हत्या के एक मामले में यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार के गृह सचिव ने जांच एजेंसी ही तब्दील कर दी। पहले उन्होंने आदेश जारी किया और फिर कोर्ट को उसकी इत्तला दी। सुप्रीम कोर्ट को पता चला तो सरकार को झाड़ लगाते हुए बताया गया कि कानून क्या होता है। टॉप कोर्ट ने सरकार को बताया कि होम सेक्रेट्री को ये अधिकार नहीं है कि वो जांच एजेंसी बदल दें, या फिर किसी मामले में फिर से जांच का आदेश दें। ये काम कोर्ट का होता है। होम सेक्रेट्री को चाहिए था कि वो पहले जज की अनुमति लेते और फिर आदेश के मुताबिक काम करते। लेकिन वो तो मनमानी कर रहे हैं।
होम सेक्रेट्री ने जांच एजेंसी तब्दील करने का आदेश बागपत के बरौत थाना क्षेत्र में हुए एक हत्या के मामले में दिया था। पुलिस ने 1 मार्च 2015 को चार्जशीट दाखिल की थी। पहले मामले की जांच बरौत थाने के प्रभारी ने की थी। इलाका मजिस्ट्रेट ने 31 मार्च को चार्जशीट का संज्ञान लिया। उसके बाद मामले की जांच क्राईम ब्रांच के हवाले की गई। पुलिस ने 2 दिसंबर 2016 को आरोपी नंबर 8 और आरोपी नंबर 11 के खिलाफ एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की। आरोपी नंबर 8 ने सप्लीमेंट्री चार्जशीट के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में गुहार लगाई। लेकिन याचिका खारिज हो गई। फिर वो सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा। लेकिन उसे वहां से भी कोई राहत नहीं मिली। 2018 में सीजेएम बागपत ने उसके गैर जमानती वारंट निकाल दिए।
आरोपी की मां ने साधा था होम सेक्रेट्री से संपर्क, फिर CBCID को सौंप दी गई जांच
आरोपी नंबर 8 की मां होम सेक्रेट्री उत्तर प्रदेश के पास पहुंची और मामले की जांच सीबीसीआईडी के हवाले करने की गुहार लगाई। उसका कहना था कि उसके बेटे के खिलाफ पुलिस ने जो एक्शन लिया है वो जेल में बंद आरोपियों के बयान पर लिया गया है। 13 फरवरी 2019 को होम सेक्रेट्री ने जांच सीबीसीआईडी को सौंपने का आदेश दिया। उनके फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई पर वहां से याचिका खारिज हो गई। उसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। टॉप कोर्ट को बताया गया कि पहले होम सेक्रेट्री ने जांच तब्दील करने का आदेश दिया फिर जज को इत्तला दी गई।
सुप्रीम कोर्ट बोला- होम सेक्रेट्री को ये अधिकार नहीं, ऐसे तो होने लगेगी मनमानी
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने अपने आदेश में कहा कि होम सेक्रेट्री ने मामले की जांच सीबीआईडी को सौंप दी। उसके बाद जांच एजेंसी ने मजिस्ट्रेट को इत्तला दी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी गलत फैसला दे दिया। बेंच का कहना था कि अगर सीआरपीसी के तहत जांच एजेंसी बदलने का अधिकार होम सेक्रेट्री को दे दिया जाए तो कोई भी आरोपी उनसे संपर्क करके जांच एजेंसी बदलवा लेगा और पहले की चार्जशीट को खारिज कराते हुए वो बरी हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि जांच एजेंसी तभी बदली जा सकती है जब जज इसकी अनुमति दें।