बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं। कोरोना वायरस के चलते राजनीतिक गतिविधियां बंद हैं लेकिन राजनीतिक पार्टियां इसके बावजूद मतदाताओं को लुभाने के लिए अपने स्तर पर प्रयास कर रही हैं। इसी बीच कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने NEET (National Eligibilty cum Enterence Test) में ओबीसी छात्रों को आरक्षण देने का मामला उठाया है। सोनिया गांधी के इस कदम को आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में ओबीसी मतदाताओं को लुभाने के प्रयास से जोड़कर देखा जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में सोनिया गांधी ने लिखा है कि ओबीसी छात्रों के लिए आरक्षण की सुविधा सिर्फ केन्द्रीय संस्थानों तक सीमित कर दी गई है, इसे राज्य और केन्द्र प्रशासित मेडिकल संस्थानों में भी लागू किया जाना चाहिए। सोनिया गांधी ने लिखा कि “मैं आपका ध्यान ओबीसी छात्रों को अखिल भारतीय कोटा के तहत नीट परीक्षा में राज्य और केन्द्र प्रशासित मेडिकल संस्थानों में खत्म किए गए आरक्षण की तरफ दिलाना चाहती हूं।”
कांग्रेस अध्यक्ष ने लिखा कि “अखिल भारतीय कोटा के तहत एससी वर्ग के लिए 15 फीसदी, एसटी वर्ग के लिए 7.5 फीसदी और आर्थिक रुप से पिछड़े वर्ग के लिए 10 फीसदी सीटें केन्द्रीय, राज्य और केन्द्रशासित मेडिकल संस्थानों में आरक्षित की गई हैं। जबकि ओबीसी छात्रों को सिर्फ केन्द्रीय संस्थानों में आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है।”
सोनिया गांधी ने पत्र में जानकारी देते हुए बताया कि “ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ अदर बैकवर्ड क्लासेज के आंकड़ों के मुताबिक ओबीसी वर्ग के छात्रों को साल 2017 से अब तक राज्य/केन्द्र प्रशासित मेडिकल संस्थानों में करीब 11,000 सीटों का नुकसान हुआ है।” सोनिया गांधी ने ओबीसी छात्रों को आरक्षण का लाभ नहीं दिए जाने को 93वें संविधान संशोधन का उल्लंघन बताया।
बिहार चुनाव की बात करें तो राज्य में ओबीसी मतदाताओं की संख्या लगभग 50 फीसदी है। यही वजह है कि बिहार की राजनीति में ओबीसी मतदाताओं का खासा दबदबा रहा है। इनमें सबसे ज्यादा संख्या यादव, निषाद, कुर्मी और कोरी मतदाताओं की है। यादव वोटबैंक राजद का समर्थक माना जाता है। वहीं कुर्मी और कोरी सीएम नीतीश कुमार के पाले में रहते हैं। ऐसा लग रहा है कि अब सोनिया गांधी आरक्षण का मुद्दा उठाकर ओबीसी मतदाताओं को अपने पाले में खींचने का प्रयास कर रही हैं।