मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा स्थित ‘श्रीसन फार्मास्युटिकल मैन्युफैक्चरर’ का गेट बंद है। गेट पर दो पुलिसवाले नीली दीवार पर लगे नोटिसों पर झुके हुए हैं। दीवार पर एक फीके साइनबोर्ड लगा है जिस पर एक ऐसी कंपनी का नाम लिखा है। यह कंपनी इस समय जानलेवा ड्रग स्कैंडल के चर्चा में है। अंदर कमरे खाली हैं लेकिन जल्दबाजी में खाली किए जाने की वजह से दवा की गंध आ रही है। प्लास्टिक के जार कूड़े की तरह रखे हैं। कमरे की खिड़कियां कसकर बंद हैं, कुछ समस्या की वजह से बंद हैं। कमरे की हवा बासी (पुरानी) है, मानो मजदूर बीच शिफ्ट में ही चले गए हों।
दरअसल चेन्नई के बाहरी इलाके में बैंगलोर हाईवे के किनारे नियामकों का कहना है कि यहीं कोल्ड्रिफ सिरप बच्चों की खांसी की एक आम दवा बनाई गई थी। इसी सिरप को मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में 14 बच्चों की मौत से जोड़ा गया है।
13 साल से चल रहा था फर्म
एक पतली सी खिड़की से यह बिल्कुल बेजान स्थिति में दिखाई देती है। सफेद और नीले प्लास्टिक के कंटेनरों के ढेर दीवार से सटे हुए पड़े हैं, जिनमें से कुछ पर अभी भी दवा से जुड़ी हुई सामग्री लगी हुई है। फर्श पर काली बाल्टियां, धातु के फ्रेम और विशाल ड्रमों के बिखरे हुए ढक्कन पड़े हैं। कमरे के पिछे वाले इलाके में राख और मलबे के बीच प्रोनिक आयरन सिरप के अधजले लेबल और साइप्रोहेप्टाडाइन हाइड्रोक्लोराइड सिरप आईपी की 200 मिलीलीटर की बेकार बोतलें खुले में पड़ी थीं। इसके अलावा लाल लिपि में “श्रीसन” लिखे लेबल किनारों पर मुड़े हुए और आग से जली हुई छपाई की हुई पड़ी है।
कमरे में रखा हुआ नीले रंग के बैरल भी देखने लायक हैं, बैरल के लेबल पर ‘ग्लूकोज लिक्विड’ लिखा है। 300.80 किलोग्राम इसका शुद्ध वजन लिखा है साथ ही ये भी लिखा कि ये ‘खुदरा बिक्री के लिए नहीं’। इसके बनने और समाप्ति को लेकर जून 2025 में निर्मित, जिसकी समाप्ति तिथि जून 2027 है।
वहीं पास में रहने वाले सरवन ने इसको लेकर बताया कि वह अकसर हरी वर्दी पहने महिलाओं को सुबह 9:30 बजे के आसपास आते और शाम 5 बजे जाते हुए देखते थे। “उनमें से लगभग दस महिलाएं थीं।” सरवन ने याद करते हुए कहा कि उन्होंने मुझे बताया कि यह कारखाना दिसंबर तक बंद हो जाएगा। क्योंकि उनका लाइसेंस समाप्त हो रहा था। वहीं दुकान मालिकों और पड़ोसियों के अनुसार यह पिछले 13 सालों से चल रहा है। उन्हें पता था कि वहां कुछ सिरप बनाया जा रहा है, लेकिन उनमें से किसी को भी कारखाने में जाने का मौका नहीं मिला। पास के एक ऑटोमोबाइल शोरूम में काम करने वाले वेंकटेश ने कहा, “सभी कर्मचारी बस से आते थे। कोई इस मोहल्ले से कोई नहीं जाता था।”
दीवार पर चपका दी गई नोटिस, दिया गया पांच दिन का समय
बीते मंगलवार को तमिलनाडु औषधि नियंत्रण विभाग ने कंपनी के मालिक डॉ जी रंगनाथन और कंपनी के विश्लेषणात्मक रसायनज्ञ के. माहेश्वरी के नाम का दो अलग-अलग कारण बताओ नोटिस बाहर की दीवार पर चिपका दी। कई पन्नों के इन दस्तावेजों में कंपनी पर औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 के गंभीर उल्लंघन का आरोप लगाया गया है।
एक नोटिस में कहा गया था कि “नमूने को सरकारी विश्लेषक (ड्रग्स), औषधि परीक्षण प्रयोगशाला द्वारा मानक गुणवत्ता का नहीं घोषित किया गया है। इसको लेकर नमूना मिलावटी पाया गया है, क्योंकि इसमें डायथिलीन ग्लाइकॉल (48.6% w/v) है, जो एक जहरीला पदार्थ है इसकी सामग्री को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बना सकता है।”
फर्म को सारा स्टॉक वापस मंगाने, संपूर्ण वितरण रिकॉर्ड जमा करने और मास्टर फॉर्मूला रिकॉर्ड से लेकर प्रोपिलीन ग्लाइकॉल जैसे कच्चे माल के खरीद चालान तक, सभी दस्तावेज जमा करने के लिए भी कहा गया था। नोटिस में फर्म को यह बताने का आदेश दिया गया था कि उसके खिलाफ कार्रवाई क्यों न की जाए। नोटिस में रंगनाथन और माहेश्वरी दोनों को जवाब देने के लिए पांच दिन का समय दिया गया था।
मध्य प्रदेश में बच्चों की मौतों के बाद श्रीपेरंबदूर के पास इस शांत औद्योगिक क्षेत्र तक पहुंचने वाली जवाबदेही की श्रृंखला सैकड़ों मील दूर से शुरू हुई। मध्य प्रदेश के भोपाल से खाद्य एवं औषधि प्रशासन नियंत्रक दिनेश कुमार मौर्य ने अपने तमिलनाडु समकक्ष को एक पत्र लिखा। “जैसा कि आप जानते हैं, छिंदवाड़ा जिले में बच्चों की मौत की सूचना मिली है। चूंकि निर्माता आपके अधिकार क्षेत्र में स्थित है, इसलिए अनुरोध है कि इस मामले में आवश्यक कार्रवाई करें और आपूर्ति की गई उपरोक्त दवा और की गई कार्रवाई का विवरण प्रदान करें।”
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा अधिसूचना का नहीं रखा गया ध्यान
फर्म पर एक अन्य आरोप “गलत ब्रांडिंग” का था। दरअसल सिरप के लेबल पर अनिवार्य चेतावनी नहीं दी गई थी। “चार वर्ष से कम उम्र के बच्चों में निश्चित खुराक संयोजन का उपयोग नहीं किया जाएगा।” जैसा कि अप्रैल 2025 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया था।
पत्र मिलने के बाद तमिलनाडु के औषधि नियंत्रण विभाग ने कार्रवाई करते हुए सीडीएससीओ इंदौर उप-क्षेत्र समन्वय कर रहा है। चेन्नई में इस मामले ने राज्यव्यापी अलर्ट जारी कर दिया है। दवा विक्रेताओं को संदिग्ध स्टॉक हटाने का निर्देश दिया गया है। इसके साथ ही अस्पतालों को चेतावनी दी गई है और वितरकों की जांच की जा रही है।
हमारे सहयोगी संस्थान इंडियन एक्सप्रेस ने इसको लेकर पाया है कि जब तमिलनाडु के औषधि नियंत्रण विभाग के निरीक्षकों की टीम ने बिल्डिंग नंबर 787 के दरवाजे खटखटाए, जहां से यूनिट संचालित होती थी, तो उन्हें 364 उल्लंघनों की सूची मिली। रंगनाथन को मध्य प्रदेश पुलिस की विशेष जांच टीम (एसआईटी) तलाश रही है। फर्म ने 27 अक्टूबर 2011 को विनिर्माण लाइसेंस प्राप्त किया था। यह 2026 तक वैध था। लेकिन फार्मास्यूटिकल्स के क्षेत्र में यह उनका पहला प्रयास नहीं था।
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रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (आरओसी) दस्तावेजों के विश्लेषण से पता चलता है कि ‘रंगनाथन’ अब बंद हो चुकी श्रीसन फार्मास्युटिकल लिमिटेड के निदेशक थे। जिसे 25 दिसंबर 1990 को शामिल किया गया था। कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) के रिकॉर्ड के अनुसार कंपनी की स्थिति 2009 में समाप्त कर दी गई थी। जिसका अर्थ है कि इसने उसी वर्ष परिचालन बंद कर दिया था।
आरओसी दस्तावेजों के अनुसार उस वर्ष फर्म का टर्नओवर और कुल व्यय दोनों शून्य थे। छिंदवाड़ा के पुलिस अधीक्षक अजय पांडे ने कहा, “जब हमने (श्रीसन फार्मास्युटिकल मैन्युफैक्चरर के) निदेशकों के बारे में पता लगाने की कोशिश की तो पता चला कि वे भी एक ऐसी कंपनी का हिस्सा थे जो 2009 से बंद पड़ी है। उनसे पूछताछ के बाद हमें और जानकारी मिलेगी।”
एकल नाम से बनी हुई थी कंपनी
तमिलनाडु की सहायक औषधि नियंत्रण निदेशक दीपा जोसेफ की टीम ने परिसर का निरीक्षण किया था। उन्होंने कहा, “हमने रंगनाथन से पूछताछ की, जिन्होंने हमें बताया कि उनकी पिछली कंपनी 2009 में बंद हो गई थी। इसके बाद उन्होंने उसी साल श्रीसन फार्मास्युटिकल मैन्युफैक्चरर नाम से खुद के स्वामित्व वाली कंपनी खोली और उत्पादों को बेचने का लाइसेंस प्राप्त किया। फिलहाल, वह और उनके कर्मचारी परिसर में मौजूद नहीं हैं।”
कंपनी की जीएसटी फाइलिंग के अनुसार, इसकी मुख्य व्यावसायिक गतिविधि प्रोमेथाजिन, क्लोरफेनिरामाइन, एस्टेमिज़ोल और सेटिरिज़िन के निर्माण के रूप में सूचीबद्ध थी, जिनका उपयोग एलर्जी, सर्दी के लक्षणों, बहती नाक आदि के इलाज के लिए किया जाता है। यह हीमोग्लोबिन के स्तर को बेहतर बनाने में मदद करने वाली तैयारियों में भी काम करती है।
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बीते 1 और 2 अक्टूबर के दौरे के दौरान औषधि नियंत्रण निरीक्षकों ने बताया कि मुख्य क्षेत्रों की दीवारों, फर्श और छत में दरारें थीं। इकाई में संदूषण को रोकने के लिए वायु निस्पंदन की सुविधा नहीं थी, इसके दरवाजे एल्युमीनियम के बने थे और उनमें इंटरलॉकिंग की सुविधा नहीं थी, और सभी उत्पादों को “एक ही कमरे में प्लास्टिक के पाइपों” और अन्य “टूटे और लीक करने वाले उपकरणों” का उपयोग करके मिलाया गया था। “कुछ कच्चे माल को घोलने” के लिए एक घरेलू गैस सिलेंडर का इस्तेमाल किया गया था।
तमिलनाडु औषधि नियंत्रण विभाग के अनुसार, “350 से ज्यादा छोटे-बड़े उल्लंघन” हुए। इन उल्लंघनों में फार्माकोपियल ग्रेड के बाहर कच्चे माल का इस्तेमाल, जिससे निम्न-गुणवत्ता वाले उत्पाद बनते हैं और निर्माण प्रक्रिया का दस्तावेज़ीकरण न करना शामिल है।
जोसेफ ने कहा, “ऑनलाइन उचित रिकॉर्ड बनाए रखना कंपनी की ज़िम्मेदारी है। उन्होंने प्रोपिलीन ग्लाइकॉल जैसे कच्चे माल की खरीद का रिकॉर्ड नहीं रखा, जिसे केवल लाइसेंस प्राप्त पेशेवरों से ही खरीदा जाना चाहिए। कच्चा माल फार्माकोपियल ग्रेड का नहीं था, और उत्पाद मानक गुणवत्ता के नहीं पाए गए।”