कोरोना वाइरस को वैज्ञानिक समझ पाते, इससे पहले ही इस महामारी ने देश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी कोहराम मचाना शुरू कर दिया। यह चिंता का बड़ा विषय है क्योंकि जिस वाइरस से शहर नहीं लड़ पा रहे, वह तो गांवों को तोड़ के रख देगा क्योंकि वहां शहरों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्र में चिकित्सा ढांचा बहुत ही कमजोर है।

कोविड-19 को लेकर एक नहीं कई बातें हैं जो समझ में नहीं आतीं। मसलन, सितंबर 2019 से शुरू होकर कोरोना के मामले घटते क्यों रहे। उससे भी बड़ा अनुत्तरित सवाल है कि दूसरी लहर इतनी जहरीली कैसे हो गई कि रोज चार लाख लोग संक्रमित होने लगे। लोग फटाक से उत्तर देते हैं कि हम ढीले पड़ गए थे। कोरोना से बचने के लिए मास्क और हाथ धोने और सोशल डिस्टैंसिंग के जो नियम हमने बनाए थे, हम ही तोड़ने लगे थे। इसीलिए दूसरी लहर इतनी बड़ी हो गई।

लेकिन यह जवाब सम्पूर्ण नहीं। जवाब का छोटा सा हिस्सा भर है। चुनाव रैलियों पर भी लांछन लगाया जाता है लेकिन महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब और कर्नाटक में तो कोई चुनाव नहीं हुए। सच तो यह है कि दूसरी लहर नेताओं की रैलियों से पहले ही शुरू हो गई थी।

दो माह से संक्रमण में उफान के लिए वैज्ञानिक वाइरस में आए शारीरिक रूपान्तरण यानी म्यूटेशनों को भी पढ़ रहे हैं। आप यह जानते हैं कि वाइरस म्यूटेट होकर नए-नए रूप धरते हैं। म्यूटेशन का उद्देश्य होता है पहले से भी खतरनाक वाइरस। कुछ में संक्रमण की ताकत बेहतरर होती है। एक ऐसा ही कोरोना अवतार का नाम है B.1.617, जो सबसे पहले विदर्भ में मिला था। यह बड़ा तेज फैलता है और शरीर की प्रतिरक्षण प्रणाली के रडार से बच जाता है। दूसरा तेज-संक्रमण-गति वाला वाइरस है B 1.1.7, जो सर्वप्रथम ब्रिटेन में पाया गया था। कोरोना के ये दोनों रूप कोविड के उत्तर भारत में तेज फैलाव के दोषी हो सकते हैं।

वैज्ञानिक इतना तो कहते हैं कि इन दोनों अवतारों यानी वैरिएंट्स ने संक्रमण में उफान लाया होगा पर वे यह नहीं कह पा रहे कि दूसरी लहर के तीखेपन के लिए केवल ये ही दोषी हैं। गत दिवस सरकारी तौर पर यह कहा गया कि कुछ राज्यों में संक्रमण में तेजी के पीछे B.1.617 वाइरस है। लेकिन बयान के अंत में यह भी लिखा था कि यह बात वैज्ञानिक तौर पर पूरी तरह प्रमाणित नहीं हुई है।

जीनॉमित एण्ड इंटीग्रेटिव बायॉलजी के निदेशक अनुराग अग्रवाल कहते हैं हालांकि वाइरस के नए वैरिएंट्स देश में अनेक भागों में पाए गए हैं, लेकिन संक्रमण में प्रत्येक तेजी इनके मत्थे नहीं डाली जा सकती। वे कहते हैं कि यह भी हो सकता है कि राज्य के एक हिस्से में एक वैरिएंट कहर बरपा रहा हो और दूसरे हिस्से में कोई दूसरा। मसलन, महाराष्ट्र के विदर्भ में B.1.617 सक्रिय है मगर मुंबई में संक्रमण के पीछे इस विषाणु का हाथ नहीं। मुंबई में संक्रमण में तेजी का कारण फऱवरी में लोकल ट्रेनों का संचालन भी हो सकता है।

केरल में सबसे ज्यादा मौजूदगी N440K नामके वैरिएंट की है। लेकिन जिन इलाकों में कोविड तेजी से फैल रहा है वहां इस विषाणु की मौजूदगी नगण्य है। अनुराग अग्रवाल बताते हैं कि हरियाणा और पंजाब में यूके वैरिएंट ही ज्यादातर मौजूद है। ऐसा ही दिल्ली में भी है। लेकिन, देश की राजधानी होने के कारण चूंकि पूरे देश की आवाजाही रहती है सो यहां लगभग सभी प्रदेशों के वैरिएंट मिल जाते हैं। लेकिन, दिल्ली में कोरोना की सुनामी के पीछे राज्यों से आए सट्रेन्स का कोई हाथ नहीं।

वैज्ञानिकों का कहना है कि महामारियां विचित्र ढंग से आचरण करती हैं। छोटी सी बात का असर बहुत ज्यादा भी हो जाता है। कई बार एक विवाह समारोह ही सुपरस्प्रेडर बन जाता है।

वैज्ञानिक कोरोना वाइरस के विभिन्न स्वरूपों पर कड़ी नज़र रखे हुए हैं। खास नजर B.1617 पर रखी जा रह है। सरकार ने खुद इसे चिंता का वाइरस बताया है। यह म्यूटेट करने में बहुत तेज है। अब तक इसके तीन रूप सामने आ चुके हैं। इनका नामकरण इस तरह किया गया हैः B.1.617.1 B.1.617.2 B.1.617.3—-हर नाम के साथ 1, 2, 3 जोड़ दिया गया है। अग्रवाल हते हैं कि वैज्ञानिक B.1.617 के अलावा यूके और साउथ अफ्रीकन स्ट्रेन को लेकर भी चिंतित है।

इस बीच जबकि कोरोना वाइरस का अध्ययन जारी है, वह गांवों में प्रवेश कर गया है। एक सूचना के मुताबिक बैकवर्ड रीजन ग्रांट फंड के तहत कवर्ड जिलों में 5 मई तक 39.16 लाख लोग कोविड से संक्रमित हो चुके थे। इस ग्रांट फंड के छाते में देश के 272 पिछड़े जिले आते हैं। कोरोना की उपस्थिति 243 में मिली है। यह संख्या सितंबर 2020 से चार गुना है। 16 सितंबर तक सिर्फ साढ़े नौ लाख संक्रमण ही मिले थे।