने मेरा साथ ऐसा किया है। मैं इस बात को नहीं कहूंगा। ऐसा करने वाला ना कोई हिंदू हो सकता है और ना ही मुसलमान हो सकता है।’ बता दें कि हिंसा में अभी तक 46 लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें 38 लोग जीटीबी हॉस्पिटल, तीन लोक नायक हॉस्पिटल, एक जेपीसी हॉस्पिटल और चार आरएमएल हॉस्पिटल से हैं।