India Alliance Over: लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी के विजयी रथ को रोकने के लिए विपक्षी एकजुटता की बात हुई थी। उस बातचीत के बाद ही इंडिया गठबंधन का एक स्वरूप तैयार हुआ। दावा किया गया कि पूरा विपक्ष अब एक सुर में, एक दिशा में, एक रणनीति के साथ आगे बढ़ेगा और पीएम मोदी को सत्ता से उखाड़ फेंकेगा। नतीजे आए और नरेंद्र मोदी फिर प्रधानमंत्री बने, लेकिन कम बहुमत के साथ। उस समय सभी को लगने लगा कि इंडिया गठबंधन का कुछ असर तो जरूर रहा, वोट कम बंटा तो बीजेपी की मुश्किलें भी बढ़ीं। लेकिन 15 महीने बाद स्थिति पूरी तरह पलट चुकी है, इंडिया गठबंधन बंटता दिख रहा है, बिखरता दिख रहा है।
नाम का इंडिया गठबंधन, एकता कहां?
इस समय इंडिया गठबंधन एक ऐसा गठबंधन बन चुका है जहां कोई किसी के साथ बंधने को तैयार नहीं दिख रहा। सबसे पहले दिल्ली चुनाव की ही बात होनी चाहिए जहां पहले तो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच में कोई गठबंधन नहीं हुआ, अब तो तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और उद्धव गुट ने खुलकर अरविंद केजरीवाल का समर्थन कर दिया है। इस एक समर्थन ने बता दिया है कि अब इंडिया गठबंधन कहीं नहीं दिखेगा, सिर्फ जरूरत मुताबिक सहमतियां और समझौते होंगे।
अखिलेश ने कांग्रेस को कैसे दिखाया आईना?
असल में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने दो टूक कहा था कि जो भी बीजेपी को हराएगा, सपा उसका साध देगी। दिल्ली में क्योंकि कांग्रेस के पास अभी मजबूत संगठन नहीं है, ऐसे में हमारा समर्थन आम आदमी पार्टी को रहेगा। मैं खुद आम आदमी पार्टी के साथ मंच साझा करूंगा। दिल्ली में अगर बीजेपी को कोई हरा सकता है तो वो आम आदमी पार्टी है। अब अखिलेश यादव का बयान मायने रखता है क्योंकि उन्होंने साफ-साफ कांग्रेस से किनारा कर लिया है जो दिल्ली में सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कहने को राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया में दोनों साथ हैं, लेकिन दिल्ली चुनाव के लिए केजरीवाल से ही हाथ मिलाया गया है।
कांग्रेस को सिखाना सबक, तिलांजलि विपक्षी एकता की?
कुछ ऐसा ही अंदाज टीएमसी का भी देखने को मिला है। खुद अरविंद केजरीवाल ने सोशल मीडिया पर बताया कि ममता दीदी ने उनका समर्थन किया है और उसके लिए वे उनका तहे दिल से शुक्रिया करते हैं। अब जानकार इन्हीं नेताओं के बदले रुख को अलग तरह से देखते हैं, माना जा रहा है कि कांग्रेस को पूरी तरह आइसोलेट करने की तैयारी है। दिल्ली तो बहाना है, लेकिन असल में तो कांग्रेस को रोकना है। कांग्रेस क्योंकि जितनी कमजोर होती जाएगी, विपक्षी खेमे से कई दूसरे नेताओं को उभरने का मौका मिलेगा।
लेकिन मौका भी मिल जाता अगर इंडिया गठबंधन अपने असल स्वरूप के साथ चलता रहता। तेजस्वी यादव ने तो कह दिया है कि यह गठबंधन सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए था और अब यह खत्म हो चुका है। यानी कि केजरीवाल का समर्थन कर भी तिलांजलि तो विपक्षी एकता की ही दी गई है। आइसोलेट तो कांग्रेस को करना था, लेकिन उस वजह से जितनी मेहनत के साथ कई विपक्षी नेताओं को साथ लाया गया था, वो विफल होती दिख रही है।
बिखरना कब शुरू हुआ इंडिया गठबंधन?
वैसे अगर ऐसी सियासी पिक्चर तैयार हो रही है, इसका टीजर और ट्रेलर तो काफी पहले ही देखने को मिल चुका था। टीजर आया था हरियाणा चुनाव के वक्त जब कई कोशिशों के बाद भी कांग्रेस, आम आदमी पार्टी के लिए सीटें नहीं छोड़ पाई। गठबंधन हुआ नहीं और पहली दरार रिश्तों में आ चुकी थी। उस टीजर को ट्रेलर का रूप हरियाणा चुनाव के नतीजों ने दिया। कांग्रेस हार गई, जीती हुई बाजी गंवा दी और सामने से हर बड़े नेता नेता ने राहुल गांधी और कांग्रेस को ही निशाने पर लिया। यानी कि गठबंधन में रहकर भी अपने ही साथी को घेरा गया, आलोचना की गई।
इसके बाद महाराष्ट्र के चुनाव आए, सभी को लगा कि महा विकास अघाड़ी लोकसभा में मिली लीड को भुना लेगी, महायुति की बुरी हार होगी। लेकिन जैसे ही नतीजे आए, सारे गणित फेल हो गए और महायुति को रिकॉर्ड जनादेश मिल गया। तब इंडिया गठबंधन में चर्चा हुई कि फिर कांग्रेस ने खुद को सबसे आगे रखा, उसने सपा जैसी पार्टियों को साथ लेने की कोशिश नहीं की। नतीजों के बाद ही ममता बनर्जी ने सामने से इंडिया गठबंधन को लीड करने की बात कर दी, संदेश स्पष्ट था, अगर विपक्षी एकता रखनी भी है तो उसमें कांग्रेस को साथ नहीं रखा जा सकता।
इसके बाद यूपी के उपचुनाव आए और वहां पर समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को एक सीट भी ना देकर इरादे स्पष्ट कर दिए। कहने को कांग्रेस ने ही अपने पैर खींचे, लेकिन माना गया क्योंकि उन्हें इच्छा अनुसार सीटें ही नहीं दी गईं, ऐसे में अपना दावा ही पीछे खींच लिया गया। दूसरे शब्दों में बोलें तो इंडिया गठबंधन होने के बाद भी यूपी उपचुनाव में अकेले उतरा गया, हरियाणा में कोई गठबंधन नहीं हुआ, महाराष्ट्र में सपा को साइडलाइन कर दिया और दिल्ली में फिर अकेले-अकेले ही चुनाव लड़ने का ऐलान हुआ।
दिल्ली चुनाव में यह दरारा ज्यादा साफ इसलिए दिख गई क्योंकि कांग्रेस के साथ बड़ा सियासी भेदभाव हुआ। किसी भी इंडिया गठबंधन के साथी ने उन्हें तवज्जो नहीं दी, बल्कि सामने से अरविंद केजरीवाल को सपोर्ट किया। मैसेज दिया गया कि दिल्ली में सिर्फ आम आदमी पार्टी ही बीजेपी को हरा सकती है। इस तरह से कांग्रेस के अस्तित्व तक पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया गया है।
सियासी मुद्दों पर भी एक नहीं हो पाया इंडिया
वैसे बात जब कई विवादों पर आती है, तब भी इंडिया गठबंधन अब एक नहीं दिखता है। संभल विवाद पर अखिलेश को चर्चा करनी थी, लेकिन कांग्रेस ने किनारा किया। अडानी मुद्दे को राहुल गांधी को आगे बढ़ाना था, लेकिन ममता को इससे परेशानी थी, मतलब साफ है- अपनी डफली और अपना अपना राग। अब तो तेजस्वी ने कह दिया है कि इंडिया गठबंधन खत्म हो चुका है, सामने से उमर अब्दुल्ला को पूछना पड़ रहा है- असल स्थिति क्या है। यानी कि बातचीत हो नहीं रही, सहमति बन नहीं रही और एकजुटता तो सिर्फ कागजों तक सीमित रह गई है। सवाल उठता है कि क्या राहुल गांधी के बजाए कोई और इंडिया को चला सकता है? जवाब जानने के लिए यहां क्लिक करें