दिल्ली विधानसभा के चुनाव में सभी राजनीतिक दल अपनी अपनी जीत का दावा ठोंक रहे हैं। सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी फिर से वापसी की पुरजोर कोशिश में जुटी हैं तो उसकी मुख्य प्रतिद्वंदी पार्टी भाजपा इस बार सत्ता पर काबिज होने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती। भाजपा ने 5 फरवरी को होने वाले चुनाव में अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतारने के लिए बहुत गंभीरता दिखाई है।

साथ ही इस बार दूसरे दलों से आए नेताओं को पूरी तव्वजो देते हुए अपनी पार्टी के स्थानीय नेताओं पर बड़ा भरोसा जताया है जिनकी इलाके में ज्यादा पकड़ मानी जाती है। इतना ही नहीं अनुसूचित जाति आरक्षित सीटों और आधी आबादी की बड़ी भागीदारी सुनिश्चित करने पर भी खासा ध्यान दिया गया है। दिल्ली विधानसभा की 70 विधानसभा सीटों में से भाजपा इस बार 68 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है।

एलजेपी और जेडीयू को मिली 1-1 सीट

बाकी दो सीटों को भाजपा ने अपने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों के लिए छोड़ा है। हालांकि, पिछले 2020 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले भाजपा ने इस बार सहयोगी दलों को एक सीट कम ही दी है। जेडीयू और एलजेपी (रामविलास) को भाजपा ने बुराड़ी और देवली सीट ही दी है।

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खास बात यह है कि भाजपा ने इसमें भी गंभीरता दिखाते हुए जो देवली सीट उसको दी है, वह अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इतना ही नहीं 12 अनुसूचित जाति की आरक्षित सीटों को लेकर भी भाजपा ने बड़ी गंभीरता दिखाई है। इनमें से 4 सीटों को आम आदमी पार्टी और कांग्रेस से आए मजबूत नेताओं के पाले में डाल दिया है। इनमें पटेल नगर से राजकुमार आनंद और कोंडली से प्रियंका गौतम प्रमुख रूप से शामिल हैं।

सुरक्षित सीटों के लिए बीजेपी का बड़ा दांव

आनंद, जहां इस सीट से विधायक रहते दिल्ली सरकार में मंत्री रहे तो ‘आप’ की निगम पार्षद रहीं प्रियंका गौतम को कोंडली सीट से उतारा है। ‘आप’ पार्टी से आने वाले इन दोनों नेताओं के अलावा कांग्रेस से आए पूर्व मंत्री राजकुमार चौहान को मंगोलपुरी और पूर्व निगम पार्षद कुमारी रिंकू को सीमापुरी से उतार कर सुरक्षित सीटों पर भी बड़ा दांव खेला है।