मनोज कुमार मिश्र
केंद्र और दिल्ली में पहले भी अलग-अलग दल की सरकारें रही हंै और उसी तरह पहले भी उपराज्यपाल केंद्र सरकार के हिसाब से बनते रहे हैं। टकराव भी कई बार हुआ लेकिन वह ज्यादा लंबा नहीं चला। न ही टकराव स्तरहीन हुआ। विधानसभा की बैठक उपराज्यपाल के नाम पर उनकी ही अनुमति से बुलाई जाती है। उसी विधानसभा में सत्ता में बैठी आम आदमी पार्टी (आप) उपराज्यपाल पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उन्हें हटाने के लिए धरना दे रही है।
आबकारी नीति में भ्रष्टाचार के आरोप की जांच शुरू होने के बाद उपराज्यपाल पर तरह-तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं। हालात ऐसे बन गए हैं कि नगर निगम का बकाया देने की मांग दिल्ली सरकार से खुद उपराज्यपाल कर रहे हैं। संभव है कि भाजपा को दिल्ली के बाद पंजाब में ‘आप’ के चुनाव जीतने के बाद आने वाले दिनों में होने वाले गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में ‘आप’ के ताकतवर बनने से चिंता हुई हो।
जबरदस्ती अपनी बात मनवाने की जिद भी इस लड़ाई का एक कारण बना है। 2013 में पहली बार 49 दिन की सरकार के समय जो वादे और दावे किए गए उसमें करीब दो हजार करोड़ रुपए की सबसिडी देकर बिजली- पानी मुफ्त करने के अलावा बाकी बातें तो हवाई ही साबित हुई। ‘आप’ नेता तो पार्टी प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले प्रधानमंत्री का उम्मीदवार मान रहे हैं। उनका आरोप है कि ‘आप’ को जीतने से रोकने के लिए भाजपा की केंद्र सरकार केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के माध्यम से ‘आप’ को परेशान कर रही है।
भाजपा का आरोप है कि इसमें मुख्यमंत्री केजरीवाल कोई भी विभाग अपने पास न रखकर भ्रष्टाचार में अपने साथियों की बलि ले रहे हैं। इसमें एक-एक करके सभी मंत्री फंसते जा रहे हैं। अब तो उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने भी एक बयान में इस बात पर एतराज किया है कि बिना मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर के उनके फाइल भेजी जा रही है। यह गलत परंपरा है। इसी तरह की लड़ाई में एक कर्मठ और ईमानदार छवि वाले आइएएस अधिकारी राजेंद्र कुमार की बलि चढ़ गई। उनपर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे। इस बार शराब घोटाले में दो आइएएस आर गोपी कृष्ण, आनंद कुमार तिवारी और अनेक अफसर निलंबित कर दिए गए हैं। इतना ही नहीं सीबीआइ और ईडी अनेक अफसरों पर भी कारवाई कर रही है।
दिल्ली में पहली बार गैर नौकरशाह विनय कुमार सक्सेना 23 मई, 2022 को उपराज्यपाल बने। उन्हें गृह मंत्री अमित शाह का बेहद करीबी माना जाता है। तब से यह टकराव ज्यादा ही बढ़ता जा रहा है। पहले ‘आप’ ने उनका स्वागत किया था और हर शुक्रवार को उनकी मुख्यमंत्री के साथ बैठक हो रही थी, लेकिन जल्दी ही उनपर दिल्ली सरकार के अधिकारों में हस्तक्षेप करने के आरोप लगाने लगी। ‘आप’ ने कई नई परंपराएं शुरू करके संवैधानिक व्यवस्थाओं को खतरे में डाल दिया। 2012 में नई पार्टी बनकर पहले 2013 में अल्पमत सरकार नियमों के खिलाफ बिना उपराज्यपाल की अनुमति से जन लोकपाल विधेयक विधानसभा में न लाने देने पर 49 दिन में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया। यह अलग बात है कि दो बार भारी बहुमत से सरकार बनने पार दोबारा जन लोकपाल की चर्चा भी नहीं की गई।
ऐतिहासिक रामलीला मैदान में सरकार का शपथग्रहण तक तो ठीक है लेकिन विधानसभा की बैठक बुलाने की जिद अधिकारियों के अथक प्रयास से पूरी नहीं हो पाई। इसी तरह छुट्टी के दिन विधानसभा की बैठक बुलाने की जिद भी सफल नहीं हो पाई। यह पता होते हुए कि एक बैठक बुलाने पर लाखों रुपए खर्च होते हैं, अधिकारियों के काफी समझाने पर इस पर चुप्पी लगाई।
तीन उपराज्यपाल बदलने के बावजूद दिल्ली सरकार से केंद्र सरकार का टकराव कम नहीं हुआ। चार जुलाई,2018 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने चार अगस्त,2016 के दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि गैर आरक्षित विषयों में दिल्ली की सरकार फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि दिल्ली सरकार का मतलब उपराज्यपाल है। तब तक दिल्ली सरकार की उपराज्यपाल से इस कदर टकराव बढ़ा थी कि उपराज्यपाल ने आरक्षिक विषयों पर सरकार और विधानसभा में चर्चा करानी तक बंद करवा दी थी।
उसके बाद पिछले साल मार्च महीने में संसद के दोनों सदनों से ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन)-2021’ विधेयक पास करवाकर उपराज्यपाल को पहले से ज्यादा ताकतवर बना दिया। इसी बदलाव के कारण हर फैसले में उपराज्यपाल की सहमति जरूरी है। ‘आप’ ने इस विवाद में पिछले उप राज्यपाल अनिल बैजल को घेरने का प्रयास किया लेकिन उसमें उसे सफलता नहीं मिली। जो हालात हैं उसमें ‘आप’ सरकार लगातार घिरती जा रही है। इस टकराव का अंत नहीं दिख रहा है। इससे दिल्ली के कामकाज काफी प्रभावित हो रहा है।
2015 से भारी बहुमत से दिल्ली में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार का तो केंद्र की भाजपा की अगुआई वाली सरकार और दिल्ली में उनकी ओर से नियुक्त उपराज्यपालों के साथ टकराव तो अंतहीन होता जा रहा है। ‘आप’ नेता अपनी सरकार का बचाव करने के साथ-साथ भाजपा पर आरोप लगा रहे हैं ताकि मुद्दा बदला जाए। इसे ‘आप’ की राजनीति का एक हिस्सा माना जाता है।
पहले चुनाव जीतने के लिए मुफ्त की रेवड़ियां (मुफ्त चीजें देने की घोषणा) पर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका पर सुनवाई शुरू हुई और उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार दुहराया तो अरविंद केजरीवाल ने इसे मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य की तरफ मोड़ने का प्रयास किया। जबकि देश भर में सरकारी स्कूलों और अस्पतालों में को पहले भी कभी पैसे नहीं लिए जाते थे। उसी तरह शराब घोटाले का मुद्दा आया तो पहले भाजपा शासित गुजरात में अवैध शराब के कारोबार का मुद्दा उठाया गया और बात बनती न देख आप को तोड़ने की साजिश का आरोप लगाया जाने लगा।
भाजपा ने कई राज्यों में ऐसा किया भी है, इसलिए यह भी मुद्दा चर्चा में आ गया। उपराज्यपाल पर खादी बोर्ड के अध्यक्ष रहते हुए नोटबंदी में चौदह सौ करोड़ रुपए बदलवाने का आरोप लगाया गया, जिसके खिलाफ उपराज्यपाल विनय सक्सेना ने आप नेताओं के खिलाफ अवमानना का नोटिस भेजा है।