दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों में अदालतों ने पुलिस जांच की गंभीर खामियों पर बार-बार सवाल उठाए हैं। 97 बरी मामलों में से कम से कम 17 में अदालतों ने गढ़े हुए सबूत, काल्पनिक गवाह और लिखवाए गए बयानों जैसी अनियमितताओं को उजागर किया। इन आदेशों ने जांच प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर गहरी चोट की है।

पुलिस के “निर्देश/हुक्म” पर लिखी गई शिकायतें; “काल्पनिक” गवाह; “गढ़े हुए” सबूत; जांच अधिकारी द्वारा “अतिरिक्त तथ्यों” से जोड़ा गया गवाह का बयान; एक कांस्टेबल द्वारा घटनास्थल पर एक आरोपी को देखने का “कृत्रिम दावा”; आरोपी की पहचान “संदेह के बादलों से घिरी”; और आरोपी पर “थोपे गए” मामले।

यह सिलसिला चलता ही रहता है

2020 के दिल्ली दंगों से संबंधित 97 मामलों में अब तक बरी हुए 93 मामलों में, राष्ट्रीय राजधानी की स्थानीय अदालतों ने कम से कम 17 मामलों में—यानी लगभग हर पांच में से एक मामले में – पुलिस की जांच में गंभीर अनियमितता को चिह्नित किया है। यह तथ्य द इंडियन एक्सप्रेस की एक जांच में सामने आया है।

रिकॉर्ड बताते हैं कि अगस्त 2025 के अंत तक दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज किए गए दंगा, आगजनी और गैरकानूनी सभा से जुड़े 695 मामलों में से 116 में फैसले सुनाए जा चुके हैं। इनमें से 97 मामलों में आरोपी बरी हुए और 19 मामलों में दोषसिद्धि हुई। इनमें से 93 बरी किए जाने से संबंधित रिकॉर्ड इस अखबार ने प्राप्त किए हैं।

इन पर गौर करें

कम से कम 12 मामलों में अदालतों ने पाया कि पुलिस ने “कृत्रिम” गवाह या ऐसे सबूत पेश किए थे, जो “गढ़े हुए” प्रतीत होते थे। कम से कम दो मामलों में गवाहों ने गवाही दी कि उनके बयान उनके अपने नहीं थे, बल्कि पुलिस द्वारा लिखवाए गए थे या उनमें हेरफेर किया गया था। कई अन्य मामलों में अदालतें इस निष्कर्ष पर पहुंचीं कि जांच न्याय सुनिश्चित करने के बजाय केवल मामले को बंद करने की नीयत से की गई थी। एक मामले में न्यायाधीश ने केस रिकॉर्ड में “हेरफेर” की ओर भी इशारा किया।

इतना ही नहीं, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश परवीन सिंह ने पिछले महीने न्यू उस्मानपुर पुलिस स्टेशन के एक मामले में छह आरोपियों को बरी करते हुए आदेश दिया: “जांच अधिकारी ने सबूतों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है और इसके परिणामस्वरूप उन आरोपियों के अधिकारों का गंभीर हनन हुआ है, जिनके खिलाफ शायद केवल यह दिखाने के लिए आरोप पत्र दायर किया गया था कि मामला सुलझा लिया गया है… ऐसे मामलों से लोगों का जांच प्रक्रिया और कानून के शासन में विश्वास कम होता है।”

नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध के बीच फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के दौरान कम से कम 53 लोग मारे गए और 700 से अधिक घायल हुए थे।

अदालती रिकॉर्ड बताते हैं कि जिन 17 मामलों में अदालतों ने मनगढ़ंत सबूतों के आधार पर बरी किया, उनमें दयालपुर पुलिस स्टेशन में दर्ज पांच मामले, खजूरी खास और गोकलपुरी में चार-चार मामले, और ज्योति नगर, भजनपुरा, जाफराबाद तथा न्यू उस्मानपुर में दर्ज एक-एक मामला शामिल है। ये सभी उत्तर-पूर्वी दिल्ली के थाने हैं।

इन मामलों में कड़कड़डूमा अदालतों के न्यायाधीशों ने तरह-तरह की अनियमितताओं की ओर ध्यान दिलाया। इनमें दो लगभग समान निष्कर्ष भी शामिल थे, जिनमें अदालत ने कहा कि पुलिस द्वारा पहचान परेड (टीआईपी) न कराने से यह संकेत मिला कि उन्हें “पहले से ही पता था” कि आरोपी के खिलाफ मामला “गढ़ा हुआ” है।

‘कृत्रिम’ गवाह, ‘मनगढ़ंत’ मामला

आदेश: 16 दिसंबर, 2022; प्राथमिकी: 86/20; पुलिस स्टेशन: ज्योति नगर “यहां तक कि मोहम्मद असलम नामक किसी भी व्यक्ति का वास्तविक अस्तित्व भी संदेह के घेरे में आता है। उसने कथित अपराधों को होते देखा हो, इस पर भी शंका है। उसके केवल एक काल्पनिक व्यक्ति होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।”

आदेश: 29 मई, 2023; प्राथमिकी: 223/20; पुलिस स्टेशन: खजूरी खास

“यह तथ्य कि राज्य ने शिकायतकर्ता को झूठे गवाह के रूप में पेश किया, जो आरोपी को अपराधी के रूप में पहचान सकता है, यह दर्शाता है कि अभियोजन पक्ष का यह दावा—कि आरोपी नूर मोहम्मद ने अपराध किया था—झूठा है… ऐसा प्रतीत होता है कि इस मामले को सुलझाने के लिए उसका बयान झूठा, देर से लिया गया और बाद में तैयार किया गया।

“चूंकि पुलिस ने शिकायतकर्ता की पहचान के लिए आरोपी की टीआईपी नहीं कराई थी, इसलिए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ऐसा जानबूझकर नहीं किया गया। वजह यह कि पुलिस को पहले से ही पता था कि उसका मामला मनगढ़ंत है और आरोपी को केवल इस मामले को सुलझाने के लिए अपराधी के रूप में दिखाया गया।”

आदेश: 30 मई, 2023; एफआईआर: 150/20; पुलिस स्टेशन: खजूरी खास

“यह तथ्य कि राज्य ने शिकायतकर्ता को झूठे गवाह के रूप में पेश किया, जो आरोपी को अपराधी के रूप में पहचान सकता है, यह दर्शाता है कि अभियोजन पक्ष का यह दावा—कि आरोपी नूर मोहम्मद ने अपराध किया था—झूठा है… ऐसा प्रतीत होता है कि इस मामले को सुलझाने के लिए उसका बयान झूठा, देर से लिया गया और बाद में गढ़ा गया।

“चूंकि पुलिस ने शिकायतकर्ता की पहचान के लिए आरोपी की टीआईपी नहीं कराई थी, इसलिए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ऐसा जानबूझकर नहीं किया गया। वजह यह कि पुलिस को पहले से ही पता था कि उसका मामला मनगढ़ंत है और आरोपी को केवल इस मामले को सुलझाने के लिए ही अपराधी दिखाया गया।”

आदेश: 11 अगस्त, 2023; प्राथमिकी: 209/20; थाना: खजूरी खास

“इन परिस्थितियों में यह संभव है कि अभियोजन पक्ष के गवाह-4 (कांस्टेबल रोहताश) द्वारा आरोपी नूरा को दंगाइयों के बीच देखने का दावा बनावटी था।”

आदेश: 24 अगस्त, 2023; प्राथमिकी: 79/20; थाना: दयालपुर

“जावेद की संलिप्तता की जानकारी मिलने के समय के संबंध में जांच अधिकारी संभवतः बनावटी बयान दे रहे थे… अभियोजन पक्ष-9 का ऐसा झूठा दावा दर्शाता है कि उन्होंने भीड़ को ठीक से देखने के बारे में मनगढ़ंत बयान दिया था।”

आदेश: 29 नवंबर, 2023; एफआईआर: 95/2020; पुलिस स्टेशन: गोकलपुरी

“इन पुलिस गवाहों की गवाही में हुई चूक उनके द्वारा दिए गए बयानों की एक तयशुदा पंक्ति की ओर संकेत करती है… यह स्थिति तीन कथित चश्मदीद गवाहों द्वारा घटना देखने के कृत्रिम दावे की संभावना को दर्शाती है।”

आदेश: 1 जनवरी, 2024; एफआईआर: 132/20; पुलिस स्टेशन: दयालपुर

“24.02.2020 को अकरम की पहचान के संबंध में अभियोजन पक्ष-7 का दावा कृत्रिम प्रतीत होता है।”

आदेश: 14 मार्च, 2024; एफआईआर: 125/20; पुलिस स्टेशन: दयालपुर

“जांच अधिकारी का यह दावा वास्तव में बेतुका था कि यदि अभियोजन पक्ष-20 आरोपी राज कुमार उर्फ गोले को जानता था, तो उसे बताने के लिए एक गुप्त मुखबिर की जरूरत थी। यह परिदृश्य जांच अधिकारी के दावे में कृत्रिमता को दर्शाता है।”

आदेश: 29 जुलाई, 2024; प्राथमिकी: 41/2020; पुलिस स्टेशन: गोकलपुरी
“इस मामले में अभियुक्तों की गिरफ्तारी के बाद—जब वे पहले ही गिरफ्तार हो चुके थे—अभियोगी-6 को उनकी तस्वीरें दिखाना अप्राकृतिक कृत्य प्रतीत होता है। इससे यह आभास होता है कि अभियोगी-6 को अभियुक्तों की पहचान के लिए कृत्रिम रूप से चश्मदीद गवाह बनाया गया।”

आदेश: 4 अक्टूबर, 2024; प्राथमिकी: 126/2020; पुलिस स्टेशन: गोकलपुरी

“इस मामले में अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लंबे अंतराल के बाद अभियोगी-6 और अभियोगी-8 को उनकी तस्वीरें दिखाना अप्राकृतिक कृत्य प्रतीत होता है। इससे यह आभास होता है कि दोनों पुलिसकर्मियों को अभियुक्तों की पहचान के लिए कृत्रिम रूप से चश्मदीद गवाह बनाया गया।”

आदेश: 14 मई, 2025; प्राथमिकी: 114/20; पुलिस स्टेशन: गोकलपुरी

“पहले से ही गिरफ्तार अभियुक्तों की तस्वीरें अभियोगी-9 को दिखाना अप्राकृतिक कृत्य प्रतीत होता है। इससे यह आभास होता है कि अभियोगी-9 को अभियुक्तों की पहचान के लिए कृत्रिम रूप से चश्मदीद गवाह बनाया गया।”

आदेश: 25 अगस्त, 2025; प्राथमिकी: 99/20; पुलिस स्टेशन: न्यू उस्मानपुर

“…केवल एक मामला सुलझाने के लिए अभियुक्तों पर झूठा केस थोपा गया है। अभियोगी-10, मुख्य अभियुक्त विकास, जो इस मामले का एकमात्र चश्मदीद गवाह है, इन अभियुक्तों के संबंध में पूरी तरह से अविश्वसनीय है।”

‘लिखवाए गए’ या ‘पूरक’ बयान

आदेश: 9 दिसंबर, 2022; प्राथमिकी: 115/20; पुलिस स्टेशन: जाफराबाद

“PW1 और PW2 अपराध के एकमात्र चश्मदीद गवाह हैं। दोनों ने अभियुक्तों को दंगाइयों में पहचानने से इनकार किया और कहा कि शिकायत में दिए गए विवरण… पुलिस के कहने पर उन्होंने लिखे थे।”

आदेश: 7 जून, 2023; प्राथमिकी: 108/20; पुलिस स्टेशन: दयालपुर

“इस गवाह के बयान से स्पष्ट होता है कि जांच अधिकारी ने तीनों अभियुक्तों के माता-पिता के नाम शामिल किए थे। यह स्थिति दो संभावनाएं दर्शाती है—या तो PW27 ने अदालत के सामने सही गवाही नहीं दी, या धारा 161 Cr.P.C. के तहत दर्ज उसका बयान उसकी वास्तविक जानकारी का रिकॉर्ड नहीं था, बल्कि जांच अधिकारी ने उसमें अतिरिक्त तथ्य जोड़कर तैयार किया था।”

और भी ‘गढ़े हुए’ सबूत

आदेश: 19 सितंबर, 2022; प्राथमिकी: 153/20; पुलिस स्टेशन: खजूरी खास

“…जांच अधिकारी ने संबंधित गवाह यानी PW10, जो अभियुक्तों की पहचान कर सकता था, के बारे में 02.04.2020 से पहले जानकारी होने के अपने ही बयान का खंडन किया। हैरानी की बात है कि उसने ऐसी कोई जानकारी दर्ज नहीं की… 02.04.2020 को अभियुक्तों की पहचान संभवतः बाद में सोची-समझी कार्रवाई का नतीजा थी।”

आदेश: 13 मार्च, 2024; प्राथमिकी: 181/20; पुलिस स्टेशन: भजनपुरा

“…दोनों पीड़ितों/घायल अधिकारियों द्वारा अभियुक्तों की पहचान की प्रक्रिया संदेह के घेरे में है…”

आदेश: 14 अगस्त, 2025; प्राथमिकी: 78/20; पुलिस स्टेशन: दयालपुर

“…(गवाह के) बयान से संबंधित केस डायरी में संभावित हेरफेर है।”