सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्रवासी मजदूरों से संबंधित कानूनों के संचालन का हलफ़नामा न देने के लिए दिल्ली और महाराष्ट्र की सरकारों को जमकर फटकार लगाई। अदालत ने 31 जुलाई को प्रवासी मजदूरों की समस्या को स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्यों को हलफ़नामा देने को कहा था।  इस हलफनामें में अदालत ने प्रवासियों के कल्याण पर आदेश पारित करते हुए राज्यों को प्रवासियों की संख्या, उनके कौशल, रोजगार की प्रकृति, प्रवासियों के लिए योजनाओं पर हलफ़नामा दायर करने का निर्देश जारी किया था।

दिल्ली और महाराष्ट्र की लापरवाही पर सख्त नाराजगी जाहिर करते हुए न्यायमूर्ति अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी, एम आर शाह ने इन्हें अंतर्राज्यीय प्रवासी कामगार अधिनियम 1979, निर्माण श्रमिक अधिनियम 1996, और असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 के नियमन सम्बन्धी एफिडेविट न दे पाने पर डांट लगाई।  इसके साथ ही कोर्ट ने यह टिप्पणी भी की कि महाराष्ट्र और दिल्ली में ही सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर रहते है।

अदालत ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा कि कोर्ट के द्वारा एफिडेविट देने का आदेश देने का उद्देश्य ये था की वो जान सके कि सरकारें मजद्दोरों के लिए इन कानूनों के तहत क्या कर रहीं हैं।  सम्बंधित राज्य और केंद्र- शासित प्रदेशों के द्वारा हलफ़नामा न दिया जाना साफ़ जाहिर करता है कि वे प्रवासी मजदूरों के कल्याण के लिए कानूनों को लागू करवाने में गभीर नहीं हैं।

बता दें कि इन तीनों कानूनों को कल्याणकारी कानून के रूप में जाना जाता है।  इसमें राज्य प्रवासी मजदूरों का पंजीकरण का कार्य करते हैं जिससे उन्हें सरकार द्वारा दी जानी वाली लाभ की राशि सीधे उनके खातों में भेजी जाती है। इस विषय पर हुई सुनवाई के बाद सर्वोच्च अदालत ने राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को इस हलफनामें को दाखिल करने के लिए 2 सप्ताह का और समय दिया है।