दिल्ली में कांग्रेस ने 1998 से लेकर 2013 तक 15 साल शासन किया। लेकिन आंदोलन से जन्मी आम आदमी पार्टी (आप) के राजनीति में आने के बाद कांग्रेस, आप और भाजपा के बाद तीसरे स्थान पर जा पहुंची है। देश की सबसे पुरानी पार्टी देश की राजधानी दिल्ली में अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है। दरअसल चुनावों में लगातार मिलने वाली हार से कांग्रेस के सामने मजबूत वापसी करने की चुनौती है।
गौरतलब है कि दिल्ली में कांग्रेस का प्रदर्शन अपने निचले स्तर पर है। हाल ही राजिंदर नगर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में पार्टी को सिर्फ 2.79 प्रतिशत वोट मिले। इतना ही नहीं कांग्रेस उम्मीदवार प्रेम लता की जमानत भी जब्त हो गई। वहीं पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने कुल 4.26 प्रतिशत वोट शेयर से कम हासिल किया था। दिल्ली के पिछले दो विधानसभा चुनावों में पार्टी ने एक भी सीट नहीं जीती है।
कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन पर पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने चिंता जताते हुए द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘हमें 2 फीसदी वोट मिले और हमें न तो सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया और न ही मुख्यधारा के मीडिया ने हमें ज्यादा महत्व दिया। यह बेहद चिंताजनक तस्वीर है। इससे पता चलता है कि लोग और मीडिया अब हमसे ज्यादा उम्मीद भी नहीं रखते हैं। ऐसा पहले दिल्ली में बसपा और अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ होता था।’
पार्टी नेताओं का हो रहा है मोह भंग: कांग्रेस का कमजोर प्रदर्शन पार्टी के लिए परेशानी का सबब तो बना ही है लेकिन इस बीच कई नेताओं का पार्टी से मोह भी भंग हो रहा है। लोग दल बदल रहे हैं। जैसे-जैसे कांग्रेस लड़खड़ाती जा रही है, वैसे-वैसे उसके नेता भी पाला बदलते जा रहे हैं। हाल ही में जंगपुरा से तीन बार के कांग्रेस विधायक तरविंदर सिंह मारवाह बुधवार को भाजपा में शामिल हो गए।
गौरतलब है कि दिल्ली में 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 22.5 प्रतिशत मतों के साथ दूसरे स्थान पर रही लेकिन 2020 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनावों में पार्टी का वोट शेयर 4.26 प्रतिशत तक गिर गया। नतीजों में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत सकी।
कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि राज्य स्तर के कई वरिष्ठ नेता ऐसे हैं जो अब संगठन में सक्रिय नहीं हैं और अपने व्यवसाय या फिर अपने विधानसभा क्षेत्रों में व्यस्त हैं। पार्टी के पदाधिकारी ने कहा, “इनमें कई नेता आप या भाजपा के संपर्क में भी हैं। अगर हालात ऐसे ही रहे, तो लोकसभा चुनाव(2024) नजदीक आने पर कई और नेता पार्टी छोड़ सकते हैं।”
ऐसे में कांग्रेस के सामने सवाल खड़ा है कि चुनावों में लगातार हो रहे बुरे प्रदर्शन और पार्टी नेताओं का दूसरे दलों में शामिल होना, उसकी वापसी कैसे तय करेगा। इसके ऊपर सीनियर नेताओं का पार्टी को मजबूत करने के लिए सक्रिय न होना भी पार्टी के लिए बड़ी परेशानी जैसा है।
वहीं पार्टी के अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि कांग्रेस को अपने लोकप्रिय और महत्वाकांक्षी नेताओं को आगे बढ़ाने की जरूरत है। क्योंकि हमारी लड़ाई केजरीवाल की लोकप्रियता और भाजपा के शक्तिशाली संगठन के खिलाफ है। ऐसा में हमें बड़े पैमाने पर लोकप्रियता वाले नेता और एक बेहतर रणनीतिकार, एक दीर्घकालिक योजना और इसे सही तरीके से अंजाम तक पहुंचाने वाली टीम की आवश्यकता है।