Delhi Election 2025: ‘मैं दिल्ली हूं’ सीरीज के पांचवें पार्ट में बात 2008 के विधानसभा चुनाव की, एक ऐसा चुनाव जहां बीजेपी सत्ता वापसी की सबसे बड़ी उम्मीद लगाए बैठी थी, एक ऐसा चुनाव जहां शीला दीक्षित इतिहास रचने के दहलीज पर खड़ी थीं और एक ऐसा चुनाव जिसमें पहली बार मायावती की पार्टी बीएसपी अपनी सियासी किस्मत आजमा रही थी। सवाल कई थे, चुनौतियां भी कई सामने और सबसे बड़ा जनादेश देना था दिल्ली की जनता को।
आतंकी हमले के ठीक बाद हुआ था चुनाव
2008 का दिल्ली चुनाव उस समय हुआ था जब देश एक बड़े आतंकी हमले से ग्रसित था। 26 नवंबर को मुंबई में आतंकी हमला हुआ और फिर 29 नवंबर को दिल्ली में वोटिंग, यानी कि डर और खौफ के बीच में दिल्ली वालों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था। बीजेपी ने तो चुनाव प्रचार में इस आतंकी हमले का भी काफी जिक्र किया, जिम्मेदार तो केंद्र में बैठी यूपीए सरकार को ठहराया, लेकिन साथ में दिल्ली की शीला सरकार को भी निशाने पर लिया।
मुद्दों वाला चुनाव जिसमें आगे दिखीं शीला
दिल्ली का यह वाला चुनाव कई मायनों में काफी खास रहा। पहले शिकायतें रहती थीं कि मुद्दों वाली राजनीति नहीं होती, जरूरी मुद्दों पर वोट नहीं मांगे जाते। लेकिन दिल्ली के इस चुनाव ने उस धारणा को बदल दिया था। ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस तो शीला दीक्षित को आगे कर चुनाव लड़ रही थी, वहां भी कांग्रेस के विकास कार्य को ही चुनावी प्रचार का आधार बनाया गया। शीला चाहतीं तो काफी आसानी से अपने चेहरे के दम पर जीत हासिल करतीं। लेकिन उन्होंने ऐसा ना करके दिल्ली के विकास कार्यों को आगे कर दिया।
विकास की बात, बीजेपी करती रह गई आरोप-प्रत्यारोप
उनकी हर रैली में फ्लाइओर, हाइवे, मेट्रो का जिक्र दिखा। किस तरह से झुग्गी वालों को सस्ते आवास दिलवाए गए, इसका जिक्र रहा। पूरा चुनाव इस बात पर केंद्रित कर दिया गया कि कांग्रेस ने दिल्ली की जनता को क्या-क्या दिया। दूसरी तरफ खड़ी बीजेपी ने कहने को बिजली, पानी, महंगाई और भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया, खूब चिल्लाया, खूब प्रदर्शन किए, लेकिन उनका प्रचार आरोप-प्रत्यारोप वाला ज्यादा रहा जो तब शीला दीक्षित की साफ छवि को नुकसान नहीं पहुंचा सका। इसके ऊपर बीजेपी के साथ जो समस्या 2003 चुनाव में रही, कुछ वैसा ही हाल 2008 में भी देखने को मिल गया। इतनी अंदरूनी लड़ाई, एक दूसरे को नीचे दिखाने की ऐसी होड़ कि पार्टी का सियासी वनवास खत्म होने के बजाय और लंबा हो गया।
बीजेपी कई सीएम चेहरे, सहमति एक पर नहीं
उस चुनाव के दौरान बीजेपी में मुख्यमंत्री उम्मीदवार के कई चेहरे थे, डॉक्टर हर्षवर्धन, विजय गोयल और सबसे बड़ा सरप्राइज अरुण जेटली। इन तीन नेताओं की सबसे ज्यादा चर्चा चल रही थी, लेकिन बीजेपी ने उस जमाने में भी एक एक्सपेरिमेंट किया और चुनाव से पहले अपना सीएम फेज विजय कुमार मल्होत्रा को बना दिया। चेहरे पुराने थे, दिग्गजों में गिने जाते थे, लेकिन पार्टी के ही कई नेता उनके चयन से सहमत नजर नहीं आए। इसी वजह से प्रचार के दौरान भी कोई कॉर्डिनेशन दिखाई नहीं दिया और बीजेपी एक बार फिर कांग्रेस के हाथों हार गई।
मायावती की ताकत और दिल्ली में खुला खाता
2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 43 सीटें जीती थीं, वही बीजेपी का आंकड़ा 23 सीटों पर जाकर सिमट गया। इस चुनाव में एक सरप्राइज एलिमेंट बनकर बहुजन समाज पार्टी आई और उसने 2 सीटें अपने नाम की। उसका वोट शेयर भी 14.05 फीसदी तक जा पहुंचा था। अब मायावती का कमाल ऐसा रहा कि कई सीटों पर वे दूसरे नंबर पर भी रहीं और जानकारों ने माना इस वजह से भी बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा। अब चुनावी नतीजों में कांग्रेस के पक्ष में जनादेश गया, तीसरी बार लगातार सत्ता मिली और शीला दीक्षित ने इतिहास रच दिया। वे तब देश की पहली ऐसी मुख्यमंत्री बन गईं जिनकी लगातार तीसरी बार ताजपोशी हुई। अगर 2003 वाले दिल्ली चुनाव की कहानी पढ़नी है तो यहां क्लिक करें