कई मौकों पर पर्यावरणविदें और पर्यावरण वैज्ञानिकों ने केदारनाथ घाटी में हेलिकाप्टर सेवा पर सवाल उठाए और इससे हिमालय क्षेत्र में पर्यावरण पर बुरे प्रभाव को लेकर कई तथ्य भी पेश किए। इन सब तथ्यों को नजरअंदाज कर दिया गया और इस तरह की सेवा को जारी रहने दिया गया। 12 साल में हेलिकाप्टर हादसों में 32 लोगों की जान जा चुकी है।
केदार घाटी की भौगोलिक परिस्थितियां बेहद विषम हैं और यहां का मौसम हरदम बदलता रहता है। केदार घाटी में हेलिकाप्टर की उड़ानों के नियमों को लेकर उल्लंघन की बात समय-समय पर उठती रही है। नागरिक उड्डयन महानिदेशालय ने केदार घाटी में सेवाएं दे रहीं कई कंपनियों को नियमों का उल्लंघन करने को लेकर चेतावनी भी जारी की। कुछ महीने पहले पांच हेलिकाप्टर कंपनियों पर नियमों का उल्लंघन करने पर पांच लाख का जुर्माना भी किया गया था। दो हेलिकाप्टर कंपनियों के लाइसेंस भी तीन महीने के लिए निलंबित कर दिए गए थे। इसके बावजूद कंपनियां नियमों की अनदेखी से बाज नहीं आ रही हैं। जांच पड़ताल में यह सामने आया है कि अब तक सात हेलिकाप्टर कंपनियां नियमों की अनदेखी कर चुकी हैं।
केदारनाथ घाटी में हेली सेवा शुरू करने के लिए कई कड़े नियम बनाए गए हैं। नागरिक उड्डयन महानिदेशालय से इस सेवा के लिए इजाजत लेनी पड़ती है। पायलट को भी हवाई सेवा की अनुमति महानिदेशालय ही देता है। राज्य का नागरिक उड्डयन विभाग इन सब सेवाओं पर नजर रखता है। उसके नियंत्रण में ही हेली सेवाएं संचालित होती हैं। इस समय बारह हेली सेवाएं तीर्थयात्रियों को बाबा केदारनाथ के दर्शन कराने के कार्य में लगी हुई हैं। ये सभी निजी कंपनियां हैं।
पर्यावरणविद् मानते हैं कि पर्यावरण से संबंधित नियमों को ताक पर रख क्षेत्र में लगातार हेलिकाप्टर उड़ान भर रहे हैं। इससे पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है। क्षेत्र के वन्य जीवों के जीवन पर लगातार खतरा मंडरा रहा है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण और भारतीय वन्यजीव संस्थान तथा केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग कई हेली कंपनियों को नोटिस भेज चुका है।
केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग ने जून 2013 के केदारनाथ हादसे के बाद 2013-2014 में केदारनाथ क्षेत्र में यात्रा सीजन के दौरान केदारघाटी के गुप्तकाशी, फाटा, बडासू, शेरसी, सोनप्रयाग, गौरीकुंड से लेकर केदारनाथ हेलीपैड तक हेलिकाप्टर की ध्वनि व ऊंचाई का अध्ययन वन्यजीव एवं पर्यावरण विशेषज्ञों के जांच दल से करवाया था। जांच में हेलीपैड पर हेलिकाप्टर की न्यूनतम ध्वनि 92 डेसीबल व अधिकतम 108 डेसीबल मापी गई थी। जांच रिपोर्ट में पाया था कि कई हेलिकाप्टर इस वन्य जीव क्षेत्र में उड़ान भरते हुए नियमों का घोर उल्लंघन कर रहे हैं।
आठ दुर्घटनाओं में 32 तीर्थयात्रियों ने गंवाई जान
केदारनाथ घाटी में 2003 में रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि से केदारनाथ मंदिर के लिए तीर्थयात्रियों को दर्शन कराने के वास्ते हेली सेवाएं शुरू की गई थीं। उसके बाद फाटा ,गुप्तकाशी, सोनप्रयाग तथा अन्य क्षेत्रों से केदारनाथ धाम के लिए हेली सेवाएं शुरू की गर्इं। इस समय रोजाना ढाई सौ से ज्यादा हेलीकाप्टरों की उड़ान केदारनाथ धाम के लिए होती हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि हेलिकाप्टर सेवाएं एक इंजन से ही संचालित हो रही हैं।12 जून 2010 में पहली दुर्घटना हुई थी। तब से अब तक आठ हेलिकाप्टर दुर्घटनाओं में 32 तीर्थयात्री और पायलट अपनी जान गंवा चुके हैं।
सबसे बड़ी हेली दुर्घटना
सबसे बड़ी बात यह है कि केदारनाथ हादसे के समय 2013 में लगातार तीन हेलिकाप्टर दुर्घटनाएं केदारनाथ घाटी क्षेत्र में हुईं और 2013 में क्षेत्र में आई आपदा के दौरान सेना के दो हेलिकाप्टर एम आई- 17 बचाव और राहत कार्य करते हुए दुर्घटनाग्रस्त हो गए। इसमें भारतीय सेना, इंडिया रेस और आइटीबीपी के 20 जवानों की मौत हो गई थी जो इस क्षेत्र की सबसे बड़ी हेली दुर्घटना थी।
हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रोफसर एमएम सेमवाल का कहना है कि हेली सेवाओं की वजह से केदार घाटी के पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंच रहा है और वन्य जीवों के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है। केदारनाथ में हेली कंपनियां, भारतीय वन्य जीव संस्थान के मानकों व एनजीटी के नियमों का पालन नहीं कर रही हैं। क्षेत्र में लगातार ध्वनि और वायु प्रदूषण इन हेली सेवाओं की वजह से बढ़ता जा रहा है।
हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के पूर्व प्रोफेसर आरती शर्मा का कहना है कि 2013 में केदारनाथ में आई प्राकृतिक आपदा के बाद 2016 में भारतीय वन्य जीव संस्थान ने इस पूरे क्षेत्र का अध्ययन करवाया था। इसके बाद केदारनाथ घाटी के लिए हेली यात्रा में हेलिकाप्टर के लिए नदी तल से 600 मीटर की ऊंचाई पर उड़ान व 50 डेसीबल ध्वनि का मानक तय किया गया था, परंतु देखने में आया है कि हेली कंपनियां अपने खर्चों को कम करने के लिए इन मानकों का पालन करने से बचती रही हैं।
जो तीर्थ यात्रियों की जान को जोखिम में डालने वाला सबसे बड़ा कदम है, क्योंकि 600 मीटर की ऊंचाई पर हेलिकाप्टर उड़ाने से र्इंधन अधिक लगता है और इससे हेली कंपनियों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।
भारतीय पर्यावरण विज्ञान संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रोफेसर बीडी जोशी का कहना है कि समुद्रतल से 11,750 फुट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ धाम के लिए तीर्थ यात्रियों को लाने-ले जाने वाले हेलिकाप्टर मंदाकिनी नदी के ऊपर संकरी घाटी से गुजरते हैं और यह 15 से 20 मिनट की यात्रा बेहद कठिन और जोखिम भरी होती है, क्योंकि इस क्षेत्र का मौसम पल-पल बदलता है।
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के जंतु एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर दिनेश चंद्र भट्ट का कहना है कि केदारनाथ धाम के दर्शन के लिए हेली सेवाएं केदारनाथ घाटी के गुप्तकाशी और फाटा तथा अन्य स्थानों से शुरू होती हैं जो इस संकरे क्षेत्र की पहाड़ियों से होकर गुजरती हैं जो बेहद खतरनाक है। इसमें भारतीय वन्य जीव संस्थान द्वारा निर्धारित मानकों का पालन न किया जाना तीर्थ यात्रियों की जान से खिलवाड़ करना है।केदारनाथ हेली सेवा की व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता के कारण ये घटनाएं घट रही हैं इसलिए हेली सेवाओं को तय मानकों का पालन कराने के लिए और अधिक सख्ती बरतने की जरूरत है।