लॉकडाउन के चलते दिहाड़ी मजदूर और गरीब सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। लोग अपने घर वापस नहीं जा पा रहे हैं। ऐसे में उत्तराखंड के चार धाम यात्रा के लिए बन रहे हाइवे के काम में लगे 12 मजदूर पैदल ही अपने-अपने घरों की तरफ निकल गए हैं। 4 दिन बीत जाने के बाद ये लोग 200 किलोमीटर का सफर तय कर चुके हैं। हालत ये है कि इन मजदूरों ने बीते 65 घंटों से कुछ नहीं खाया है, ये खाना भी उन्हें एक स्वयंसेवी संस्था ने उपलब्ध कराया है।
इन मजदूरों में से एक मजदूर प्रवीण कुमार (46 वर्ष) ने बताया कि हर चेक प्वाइंट पर उन्हें पुलिस मिलती है, लेकिन सिर्फ उनके आईडी प्रूफ चेक करने के बाद ‘सोशल डिस्टेंशिंग’ बनाए रखने की सलाह के बाद उन्हें जाने देती है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी से पैदल चले ये मजदूर फिलहाल देहरादून पहुंच चुके हैं। अभी इन्हें उत्तर प्रदेश के सहारनपुर पहुंचना है, जो कि अभी भी देहरादून से 60 किलोमीटर दूर है।
इन 12 मजदूरों में से सिर्फ एक के पास मास्क है। प्रवीण ने बताया कि 22 मार्च को हुए लॉकडाउन के दौरान उन्होंने इसे हल्के में लिया, लेकिन जब लॉकडाउन बढ़ गया तो वह अपने कॉन्ट्रैक्टर के पास पहुंचे। कॉन्ट्रैक्टर ने उन्हें बिना काम के खाना देने से मना कर दिया।
इसके साथ ही कॉन्ट्रैक्टर ने पैसे भी देने से मना कर दिया। ऐसे में इन मजदूरों के पास अपने घर जाने के अलावा कोई चारा नहीं था। चूंकि लॉकडाउन के चलते बसें, रेलगाड़ियां सभी बंद हैं। इसलिए इन मजदूरों ने पैदल ही अपने घर निकलना मुनासिब समझा।
इन मजदूरों ने सिर्फ एक दिन खाना खाया है और बाकी दिन इन्होंने बिस्किट और पानी पीकर ही काम चलाया है। रास्ते में एक जगह एक व्यक्ति ने उन्हें पानी पिलाया और एक परिवार ने उन्हें चाय बिस्किट खिलाए थे।
सहारनपुर के टांडा गांव के रहने वाले जाकिर और उसके छोटे भाई उस्मान ने बताया कि वह यहां तक पहुंचने के लिए जंगल और पहाड़ पार करके आए हैं। इस दौरान वह रात में बेहद कम सोए हैं और अगर सोए भी हैं तो वो भी शिफ्ट में, क्योंकि जंगल और पहाड़ों में जंगली जानवरों के हमले का डर था। इन मजदूरों का कहना है कि सरकार को लॉकडाउन से पहले घर से दूर काम कर रहे गरीब मजदूरों के ट्रांसपोर्टेशन का इंतजाम करना चाहिए था।