Congress Reshuffle: कांग्रेस अब सामाजिक न्याय की पिच पर बैटिंग करनी की कोशिश कर रही है। जो कांग्रेस के दिग्गज नेता राहुल गांधी के सामाजिक न्याय के नारे का बड़ा संकेत देती है। जिसको लेकर उन्होंने देशभर में यात्रा की और हर जगह सामाजिक न्याय के सिद्धांत की बात। राहुल गांधी इस बात को जोर देकर उठाते रहे हैं कि देश की संस्थाओं और संसाधनों में उत्पीड़ित समुदायों की केवल प्रतिनिधित्व ही नहीं, बल्कि भागीदारी भी मिले। यही वजह है कि शुक्रवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) कई फेरबदल किए।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में फेरबदल के तहत दो राज्यों के लिए महासचिवों और नौ राज्यों के लिए प्रभारियों की नई नियुक्तियां की गईं, साथ ही इन पदों पर पहले से कार्यरत छह पदाधिकारियों को भी हटा दिया गया।
पिछले साल 26 दिसंबर को अपनी बैठक में पार्टी की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) ने पार्टी में सुधारों को हरी झंडी दे दी थी। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि प्रस्तावित संगठनात्मक सुधार कांग्रेस के नेतृत्व के पदों पर उत्पीड़ित और पिछड़े वर्गों की “समान भागीदारी” सुनिश्चित करेगा।
जिन 11 नए पदाधिकारियों को विभिन्न राज्यों की जिम्मेदारी सौंपी गई है, उनमें से पांच ओबीसी समूह से हैं, एक दलित, एक मुस्लिम, एक आदिवासी और तीन उच्च जाति समुदायों से हैं।
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पंजाब का प्रभारी महासचिव नियुक्त किया गया है, जो एक ओबीसी नेता हैं, वहीं एक मुस्लिम चेहरा और राज्यसभा सांसद सैयद नसीर हुसैन को जम्मू -कश्मीर और लद्दाख का प्रभारी महासचिव नियुक्त किया गया है।
नौ राज्यों के एआईसीसी प्रभारियों में सप्तगिरि शंकर उलाका (मणिपुर, त्रिपुरा, सिक्किम और नागालैंड के प्रभारी) शामिल हैं, जो ओडिशा के आदिवासी नेता हैं, जबकि अजय कुमार लल्लू को ओडिशा को प्रभारी बनाया गया है। जो ओबीसी वर्ग से आते हैं और यूपी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष हैं।
हरियाणा प्रभारी व वरिष्ठ कांग्रेस नेता बी.के. हरिप्रसाद, मध्य प्रदेश प्रभारी हरीश चौधरी तथा तमिलनाडु और पुडुचेरी के प्रभारी गिरीश चोडानकर भी ओबीसी समुदाय से आते हैं। चोडानकर गोवा के ओबीसी भंडारी समूह से हैं, जबकि हरीश राजस्थान के बाड़मेर से ओबीसी नेता हैं।
तेलंगाना की प्रभारी मीनाक्षी नटराजन मध्य प्रदेश के उज्जैन की रहने वाली ब्राह्मण हैं। वे 2009 में मंदसौर सीट से लोकसभा के लिए चुनी गई थीं। पूर्व नौकरशाह के राजू (झारखंड प्रभारी) एक दलित नेता हैं, जबकि कृष्णा अल्लावरु (बिहार प्रभारी) एक उच्च जाति का चेहरा हैं।
उच्च सदन में महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाली राज्यसभा सदस्य रजनी अशोकराव पाटिल मराठा समुदाय से हैं, जो पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की करीबी रही हैं। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के छह निवर्तमान पदाधिकारियों में तीन-तीन उच्च जाति और तीन-तीन ओबीसी से हैं।
राजू, अल्लावरु और नटराजन राहुल की कोर टीम का हिस्सा रहे हैं। अल्लावरु को बिहार में पार्टी के मामलों को संभालने का महत्वपूर्ण काम दिया गया है, जहां इस साल अक्टूबर में चुनाव होने हैं।
पिछले कुछ दिनों में खड़गे ने पूर्व केंद्रीय मंत्री भक्त चरण दास (दलित) को ओडिशा में प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) अध्यक्ष और पूर्व पार्टी विधायक हर्षवर्धन सपकाल (ओबीसी) को महाराष्ट्र इकाई का प्रमुख नियुक्त किया है।
पिछले महीने एक कार्यक्रम में बोलते हुए राहुल ने माना कि कांग्रेस ने पिछले 10-15 सालों में एससी और ओबीसी के लिए पर्याप्त काम नहीं किया। उन्होंने कहा कि उन्हें यह स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं है कि यह पुरानी पार्टी वंचित वर्गों के उस “विश्वास” को बरकरार नहीं रख पाई है, जो उनकी दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय में उनके ऊपर था।
उसी सभा में जहां राहुल ने दलित प्रभावशाली लोगों और बुद्धिजीवियों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि पार्टी को “आंतरिक क्रांति लानी होगी”। एआईसीसी के एक नेता ने कहा, “कांग्रेस में नवीनतम नियुक्तियां पार्टी के लिए राहुल के रोडमैप के अनुरूप हैं।”
पिछले साल अगस्त में लोकसभा चुनाव के बाद पहली बार कांग्रेस में हुए फेरबदल में एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों को 60 प्रतिशत प्रतिनिधित्व दिया गया था। उस दौरान 75 नए सचिव और संयुक्त सचिव नियुक्त किए गए थे। उस समय नए नियुक्त किए गए लोगों के साथ बैठक के दौरान राहुल ने कहा था कि पार्टी को “अपनी विचारधारा को प्रतिबिंबित करने के लिए बदलाव की जरूरत है।”
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कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टी के भीतर नियुक्तियों में उसकी विचारधारा झलकनी चाहिए। अगर विपक्ष के नेता शोषित समूहों के प्रतिनिधित्व और भागीदारी की बात कर रहे हैं, तो हमें सबसे पहले पार्टी के भीतर यह सुनिश्चित करना होगा और संगठनात्मक फेरबदल में ऐसा किया जा रहा है। अगर पार्टी को उच्च जाति की पार्टी होने की अपनी छवि बदलनी है, तो उसे अपनी नियुक्तियों और कामकाज में भी प्रतिबिंबित करना होगा।
वहीं हाल के महीनों में संसद में राहुल के भाषणों में जाति जनगणना की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित किया गया है। जिसे उन्होंने “समाज के लिए एक्स-रे” बताया है और पिछड़े और कमजोर समूहों के सशक्तिकरण पर जोर दिया है।
हालांकि, कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने इस बात पर चिंता जताई है कि राज्य के कई नेता जाति के मुद्दे पर राहुल की बात से सहमत नहीं हैं। एआईसीसी के एक नेता ने कहा कि राज्यों में कई नेता ऐसे हैं जो जाति के मुद्दे पर राहुल जी जैसी बात नहीं करते। हमें राज्यों में ऐसे नेताओं की जरूरत है जो पार्टी को अपना संदेश अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने में मदद कर सकें। और समाज की जाति संरचना को ध्यान में रखते हुए नियुक्तियां इस दिशा में एक कदम है।
(इंडियन एक्सप्रेस के लिए असद रहमान की रिपोर्ट)
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