केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार (14 मई) को 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की दूसरी किश्त में शहरों से गांवों की ओर लौटे प्रवासी मजदूरों के लिए मुफ्त राशन समेत कई घोषणाएं कीं लेकिन यह मुख्यतया दो पुरानी योजनाएं महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) पर ही आधारित हैं। हालांकि, सरकार ने लॉकडाउन की वजह से पिछले 50 दिनों में अपनी रोजी-रोटी गंवाने वाले इन प्रवासी मजदूरों के लिए किसी तरह की नकद राहत देने का कोई ऐलान नहीं किया।

सरकार की तरफ से आर्थिक पैकेज में सिर्फ एक बदलाव यह किया गया है कि इन श्रमिकों को दो महीने के लिए खाद्यान्न मुफ्त दिए जाएंगे और उसका वित्तीय बोझ सरकार वहन करेगी। यह पेशकश राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013 या राज्य सरकार की योजनाओं के तहत कवर नहीं हैं। वित्त मंत्री ने बताया कि इस योजना में कवर होने वाले श्रमिकों की संख्या करीब आठ करोड़ हैं।

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वित्त मंत्री की घोषणा के मुताबिक जिन प्रवासी लोगों के पास राशन कार्ड नहीं है, उन्हें भी दो महीने (मई और जून) पांच किलो अनाज, चावल या गेहूं और एक किलो दाल प्रति परिवार दिया जाएगा। इससे सरकारी खजाने पर करीब 3500 करोड़ रुपये का बोझ आएगा।

हालांकि, यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का हिस्सा है, जिसका ऐलान उन्होंने बुधवार को कोविड-19 संकट से निपटने के लिए किया था। मार्च के अंतिम चरण में शुरू हुए लॉडडाउन के प्रथम चरण के बाद से ही केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्रालय वास्तव में राज्यों को अतिरिक्त खाद्यान्न दे रहा है, खासकर उनलोगों के लिए जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं। इससे इतर कई अर्थशास्त्री और विपक्षी नेता प्रवासी मजदूरों जैसे कमजोर वर्गों के लिए एकमुश्त नकद हस्तांतरण के लिए सरकार से अनुरोध कर रहे हैं।
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