पिछले सप्ताह के स्तंभ (जनसत्ता, रविवार, 14 अप्रैल) में, मैंने इस तथ्य पर अफसोस जताया था कि मैं कांग्रेस और भाजपा के घोषणापत्रों की तुलना करने में असमर्थ हूं। उसी रविवार को सुबह साढ़े आठ बजे भाजपा ने अपना घोषणापत्र जारी किया, जिसका शीर्षक है ‘मोदी की गारंटी’। उससे यह पूरी तरह स्पष्ट हो चुका है कि भाजपा अब राजनीतिक पार्टी नहीं, एक पंथ का नाम है। संकल्प पत्र जारी होने के साथ ही पूर्ववर्ती राजनीतिक दल में पंथ-पूजा ‘मूल’ सिद्धांत के रूप में स्थापित हो गया है।
यह संकल्प पत्र भाजपा-एनडीए सरकार के पिछले 5-10 वर्षों में किए गए कार्यों के बखान का संचयन है। भाजपा ने अपने उन सभी चल रहे कार्यक्रमों को उनकी खामियों और विसंगतियों के साथ फिर से तैयार किया और सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना, उन्हें आगे बढ़ाने की कसम खाई है।
मोदी की गारंटी अनेक गलत किस्म की दाहक क्षमताओं से युक्त है। उनमें सबसे प्रमुख हैं- समान नागरिक संहिता (यूसीसी) और एक राष्ट्र एक चुनाव (ओएनओई)। दोनों को, या कम से कम एक को, प्रमुख संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी; लेकिन भाजपा नेतृत्व इसे लेकर निश्चिंत दिख रहा है। उसका पहला उद्देश्य एक ऐसे राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे का निर्माण करना है, जिसमें सभी शक्तियां केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री में निहित होंगी।
दूसरा, जहां तक संभव हो सके, सामाजिक और राजनीतिक व्यवहार के संदर्भ में आबादी को एकरूप बनाना है। तीसरा उद्देश्य, तथाकथित भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के लिए प्रधानमंत्री की ‘व्यक्तिगत प्रतिबद्धता’ को लागू करना है, जो विपक्षी दलों और राजनेताओं के खिलाफ लक्षित है। मोदी की बाकी गारंटियों में पिछले दस वर्षों के दावों और दंभों का थकाऊ दोहराव है। पुराने नारे किनारे कर दिए गए हैं और नए नारे गढ़े गए हैं। मसलन, अब इसमें अच्छे दिन आने वाले हैं की जगह विकसित भारत शामिल कर लिया गया है। मानो दस वर्षों में जादुई बदलाव हो गया हो और देश विकासशील से विकसित बन गया हो। यह एक हास्यास्पद दावा है। आइए, मोदी की गारंटी, 2024 में मुख्य वादों की ओर बढ़ते हैं।
समान नागरिक संहिता
भारत में कई नागरिक संहिताएं हैं, जिन्हें कानूनी तौर पर ‘रिवाज’ के रूप में मान्यता प्राप्त है। हिंदू, मुसलिम, सिख, ईसाई, पारसी और यहूदियों की संहिताओं में अंतर जगजाहिर है। विभिन्न समुदायों के अलग-अलग धार्मिक त्योहार होते हैं; विवाह, तलाक और गोद लेने के विभिन्न नियम और रीति-रिवाज हैं; उत्तराधिकार के विभिन्न नियम और जन्म तथा मृत्यु पर मनाए जाने वाले अलग-अलग रीति-रिवाज हैं। पारिवारिक संरचना, खान-पान, पहनावे और सामाजिक व्यवहार में अंतर होता है। जो बात लोगों को बहुत अच्छी तरह से पता नहीं है, वह यह कि प्रत्येक धार्मिक समूह के भीतर, समूह के विभिन्न वर्गों के बीच भी कई अंतर होते हैं।
दरअसल, यूसीसी समरूपीकरण की एक मीठी वचनबद्धता है। राज्य को समुदायों को एकरूप बनाने की दिशा में कदम उठाना ही क्यों चाहिए? किस समूह के किन पुरुषों और महिलाओं को समान नियम लिखने-बनाने का काम सौंपा जाएगा? क्या ऐसा समूह लोगों के बीच व्याप्त अनगिनत मतभेदों को प्रतिबिंबित करने के लिए पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व कर सकेगा? समरूपीकरण हर व्यक्ति को एक ही सांचे में ढालने और नागरिकों के जीवन को नियंत्रित करने का एक शरारती प्रयास है- ठीक उसी तरह जैसे चीन ने सांस्कृतिक क्रांति के दौरान किया और बुरी तरह विफल हुआ था। यूसीसी मानव की स्वतंत्रता की भावना का अपमान है और यह भारत की सुपरिचित ‘अनेकता में एकता’ को मिटा देगा।
व्यक्तिगत कानूनों में सुधार आवश्यक है, लेकिन सुधारों को प्रज्वलित करने वाली चिंगारी समुदाय के भीतर से आनी चाहिए। राज्य-निर्मित कानून केवल समुदायों द्वारा स्वीकृत या मौन रूप से स्वीकृत सुधारों को मान्यता दे सकता है। यूसीसी विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों के बीच कड़वी बहस को जन्म देगा, बहस से कटुता, गुस्सा और नाराजगी पैदा होगी और नाराजगी संघर्ष में बदल जाएगी, जो हिंसक हो सकती है।
एक राष्ट्र एक चुनाव
एक राष्ट्र एक चुनाव क्षेत्रीय मतभेदों, प्राथमिकताओं और संस्कृतियों को मिटाने का एक परोक्ष प्रयास है। भारत की लोकतांत्रिक संरचना संयुक्त राज्य अमेरिका की संस्थाओं से प्रेरित थी। संयुक्त राज्य अमेरिका एक महासंघ है और वहां हर दो साल में प्रतिनिधि सभा के लिए, हर चार साल में राष्ट्रपति पद के लिए और हर छह साल में सीनेट के लिए चुनाव कराए जाते हैं। आस्ट्रेलिया और कनाडा जैसी संघीय संसदीय प्रणालियों में भी एक साथ चुनाव नहीं होते हैं। एक राष्ट्र एक चुनाव इस सिद्धांत के विपरीत है कि कार्यकारी सरकार हर दिन विधायिका के प्रति जवाबदेह होती है। एक राष्ट्र एक चुनाव, सरकार का भारत निर्वाचन आयोग से चुनाव कैलेंडर पर नियंत्रण छीनने का प्रयास है।
भ्रष्टाचार विरोधी धर्मयुद्ध
भ्रष्टाचार के खिलाफ तथाकथित धर्मयुद्ध का उद्देश्य सभी विपक्षी दलों को नष्ट करना और विपक्षी नेताओं को राजनीतिक कार्रवाई से बाहर करना है। भाजपा के घातक गठजोड़ ने पहले ही कई क्षेत्रीय (एकल-राज्य) पार्टियों को महत्त्वहीन बना दिया है। इन कानूनों को कांग्रेस और सत्तारूढ़ क्षेत्रीय दलों से निपटने के लिए हथियार बनाया गया है। मुझे विश्वास है कि ईडी, एनआइए और एनसीबी द्वारा अपनाई गई गिरफ्तारी और हिरासत की प्रक्रिया को किसी दिन खत्म कर दिया जाएगा। यह धर्मयुद्ध भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं, आधिपत्य के लिए है।
भाजपा यूसीसी और ओएनओई को आगे बढ़ाने के लिए क्यों प्रतिबद्ध है? क्योंकि, अयोध्या में मंदिर निर्माण के बाद, भाजपा उन मुद्दों की तलाश में है, जिनमें उत्तर भारत के राज्यों में हिंदीभाषी, रूढ़िवादी, परंपराबद्ध, जाति-सचेत और पदानुक्रमित हिंदू समुदाय की बहुसंख्यक आकांक्षाओं को पूरा करने की क्षमता हो।
ये राज्य उस राजनीतिक समर्थन का स्रोत हैं, जो आरएसएस और भाजपा ने पिछले तीस वर्षों में हासिल किया है। यूसीसी और ओएनओई उस राजनीतिक आधार को मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा हैं। अगर भारत के क्षेत्रीय दल या धार्मिक, नस्लीय और भाषाई समूह अपनी भाषाई या सांस्कृतिक पहचान का दावा करेंगे, तो वे उत्तर भारत के राज्यों के चुनावी वजन से बाहर हो जाएंगे।
समान नागरिक संहिता और एक राष्ट्र एक चुनाव की मोदी की गारंटी ने चुनावों में तीखी बहस छेड़ दी है। मैं भविष्यवाणी कर सकता हूं कि तमिलनाडु (19 अप्रैल) और केरल (26 अप्रैल) के लोगों का फैसला क्या होगा। अन्य राज्यों, खासकर उत्तर भारत के हिंदीभाषी, रूढ़िवादी और जाति-जागरूक राज्यों के बारे में, मैं दुआ करूंगा।