CJI Gavai: सीजेआई बीआर गवई ने शनिवार बड़ी बात कही। गवई ने कहा कि आरक्षण के लिए अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण (Sub-Classification Of Scheduled Castes For Reservation) पर उनके फैसले को लेकर काफी आलोचना हुई थी। जिसमें उनके समुदाय के लोग भी शामिल हैं।
पणजी में गोवा हाई कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक सम्मान समारोह में बोलते हुए सीजेआई गवई ने कहा कि पहले के वक्ताओं ने भी उप-वर्गीकरण पर मेरे फैसले के बारे में बात की है। मेरे अपने समुदाय के लोगों द्वारा उक्त फैसले के लिए मेरी व्यापक रूप से आलोचना की गई है, लेकिन मेरा हमेशा से मानना रहा है कि मुझे अपना फैसला लोगों की मांगों या इच्छाओं के अनुसार नहीं, बल्कि कानून के रूप में लिखना है, जैसा कि मैं समझता हूं और जिसको मेरी अंतरात्मा कहती है।
अगस्त 2024 में 6-1 बहुमत से दिए गए ऐतिहासिक फैसले में सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि अनुसूचित जातियां सामाजिक रूप से समरूप वर्ग (Socially Homogeneous Class) नहीं हैं और राज्यों द्वारा उनमें से कम सुविधा प्राप्त लोगों को आरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से उन्हें उप-वर्गीकृत किया जा सकता है।
अनुसूचित जातियों (और अनुसूचित जनजातियों) से ‘क्रीमी लेयर’ को बाहर रखने के अपने विचारों की आलोचना पर सीजेआई गवई ने कहा कि एक ही आरक्षित वर्ग से एक परिवार की कई पीढ़ियां आईएएस अधिकारी बनती हैं। गवई ने कहा कि मैंने खुद से यह सवाल पूछा था कि मुंबई या दिल्ली के सबसे अच्छे स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्ति के बेटे या बेटी …क्या उसकी तुलना गांव में रहने वाले और ज़िला परिषद या ग्राम पंचायत के स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने वाले राजमिस्त्री या खेतिहर मज़दूर के बेटे या बेटी से की जा सकती है? सीजेआई ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 का अर्थ यह नहीं है कि सभी समान लोगों के बीच समानता है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा कि हमारा संविधान (Constitution) असमान ( Unequals) लोगों के साथ उसी तरह व्यवहार की बात करता है ताकि वे समान बन सकें। इसलिए, एक गांव में रहने वाले मज़दूर के बच्चे और मुंबई में रहने वाले एक मुख्य सचिव के बच्चे को सर्वश्रेष्ठ स्कूलों और बेहतरीन सुविधाओं में पढ़ने के लिए एक समान दर्जा देकर, मेरा मानना है कि यह समानता की मूल अवधारणा पर प्रहार करता है, और सौभाग्य से, मेरे इस विचार का समर्थन सुप्रीम कोर्ट के तीन अन्य माननीय न्यायाधीशों ने भी किया है।
नागरिकों की संपत्तियों को ध्वस्त करने के लिए उचित प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश निर्धारित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बोलते हुए सीजेआई ने कहा कि यदि कार्यपालिका को ही न्यायाधीश बनने की अनुमति दी जाती है, तो हम शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा पर प्रहार करेंगे।
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उन्होंने कहा कि विध्वंस संबंधी फैसले की खूब चर्चा हुई। हम इस बात से व्यथित थे कि… जिन लोगों पर मुकदमा भी नहीं चलाया गया… उनके घरों को कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना ही ध्वस्त कर दिया गया। और हमने यह माना कि… घर में रहने वाले परिवार के सदस्यों को भी बिना किसी गलती के कष्ट सहना पड़ा। और अगर कोई व्यक्ति दोषी भी ठहराया जाता है, तब भी वह कानून के शासन का हकदार है… मुझे खुशी है कि हम दिशानिर्देश निर्धारित कर पाए।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम कार्यपालिका को जज न बनने पर रोक लगा सकते हैं। हमारा संविधान कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका की शक्तियों के पृथक्करण को मान्यता देता है और अगर कार्यपालिका को ही न्यायाधीश बनने की अनुमति दी जाती है, तो हम शक्तियों के पृथक्करण की मूल अवधारणा पर ही प्रहार करेंगे। सीजेआई ने कहा कि उन्हें खुशी है कि पिछले 22-23 वर्षों से न्यायाधीश के रूप में अपनी यात्रा में, वह सामाजिक और आर्थिक न्याय की दिशा में भारतीय संविधान या भारत के विकास में थोड़ा योगदान दे सके।
(इंडियन एक्सप्रेस के लिए पवनीत सिंह चड्ढा की रिपोर्ट)