वैसे आम आदमी पार्टी (आप) का वजूद ज्‍यादा पुराना नहीं है, लेकिन एमसीडी चुनाव में उसका प्रदर्शन उसके अंत की शुरुआत का संकेत दे रहा है। कहा नहीं जा सकता कि आप जीवन के 16 वसंत भी देख पाएगी या नहीं? आप का यह हश्र नेताओं और जनआंदोलन को सीढ़ी बना कर राजनीति में उतरने वालों के लिए कई संकेत देने वाला है। महज कुछ साल पहले आप को विधानसभा की 70 में से 67 सीटें जि‍ताने वाली दि‍ल्‍ली की जनता ने इतनी जल्‍दी आप से मुंह क्‍यों मोड़ लिया?

राजनीति के दलदल में धंसने लगे: दरअसल, अरविंद केजरीवाल राजनीति के खिलाड़ी कभी नहीं रहे। हालात कुछ ऐसे बने कि थोड़ी बहुत ‘समाजसेवा’ करने वाला एक शख्स बड़े जनआंदोलन का प्रमुख चेहरा बन कर उभरा। इसके बाद उपजी महत्‍वाकांक्षा ने उसे नेता बना दिया। जनआंदोलन से उमड़ी जनभावनाओं और नई तरह की राजनीति करने के अतिमहत्‍वाकांक्षी और लोकलुभावन वादों के चलते जनता ने उस नेता को दिल्ली का भाग्‍यविधाता बना दिया। इसके बाद अरविंद केजरीवाल ने उल्‍टे रास्‍ते चलना शुरू कर दि‍या। राजनीति की जिस गंदगी को दूर करने के वादे के साथ वह नेता बने थे, कुर्सी मि‍लते ही खुद उसी दलदल में धंसने लगे।

समाधान देने के बजाया समस्‍या ग‍िनाना और नई मुसीबत खड़ी करना: अरविंद केजरीवाल में लोगों ने उस शख्‍स का अक्‍श देखा था जो समस्‍या का रोना नहीं रोकर उसका समाधान देगा। पर हुआ उल्‍टा। वह समस्‍या का रोना रोने लगे और समाधान नहीं दे पाने का एक से बढ़ कर एक बहाना तलाशने में लगे रहे। दिल्ली पुलिस हमारे हाथ में नहीं है, यह कह कर महिलाओं की सुरक्षा के वादे से मुकरने लगे। उल्‍टे यह कहने लगे कि दिल्ली पुलिस हमारे हाथों में आ जाए, फिर देखना। जनता नेताओं का यह रुख झेलने की आदी हो चुकी है, पर अरविंद केजरीवाल में उन्‍होंने एक सुधारक का रूप देखा था। सो, उनका पलटना जनता से बर्दाश्‍त नहीं होना स्‍वाभाविक था।

कैडर व संगठन बनाने में नाकामयाब: केजरीवाल को पार्टी बनाते ही एक राज्‍य की सत्‍ता मि‍ल गई। पर वह अभी तक कैडर और राजनीतिक संगठन बनाने में नाकमायाब रहे हैं। बिना बेस मजबूत किए वह अपना पंख फैलाते रहे। पंजाब, गोवा में विधानसभा चुनाव लड़े और गुजरात जाकर भी चुनौती देने की हुंकार भरते रहे। पर, यह भूल गए कि अब वह बात नहीं रही जो अन्‍ना आंदोलन के तुरंत बाद थी।

वादाख‍िलाफी: अरव‍िंंद केजरीवाल से लोगों को जो उम्‍मीदें थीं, वह तो वह पूरा नहीं कर सके, उन्‍होंने खुद जनता से जो वादा कि‍या उसे भी पुरा करने में नाकामयाब रहे। उन्‍होंने व‍िधानसभा चुनाव में द‍िल्‍ली में मुुुुफ्त वाई-फाई देने का वादा क‍िया। उसे पूूूूरा नहीं कर सके। उल्‍टे एमसीडी चुनाव में हाउस टैक्‍स खत्‍म करने का ऐलान कर दि‍या। पर जनता ने इस वादे पर यकीन नहीं क‍िया।

मध्‍य वर्ग को म‍िला नया नेता: अरविंद केजरीवाल मध्‍‍‍‍‍‍य वर्ग की नई उम्‍मीद बन कर उभरे थे, पर उन्‍होंने जैसे-जैसे लोगों को न‍िराश करना शुरू क‍िया, उसे भाजपा और नरेंद्र मोदी ने भुनाना शुरू किया। भाजपा ने जनता की न‍िराशा को नरेंद्र मोदी के नाम से सफलतापूर्वक भुनाया।

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