कोरोना वायरस की दूसरी लहर के विरुद्ध तैयारी करने में बुरी तरह चूकने के बाद अफसर और स्वास्थ्य विशेषज्ञ अब आए दिन तीसरी लहर के अंदेशे की चेतावनी दे रहे हैं। तीसरी लहर की बात इसी महीने के शुरू में प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइज़र के विजय राघवन ने शुरू की थी। बोले थे कि समय की भविष्यवाणी तो नहीं की जा सकती लेकिन इतना पक्का है कि उसका आना अटल है। दो दिन बाद उन्होंने अपना बयान संशोधित किया था कि अगर कठोर उपाय किए जाएं तो तीसरी लहर टाली भी जा सकती है। इधर, कोई एक पखवाड़े से कई दूसरे विशेषज्ञ तीसरी लहर की चेतावनी दे चुके हैं। स्थानीय प्रशासन और कुछ अस्पताल चिकित्सा सुविधाओं को यह सोचकर बढ़ाने में जुट गए हैं कि कुछ महीनों में कोरोना मामलों में फिर उफान आ सकता है।
महामारी की लहर का मतलब क्या है?: सच तो यह है कि महामारी की लहर की परिभाषा किसी किताब में नहीं उपलब्ध। बस इसको यूं समझ लीजिए कि संक्रमणों में जब बाढ़ आए तो उसे लहर का उठना मानिए; जब संक्रमण संख्या सबसे ज्यादा हो तो उसे लहर की सबसे ऊंची अवस्था मानिए; और, जब संक्रमण घटने लगें तो उसे लहर का उतार मानिए। एक बात यह भी कि पानी में उठने वाली क्षणिक लहर के विपरीत संक्रमण की यह लहर लंबे काल खंड में फैली होती है। अगर चिकित्सा इतिहास में जाएं तो लहर को उन मौसमी बीमारियों के लिए इस्तेमाल किया जाता था जो साल में एक निश्चित समय पर आती थीं। ये बीमारियां एक लहर की तरह उठती थीं और लहरों की तरह गिरकर खत्म हो जाती थीं।
कोविड-19 लगभग डेढ़ साल से दुनिया को झकझोर रहा है। विभिन्न देशो में इस रोग के प्रसार के अध्ययन से पता चलता है कि हर तेज़ लहर के कुछ समय बाद कोरोना वायरस ठंडा पड़ जाता है। यही भारत में भी हुआ। यहां दो लहरों के बीच कोरोना ने एक लंबा इंटरवल ले लिया।
बड़े देशों के अंदर प्रदेशों और शहरों में लहरों का उठने-गिरने का समय अलग-अलग हो सकता है। मिसाल के लिए दिल्ली को ही ले लीजिए। यहां चार-चार लहर आ चुकी हैं। ग्राफ में देखने से पता चलता है कि मौजूदा लहर के पहले की लहरों की तुलना में तीन अलग पीक हैं। दूसरी ओर, राजस्थान या मध्य प्रदेश के ग्राफ्स में संक्रमण वृद्धि की रेखाएं एक-दूसरे में गड्ड-मड्ड होती दिखती हैं।
तीसरी लहर आई तो पहचानेंगे कैसे?: तीसरी लहर पर चल रही मौजूदा चर्चा राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में है। जहां तक दूसरी लहर की बात है तो छह मई को पीक छूने के बाद वह उतार पर चल रही है। दो हफ्तों में दैनिक संक्रमण 4.14 लाख से 2.6 लाख तक गिर गए हैं।
एक्टिव केसेज़ भी 37.45 लाख का शिखर छूने के बाद 32.25 लाख हो गए हैं। अगर, यही ट्रेंड रहा तो अनुमान है कि दैनिक संक्रमण संख्या फरवरी के स्तर पर आ जाएगी। इसके बाद जब संक्रमण बढ़ेंगे तो उसे तीसरी लहर माना जा सकेगा। लेकिन इस बीच स्थानीय स्तर पर संक्रमण में उफान देखने को मिल सकता है।
तमिलनाडु और आंध्र में यह दिखाई भी दे रहा है। और, ज्यादा स्थानीय स्तर पर जाएं तो अमरावती, सांगली आदि की मिसाल ले सकते हैं। ये उफान स्थानीय स्तर पर तो हैं लेकिन इतने बड़े नहीं कि इनके कारण कोरोना के राष्ट्रीय ग्राफ पर फर्क पड़े और तीसरी लहर मान लिया जाए। शहरों के स्तर पर अगर संक्रमणों में उफान होता भी है तो वह जल्दी शांत भी हो जाता है। लेकिन, यहां भी मुंबई और पुणे अपवाद हैं।
क्या तीसरी लहर ज्यादा खतरनाक होगी?: कहा-सुना तो यही जा रहा है कि कोविड की तीसरी लहर दूसरी से भी भयावह होगी लेकिन सच यह है कि ऐसी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। सिद्धांत तो, दरअसल, यह कहता है कि हर नई लहर पहले वाली से कमज़ोर होगी। क्यों? इसलिए कि पहली लहर में वायरस को खुल कर खेलने का मौका मिलता है। उसे एकदम फ्रेश लोग मिलते हैं।
दूसरी लहर में चूंकि बहुत से लोग संक्रमित होने के कारण इम्यून हो चुके होते हैं तो वायरस को ताजा शिकार उतनी आसानी से नहीं मिलते। वायरस की यह समस्या हर नई लहर के साथ बढ़ती जाती है क्योंकि हर बार इम्यून होने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जाती है। अल्टीमेटली हर्ड इम्यूनिटी भी विकसित हो जाती है।
लेकिन भारत में कोरोना वायरस का खेल कुछ ऐसा है कि ‘हर नई लहर-कमज़ोर लहर’ के सिद्धांत की खटिया खड़ी हो गई है। पिछले साल सितंबर के मध्य में जब कोरोना संक्रमण घटने लगा, उस समय तक देश में बहुत थोड़ी संख्या में लोग संक्रमित हुए थे। कोरोना के शांत होने का कोई कारण नहीं था क्योंकि उसके सामने करोड़ो स्वस्थ शिकार मौजूद थे। फिर तो संक्रमणों की संख्या में वह गिरावट शुरू हुई कि पांच महीने तक चलती रही। कोरोना का यह बर्ताव अभी तक समझा नहीं जा सका है।
भारत दूसरी लहर के कमजोर होने के सिद्धांत के चलते ही गच्चा खा गया। हमने बिना कुछ सोचे-समझे मान लिया कि हमने कोविड को हरा दिया है। नतीजा सबके सामने है।
क्या तीसरी लहर अटल है?: इसका जवाब वही है जो विजय राघवन ने कहा है। इसके आने की काफी संभावना है। पर इसका समय और विकरालता का अंदाज़ लगाना संभव नहीं। और जैसा राघवन ने कहा कि अगर कड़े कदम उठाए जाएं और लोग मास्क और सोशल डिस्टैंसिंग आदि निर्देशों का पूरी तरह पालन करें तो इसे टाला भी जा सकता है। यह भी हो सकता है कि तीसरी लहर बहुत कमजोर हो और यूं ही गुजर जाए।
