Delhi Elections Results: दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए शनिवार को नतीजे आने हैं। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी दिल्ली में भाजपा से मिल रही कड़ी चुनौती का सामना करते हुए लगातार चौथी बार सत्ता में आने की कोशिश कर रही है। वहीं एग्जिट पोल्स बीजेपी की प्रचंड जीत का दावा कर रहे हैं। शनिवार को घोषित होने वाले परिणाम बताएंगे कि क्या सत्तारूढ़ आप ने सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए पर्याप्त प्रयास किए हैं या फिर बीजेपी ने उसका किला ध्वस्त कर दिया है।
इस चुनाव में कई अहम कारक हार और जीत की वजह बन सकते हैं। इसमें कांग्रेस और अन्य दलों की मौजूदगी से लेकर अनुसूचित जाति (एससी)-आरक्षित सीटों और मुस्लिम बहुल सीटों पर प्रदर्शन समेत महिलाएं और मध्यम वर्ग का वोट सबसे अहम माना जा रहा है, जो कि 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा के नतीजों को तय करने में इस बार अहम भूमिका निभाने वाला हो सकता है।
किसका कितना वोट शेयर
1993 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी को अपनी पहली और एकमात्र जीत मिली थी, जो राजधानी की विधानसभा के गठन के बाद पहली बार हुआ था, तब से पार्टी का वोट शेयर 30% से 40% के बीच रहा है। पार्टी पहले 1998 से 2008 तक कांग्रेस से पीछे रही, फिर 2013 में त्रिशंकु विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन सरकार बनाने में विफल रही और फिर अगले दो चुनावों में AAP से पीछे रह गई।
बीजेपी को 2015 में 32.19% से 2020 में 38.51% तक अपने वोट शेयर में उल्लेखनीय उछाल से कुछ राहत मिलेगी, भले ही उसकी सीटें केवल तीन से आठ तक बढ़ी हों। AAP का वोट शेयर 2015 और 2020 के बीच स्थिर रहा, जो 54.34% से 53.57% हो गया। इसके विपरीत पिछले साल लोकसभा में भाजपा के मजबूत प्रदर्शन ने, लगातार तीसरी बार सभी सात संसदीय सीटें जीतकर आप और कांग्रेस के गठबंधन को करारा झटका दिया था।
ACB ने अरविंद केजरीवाल को दिया नोटिस, पूछे ये 5 सवाल
कांग्रेस फिर कर रही दिल्ली में विस्तार की कोशिश
कांग्रेस और आप, जो कि इंडिया ब्लॉक के सदस्य हैं। गठबंधन की शर्तों पर सहमत नहीं हो पाए, इसलिए यह पुरानी पार्टी आप के वोट शेयर में सेंध लगा सकती है। कांग्रेस आप के खिलाफ अपने अभियान में आक्रामक रही है और अगर उसे दिल्ली में किसी तरह का पुनर्गठन करना है, तो यह आप की कीमत पर होने की संभावना है, क्योंकि दोनों पार्टियां मतदाताओं के लगभग एक ही वर्ग के लिए होड़ कर रही हैं। इस वोट विभाजन से BJP को लाभ हो सकता है। 1998 के बाद से कांग्रेस का वोट शेयर लगातार घट रहा है, जो 2008 में 40.31% से गिरकर 2013 में 24.55% और फिर 2015 में 9.65% और 2020 में 4.26% हो गया।
मध्यम वर्ग होगा बड़ा फैक्टर
दिल्ली का मध्यम वर्ग इस चुनाव अभियान का केंद्र बन गया है। AAP ने स्वीकार किया है कि उसे सिर्फ़ गरीबों की पार्टी के रूप में देखा जाता है, इसलिए उसने 2025-26 के केंद्रीय बजट के लिए कई मांगों के साथ मध्यम वर्ग घोषणापत्र लॉन्च किया है , ताकि उसका ध्यान “वंचितों” से मध्यम वर्ग पर केंद्रित हो सके।
मध्यम वर्ग से सबसे ज़्यादा जुड़ी पार्टी BJP की नज़र भी इस वर्ग पर है। 1 फरवरी को संसद में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली तीसरी सरकार का पहला पूर्ण बजट पेश करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मध्यम वर्ग को ध्यान में रखते हुए कई घोषणाएं कीं, जिसमें यह घोषणा भी शामिल थी कि 12 लाख रुपये तक की सालाना आय पर कोई आयकर नहीं देना होगा। इसे बीजेपी के लिए मध्यम वर्ग को लुभाने का एक अहम माना जा रहा था।
केजरीवाल के घर पहुंची ACB, संजय सिंह से दफ्तर में पूछताछ जारी
महिला वोटर्स है अहम
महिला वोटर्स की बात करें तो पूरे देश में महिलाएं एक महत्वपूर्ण वोट आधार के रूप में उभरी हैं जो चुनावों को प्रभावित करने में सक्षम हैं। हाल ही में महाराष्ट्र में महिलाओं को भत्ता देने वाली लड़की बहन योजना की लोकप्रियता ने बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन को सत्ता में आने में मदद की। 2020 में, दिल्ली में AAP की महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा योजना उसकी जीत में महत्वपूर्ण रही थी।
इस बार राजधानी में पार्टियों ने नई योजनाओं के साथ महिला मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए हरसंभव प्रयास किया है। सत्तारूढ़ आप ने कर न चुकाने वाली महिलाओं को 2,100 रुपये की मासिक वित्तीय सहायता देने की पेशकश की है। आप की योजना का मुकाबला करते हुए भाजपा और कांग्रेस ने 2,500 रुपये की मासिक वित्तीय सहायता का वादा किया है। यह महिलाओं के लिए लक्षित अन्य योजनाओं के अलावा है, जिसमें सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडर से लेकर बेहतर पेंशन और अन्य स्वास्थ्य और शिक्षा संबंधी अनुदान शामिल हैं।
BJP या AAP में कोई भी जीते चुनाव, दिल्ली में बनने वाला है एक बड़ा रिकॉर्ड
दलित वोटर्स भी होंगे अहम
पिछले चुनावों में दिल्ली की 12 एससी आरक्षित सीटों पर पहले कांग्रेस और फिर आप ने कब्जा किया है। 1993 में आठ एससी सीटें जीतने के बाद से बीजेपी ने कभी भी दो से ज़्यादा आरक्षित सीटें नहीं जीती हैं। एससी सीटों पर उसका वोट शेयर भी 1993 के 36.84% से ज़्यादा नहीं है। 1998 से 2008 के बीच कांग्रेस ने अनुसूचित जातियों की ज़्यादातर सीटें जीतीं और 2013 के बाद से AAP ने इन सीटों पर अपना दबदबा कायम कर लिया है। वोट शेयर के मामले में भी कांग्रेस और AAP दोनों ने कई चुनावों में इन सीटों पर 50% से ज़्यादा वोट हासिल करने में कामयाबी हासिल की है।
मुस्लिम वोट भी है अहम
दिल्ली में अल्पसंख्यक वोट निर्णायक हो सकते हैं। उत्तर पूर्व और मध्य दिल्ली जिलों में जहां मुस्लिम आबादी का एक बड़ा हिस्सा है। दिल्ली की आबादी में मुस्लिमों की हिस्सेदारी 12.9% है, जबकि उत्तर पूर्व और मध्य दिल्ली में उनकी हिस्सेदारी क्रमशः 29.3% और 33.4% है। दिल्ली में 23 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम आबादी कम से कम 10% है। 2015 से 2020 के बीच इन सीटों पर AAP का वोट शेयर 55% के आसपास स्थिर रहा, जबकि बीजेपी का वोट शेयर 29.44% से बढ़कर 34.57% हो गया और कांग्रेस का वोट शेयर 12.81% से घटकर 5.57% हो गया। दिल्ली चुनाव से जुड़ी अन्य खबरों के लिए जुड़े रहे इस लिंक पर क्लिक करें।