जम्मू-कश्मीर को पांच साल बाद पहला मुख्यमंत्री मिल गया है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है, लेकिन उनके सामने चुनौतियों की लंबी फेहरिस्त है। सबसे बड़ी चुनौती राज्य में उपराज्यपाल के साथ अधिकारों का समन्वय स्थापित करना है। पिछले काफी वर्षों से राज्य उपराज्यपाल के नियंत्रण में रहा है। इससे राज्य का पूरा सिस्टम राजभवन से नियंत्रित होता रहा है। अभी राज्य केंद्रशासित प्रदेश है। जब तक यह पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं हासिल कर लेता है तब तक सीएम के हाथ बंधे ही रहेंगे। हालांकि उमर अब्दुल्ला और उनकी पार्टी ने चुनाव के दौरान जनता से वादा किया था कि वह पूर्ण राज्य का दर्जा हर हाल में दिलाएंगे।

पुलिस और कानून व्यवस्था LG के पास हैं

2019 में जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन हुआ था और राज्य को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया था। अब राज्य में विधानसभा होने के बावजूद सत्ता का एक बड़ा हिस्सा उपराज्यपाल के हाथ में है। पुलिस और कानून व्यवस्था जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर उपराज्यपाल का नियंत्रण है, जिससे मुख्यमंत्री की ताकत सीमित हो गई है। उमर अब्दुल्ला को उपराज्यपाल के साथ तालमेल बिठाकर काम करना होगा।

दिल्ली की तरह टकराव की आशंका भी बनी

उमर अब्दुल्ला के सामने दिल्ली की तरह टकराव की स्थिति बनने का खतरा है, जहां उपराज्यपाल और चुनी हुई सरकार के बीच अधिकारों को लेकर अक्सर तनाव होता रहा है। अभी हाल ही में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उमर अब्दुल्ला को सलाह दी थी कि अगर उन्हें ‘हाफ स्टेट’ में सरकार चलाने में दिक्कत हो, तो वे उनसे सलाह ले सकते हैं। उन्होंने दावा किया था कि वे नौ साल दिल्ली के सीएम रहे हैं और उन्हें इसका काफी अनुभव है।

जम्मू-कश्मीर के नए मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को सबसे पहले राज्य में विकास कार्यों को सुचारू रूप से चलाने के लिए उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के साथ बेहतर समन्वय स्थापित करना होगा। उपराज्यपाल की मंजूरी के बिना कोई भी कानून विधानसभा में पेश नहीं किया जा सकता है, जिससे सरकार की कार्यक्षमता प्रभावित हो सकती है। साथ ही संबंधों में टकराव की आशंका बनी रहेगी। दिल्ली की तरह जम्मू कश्मीर में भी केंद्र का हस्तक्षेप एलजी के माध्यम से बने रहने की आशंका है।

उपराज्यपाल का नौकरशाही और सरकारी नियुक्तियों पर भी नियंत्रण है। हाल ही में जम्मू-कश्मीर पुलिस सेवा भर्ती नियमों और सिविल सर्विस रूल्स में संशोधन कर दिया गया है, जिससे चुनी हुई सरकार के अधिकारों में कमी आई है। अब भर्ती प्रक्रिया लोक सेवा आयोग और चयन बोर्ड के माध्यम से संचालित होगी, जिससे उमर सरकार के लिए नई चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं।

हालांकि उमर अब्दुल्ला के पास मुख्यमंत्री का पद है, लेकिन राज्य के बदले हुए संवैधानिक ढांचे में उन्हें स्थिरता बनाए रखने के लिए बेहद मजबूत नेतृत्व और कुशल प्रशासनिक क्षमता की जरूरत होगी। उपराज्यपाल के साथ कामकाज के अधिकारों में संतुलन बनाकर ही उनकी सरकार सफल हो सकती है।