राजधानी दिल्ली के प्रशांत विहार इलाके में विस्फोट की घटना ने एक बार फिर यहां की सुरक्षा-व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाया है। पिछले दो महीने में यह दूसरा विस्फोट है, जिससे कोई बड़ा नुकसान तो नहीं हुआ, मगर इससे यह पता चलता है कि किसी आपराधिक समूह के लिए ऐसा करके बचे रहना कितना आसान है। सवाल है कि निगरानी से लेकर पुख्ता कानून-व्यवस्था के दावे के बावजूद यहां नागरिकों के बीच बढ़ती असुरक्षा की स्थिति क्यों बन रही है।
क्या यह पुलिस महकमे की एक बड़ी नाकामी का सबूत नहीं है? एक सप्ताह पहले ही गृहमंत्री ने राजधानी की कानून-व्यवस्था की समीक्षा के लिए बैठक बुलाई थी, जिसमें उन्होंने हर नागरिक को सुरक्षित महसूस कराने के महत्त्व को रेखांकित किया था और अधिकारियों से दो टूक कहा था कि सुरक्षा के प्रति जनता में विश्वास कायम करना पुलिस का दायित्व है। कोई भी चूक बर्दाश्त न करने की उनकी स्पष्ट चेतावनी के बावजूद अपराधी खुलेआम वारदात कर रहे हैं, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? इस पर सवाल स्वाभाविक इसलिए है क्योंकि दिल्ली की कानून-व्यवस्था की लगाम एक तरह से केंद्र सरकार के हाथों में होती है।
गौरतलब है कि दिल्ली के जिस प्रशांत विहार इलाके में गुरुवार को धमाका हुआ, उसी क्षेत्र में पिछले महीने एक स्कूल के बाहर विस्फोट हुआ था। यह साफ है कि अपराधियों के भीतर पुलिस का खौफ नहीं है। दिल्ली की कानून व्यवस्था पर आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच राजनीतिक टकराव शुरू से रहा है। मगर ताजा घटना के बाद पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस पर सवाल उठाया है, तो इसे केवल राजनीतिक चश्मे से देखने की जरूरत नहीं है। यह सच्चाई है कि दिल्ली में लोगों के भीतर असुरक्षा की भावना बढ़ रही है।
मामूली बातों पर हत्या जैसी घटनाओं से लेकर अन्य जघन्य अपराधों की घटनाओं में एक तरह की निरंतरता बनी हुई है और अपराधी तत्त्वों में पुलिस का कोई खौफ नहीं दिखता। जाहिर है कि कानून-व्यवस्था लागू करने वाली एजंसियां सुस्त हैं। देश की राजधानी होने के नाते यहां की सुरक्षा-व्यवस्था एक संवेदनशील विषय है। लेकिन आम आपराधिक घटनाओं से लेकर विस्फोट तक की घटनाएं अगर इस तरह बदस्तूर रहीं तो दिल्ली की कैसी छवि बनेगी?