पिछले 7 महीने से भी अधिक समय से किसानों का आंदोलन चल रहा है। किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा प्रभाव पंजाब और हरियाणा में देखने को मिल रहा है। किसान संगठनों ने भाजपा नेताओं के सामाजिक बहिष्कार का ऐलान कर रखा है। पिछले कुछ दिनों से किसान कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेताओं का भी विरोध कर रहे हैं और उन्हें अपने इलाकों में जाने से रोक कर रहे हैं। इसी मुद्दे पर जब पत्रकार प्रभु चावला ने कांग्रेस नेता मनीष तिवारी से सवाल पूछा कि क्या आपको भी गांव जाते हुए डर लगता है तो उन्होंने कहा कि लोगों में आक्रोश है।
आजतक न्यूज चैनल पर आयोजित सीधी बात कार्यक्रम में जब पत्रकार प्रभु चावला ने मनीष तिवारी से सवाल पूछा हुआ कि क्या आपको भी गांव में जाने से डर लगता है। तो इसपर जवाब देते हुए आनंदपुर साहिब से कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि मैं तो पिछले दिनों ही अपने क्षेत्र से लौटा हूं। गांवों में घूम रहा था इसलिए जानता हूं की वहां लोगों में कितना आक्रोश है। इस आक्रोश और गुस्से को समझने की जरूरत है।
“पंजाब के लोगों में आक्रोश है और उस आक्रोश को समझने की ज़रुरत है। अगर केंद्र सरकार अपनी ज़िद्द नहीं छोड़ेगी, किसानों की बात नहीं मानेगी तो परिस्थितियाँ बिगड़ जाएंगी”: मनीष तिवारी (@ManishTewari)।
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— AajTak (@aajtak) July 17, 2021
आगे मनीष तिवारी ने कहा कि ये हो सकता है कि इससे कांग्रेस को दिक्कत नहीं हो लेकिन भारतीय लोकतंत्र में अगर किसी भी राजनीतिक दल को लोगों तक जाने में दिक्कत होती है। तो लोगों के आक्रोश और रोष को समझने की जरूरत है। भाजपा नेताओं के साथ पंजाब में जो भी हो रहा है वह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसा किसी लोकतंत्र में नहीं होना चाहिए। लेकिन यह इसलिए हो रहा है क्योंकि लोगों के बीच गुस्सा बढ़ता जा रहा है। लोग मान रहे हैं कि केंद्र सरकार पूरी तरह से असंवेदनशील है।
इस दौरान कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने यह भी कहा कि लोग मान रहे हैं कि केंद्र सरकार उनकी बात नहीं सुन रही है। इसलिए लोग बाकी राजनीतिक दलों के नेताओं से कह रहे हैं कि आप हमारी बात जोर शोर से रखिए। जिससे इंसाफ मिल सके। कांग्रेस नेता ने यह भी कहा कि अगर केंद्र सरकार अपनी जिद नहीं छोड़ेगी तो परिस्थितियां बिगड़ जाएगी।
गौरतलब हो कि देशभर से आए किसान पिछले 7 महीने से भी अधिक समय से दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे हैं। किसान केंद्र सरकार द्वारा पारित किए गए तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच कई दौर की बातचीत होने के बावजूद भी कोई समाधान नहीं निकल पाया है। आखिरी बातचीत जनवरी महीने में ही हुई थी। केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक निलंबित करने का प्रस्ताव भी दिया था लेकिन किसान संगठनों ने इसे नामंजूर कर दिया था। हालांकि कृषि मंत्री ने भी साफ़ कर दिया है कि वे तीनों कानूनों के किसी भी प्रावधान पर बात करने को तैयार हैं लेकिन इन कानूनों को रद्द करने पर कोई बात नहीं होगी।