दिल्ली के 21 आप विधायकों से जुड़े बिल को राष्ट्रपति की ओर से सहमति प्रदान करने से इनकार करने के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने मंगलवार को आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजनीतिक प्रतिशोध की कार्रवाई कर रहे हैं और भाजपा आप से डरी हुई है। सोमवार को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उस विधेयक को मंजूरी देने से इनकार कर दिया जिसमें आम आदमी पार्टी के उन 21 विधायकों को बचाने का प्रावधान किया गया था जिनको संसदीय सचिव नियुक्त किया गया और जिन पर अयोग्य ठहराए जाने का खतरा मंडरा रहा है। केजरीवाल ने संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने अपने विधायको को अतिरिक्त जिम्मेदारियां सौंपी हैं, लेकिन वे मुफ्त में काम कर रहे हैं।
Modiji says that Sonia Gandhiji isn’t allowing the Parl. to function because she can’t digest defeat..(ctd)-Delhi CM pic.twitter.com/pBlMnHi2PV
— ANI (@ANI_news) June 14, 2016
उनकी अधिसूचना यह कहती है कि वे सरकार से किसी पारिश्रमिक, भत्ते, सुविधाओं या सेवाओं के हकदार नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि अगर वे मुफ्त में काम कर हैं तो मोदीजी को क्या परेशानी है। अगर सभी अयोग्य ठहरा दिए जाएं और घर बैठा दिए जाएं तो उनको (केंद्र) इससे क्या मिलेगा। केजरीवाल ने कहा कि मोदी जी दिल्ली में मिली पराजय को पचा नहीं पा रहे हैं और इसलिए वे हमें काम नहीं करने दे रहे। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने सवाल किया कि दूसरे राज्यों के संसदीय सचिवों को अयोग्य क्यों नहीं ठहराया गया।
Want to ask Modiji is he not allowing Delhi Govt to function becoz he is unable to digest defeat in Delhi- AKejriwal pic.twitter.com/1DNBbzsB4W
— ANI (@ANI_news) June 14, 2016
उन्होंने कहा कि हरियाणा, पंजाब, गुजरात, पश्चिम बंगाल और देश भर में संसदीय सचिव हैं। पंजाब में संसदीय सचिवों को एक लाख रुपए महीने, कार और बंगला मिला हुआ है। लेकिन उनको अयोग्य नहीं ठहराया गया। सिर्फ दिल्ली में क्यों? क्योंकि मोदीजी आम आदमी पार्टी से डरे हुए हैं। यह पूछे जाने पर कि इस प्रक्रिया में प्रधानमंत्री की क्या भूमिका है क्योंकि विधेयक को राष्ट्रपति ने ठुकराया है तो केजरीवाल ने कहा कि राष्ट्रपति कोई फैसला नहीं करते हैं। शायद उनके पास फाइल भी नहीं जाती। फैसला सरकार की ओर से किया जाता है और इस पर गृह मंत्रालय ने फैसला किया है।
Why is Modiji only behind disqualifying Delhi’s Parl. Secy. Haryana,Nagaland,Rajasthan,Punjab,Gujarat & others have Parl Secys too: Delhi CM
— ANI (@ANI_news) June 14, 2016
दिल्ली सरकार ने दिल्ली विधानसभा सदस्य (अयोग्यता हटाने) कानून 1997 में एक संशोधन करने की पहल की थी। विधेयक के जरिए आप सरकार संसदीय सचिवों के लिए अयोग्यता प्रावधानों से ‘पूर्व प्रभावी’ छूट चाहती थी। उपराज्यपाल नजीब जंग ने विधेयक केंद्र को भेज दिया था। केंद्र ने अपनी टिप्पणियों के साथ इसे राष्ट्रपति को भेज दिया था। आधिकारिक सूत्रों ने सोमवार को बताया कि मुद्दे की समीक्षा करने के बाद राष्ट्रपति ने विधेयक को अपनी मंजूरी नहीं दी है। केजरीवाल ने 13 मार्च 2015 को अपनी पार्टी के 21 विधायकों को संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त करने का आदेश पारित किया था।
दिल्ली में हो रहे अच्छे कामों से मोदी जी घबरा रहे हैं।
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) June 13, 2016
इस मामले में आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता संजय सिंह और आशुतोष ने भी मोदी सरकार पर निशाना साधा। आप पार्टी ने भी सवाल किया कि जब पंजाब, राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात और अरुणाचल प्रदेश में संसदीय सचिव हो सकते हैं, बाकी पेज 8 पर उङ्मल्ल३्र४ी ३ङ्म स्रँी 8
तो दिल्ली में क्यों नहीं। संजय सिंह ने कहा कि मोदी दिल्ली की हार को पचा नहीं पा रहे हैं। केंद्र सरकार, केजरीवाल सरकार के प्रत्येक मामले में अड़ंगा लगा रही है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार को केजरीवाल सरकार को काम करने देना चाहिए। उन्होंने केंद्र सरकार से सवाल किया कि दिल्ली के साथ सौतेला व्यवहार क्यों किया जा रहा है। आखिर सीएम केजरीवाल से इतनी नफरत क्यों है?
एक MLA बेचारा रोज़ अपना पेट्रोल ख़र्च करके अस्पतालों के चक्कर लगाता था। बताओ क्या ग़लत करता था? मोदी जी ने उसको घर बिठा दिया।
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) June 13, 2016
आप नेता आशुतोष ने कहा कि पंजाब में ड्रग्स मोदी जी के लिए चिंता का विषय नहीं हैं। देश में दाल के दाम बढ़ रहे हैं, तो उसकी चिंता उनको नहीं है। उनको सिर्फ केजरीवाल की राह में रोड़े अटकाने की चिंता है। उन्होंने कहा कि 21 विधायक लाभ के किसी भी पद पर नहीं थे। प्रेस कांफ्रेंस में आप पार्टी के दोनों नेता उस पर जवाब नहीं दे पाए कि जब 21 विधायक लाभ के पद पर नहीं थे तो दिल्ली सरकार उन्हें लेकर विधानसभा में बिल क्यों लेकर आई।
आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों पर लाभ के पद के आधार पर सदस्यता जाने की तलवार लटके होने के बीच इस बारे में जानकारी सामने आई है कि विभिन्न राज्यों में हाईकोर्ट ने समय-समय पर किस तरह संसदीय सचिवों की नियुक्ति को रद्द किया है। दिल्ली विधानसभा सदस्य (अयोग्यता समाप्त करना) अधिनियम, 1997 में संशोधन के लिए एक विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिलने पर आम आदमी पार्टी ने मोदी सरकार पर निशाना साधा है। इसके बाद विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने की आशंका बढ़ गई है। इस बीच सरकारी अधिकारियों ने बताया कि कोलकाता हाई कोर्ट ने जून 2015 में 13 संसदीय सचिवों की नियुक्ति के लिए लाए गए विधेयक को अमान्य कर दिया था।
इसी तरह मुंबई हाई कोर्ट की गोवा पीठ ने 2009 में संसदीय सचिवों की नियुक्ति के लिए राज्य विधानसभा द्वारा पारित एक विधेयक को रद्द कर दिया था। पंजाब में 19 संसदीय सचिवों की नियुक्ति को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती मिली और मामले में अभी सुनवाई चल रही है। हरियाणा में भी चार संसदीय सचिवों की नियुक्ति को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दी गई और मामला अदालत में विचाराधीन है। हिमाचल प्रदेश में राज्य हाई कोर्ट ने नौ संसदीय सचिवों की नियुक्ति को रद्द कर दिया था। राजस्थान में हाई कोर्ट ने 13 संसदीय सचिवों की नियुक्ति पर सवाल खड़ा करते हुए उन्हें नोटिस जारी किए हैं।
तेलंगाना हाई कोर्ट ने छह विधायकों को कैबिनेट मंत्री के दर्जे पर संसदीय सचिव नियुक्त करने वाले सरकारी आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है। कर्नाटक में 10 संसदीय सचिवों की नियुक्ति को भी अदालत में चुनौती दी गई। संविधान के मुताबिक दिल्ली को छोड़कर सभी राज्यों में मंत्रियों और संसदीय सचिवों की संख्या विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 फीसद से अधिक नहीं होनी चाहिए। दिल्ली के मामले में मंत्रियों की संख्या सदस्य संख्या का 10 फीसद होनी चाहिए वहीं मुख्यमंत्री तत्कालीन शीला दीक्षित सरकार द्वारा लागू एक कानून के मुताबिक केवल एक संसदीय सचिव की नियुक्ति कर सकते हैं। दिल्ली विधानसभा में कुल सदस्य संख्या 70 है।
सरकारी अधिकारियों ने कहा कि दिल्ली में संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद से अलग करके छूट देने के प्रावधान वाले विधेयक को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की मंजूरी नहीं मिलने के बाद यह निश्चित हो गया है कि 21 विधायक चुनाव आयोग द्वारा जन प्रतिनिधि कानून के तहत अयोग्य करार दिए जाने के खतरे का सामना कर रहे हैं।
अधिकारी ने कहा, ‘चुनाव आयोग अंतिम निर्णय लेगा लेकिन देर-सबेर 21 विधायकों को संविधान के मुताबिक अयोग्य करार दिया जाएगा।’ सरकारी अफसरों के मुताबिक अन्य राज्यों और दिल्ली सरकार के कानून के बीच सबसे महत्वपूर्ण अंतर यह है कि अन्य राज्यों में एक कानून था जिसके प्रभाव में आने के बाद उसके तहत संसदीय सचिवों की नियुक्तियां की गईं।
दिल्ली में इन सचिवों की नियुक्ति के दिन कोई कानून नहीं था। दिल्ली सरकार चाहती है कि उसकी कार्रवाई को पूर्वगामी प्रभाव से कानूनी दायरे में लाया जाए जो तब तक नहीं हो सकता जब तक कि धन विधेयक नहीं हो। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सरकार के इतिहास में संभवत: यह पहला विधेयक होगा जिस पर राष्ट्रपति ने अपनी मुहर नहीं लगाई। अधिकारियों का कहना है कि यह इसलिए हुआ क्योंकि आप सरकार और केंद्र सरकार के बीच कोई परामर्श नहीं हुआ।