‘कोविड-19 के सभी रोगियों का इलाज जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर ही कर रहे हैं। अस्पताल में निरीक्षण या इमरजेंसी ड्यूटी के लिए कोई भी वरिष्ठ डॉक्टर (प्रोफेसर या उससे ऊपर के लेवर के) नहीं है। जो डॉक्टर कोविड-19 की ड्यूटी में नहीं लगे हैं, उनको पीपीई किट, एन-95 मास्क या उचित ग्लव्स नहीं दिए गए हैं। लगभग 700 रेजिडेंट डॉक्टरों में से 10 फीसदी का भी टेस्ट नहीं किया गया है, जबकि वे एक सामान्य हॉस्टल में रहते हैं।’
ये कुछ प्रमुख आरोप उस गुमनाम पत्र में लगाए गए हैं, जिनका जिक्र गुजरात हाई कोर्ट ने अपने आदेश में किया है। कोरोना मामलों पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए गुजरात हाई कोर्ट ने राज्य में अस्पतालों की खराब स्थिति पर रूपाणी सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। बता दें कि अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में कोविड 19 के इलाज में खराब प्रबंधन और राज्य के अस्पतालों में उच्च मृत्यु दर होने के मामले में हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को जल्द से जल्द कोरोना मरीजों के इलाज और सुविधाओं के इंतजामों में सुधार के निर्देश दिए हैं।
पत्र में जो बात कही गई है उससे पता चलता है कि यह संभवत: अस्पताल के गॉयनकोलॉजी डिपार्टमेंट (स्त्री रोग विभाग) के किसी मेडिकल प्रोफेशनल द्वारा लिखा गया है। वह मेडिकल प्रोफेशनल कोरोना पॉजिटिव हैं, जबकि उन पर कोविड-19 के मरीजों का इलाज करने की जिम्मेदारी नहीं थी। पत्र में, डॉक्टरों के लिए अस्पताल में अमानवीय स्थिति का विवरण दिया गया है। इसमें दावा किया गया है कि वार्डों में जिस तरह की अव्यवस्था है उससे रोगियों के जीवन को खतरा है।
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हाई कोर्ट ने पत्र में कही गई बातों को ‘बहुत परेशान करने वाला’ बताते हुए राज्य सरकार से पूछा था कि क्या स्वास्थ्य मंत्री और मुख्य सचिव को रोगियों और कर्मचारियों को होने वाली दिक्कतों को लेकर ‘कोई आइडिया’ है। इसके बाद रविवार को स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल ने कहा कि राज्य सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश और उसकी टिप्पणियों की समीक्षा की है।
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पत्र में कहा गया है, ‘अस्पताल प्रबंधन बस इस बात से चिंतित है कि अगर रेजीडेंट डॉक्टरों का टेस्ट हुआ और वे पॉजिटिव पाए गए तब काम कौन करेगा। कोई वरिष्ठ प्रोफेसर राउंड या इमरजेंसी के लिए नहीं आ रहे हैं। सभी रोगियों का इलाज सिर्फ जूनियर रेजीडेंट डॉक्टर ही कर रहे हैं। प्रबंधन रेजीडेंट के लिए कुछ नहीं कर रहा है। इसके बजाय वे हमें कायर और कामचोर (आलसी) कह रहे हैं, जबकि ऐसा नहीं है। खासकर तब जब हम अपने जीवन को जोखिम में डाल रहे हैं और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद हम काम कर रहे हैं।’