अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने मंगलवार को कहा कि ईसाई मिशनरी पंजाब के सीमावर्ती इलाकों में “जबरन धर्मांतरण के लिए एक अभियान चला रही हैं।” शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) ने इसका मुकाबला करने के लिए सबको एकजुट करना शुरू कर दिया है।

सिख समुदाय की सर्वोच्च सीट के मुख्य पुजारी अकाल तख्त जत्थेदार ने एक बयान में कहा, “ईसाई मिशनरी पिछले कुछ वर्षों से सीमावर्ती इलाकों में जबरन धर्म परिवर्तन के लिए एक अभियान चला रही हैं। निर्दोष लोगों को ठगा जा रहा है या धर्म परिवर्तन के लिए लालच दिया जा रहा है। हमें ऐसी कई रिपोर्टें मिली हैं।”

ज्ञानी हरप्रीत सिंह दलित सिख समुदाय से हैं। उनकी टिप्पणी उस दिन आई जब अमृतसर में दलित और सिख संगठनों ने स्वर्ण मंदिर और अकाल तख्त में दलित सिखों के निर्बाध प्रवेश के अधिकार की बहाली और ‘कड़ाह प्रसाद’ पेश करने की 101वीं वर्षगांठ मनाई। माना जाता है कि 12 अक्टूबर 1920 को उस घटना ने एसजीपीसी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

उन्होंने कहा, “शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने जबरन धर्मांतरण का मुकाबला करने के लिए ‘घर घर अंदर धर्मशाला’ नाम से एक अभियान शुरू किया है, जो सिख धर्म पर एक खतरनाक हमला है।” अभियान के तहत सिख प्रचारक अपने धर्म पर साहित्य बांटने के लिए गांवों का दौरा करते रहे हैं।

जत्थेदार ने कहा, “धर्म अध्यात्म का विषय है। जबरन धर्म परिवर्तन या किसी को फुसलाना कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता। जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ अभियान को मजबूत करने में सभी सिखों को एसजीपीसी का समर्थन करना चाहिए। यह हमारे लिए एक बहुत ही गंभीर चुनौती है। हमें इसका मुकाबला करना है। एसजीपीसी का अभियान पूरे भारत में चलाया जाना चाहिए। अभी हम उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जो अधिक प्रभावित हैं।”

जत्थेदार के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए, डॉ. कश्मीर सिंह, जो अमृतसर में रहते हैं और दलित और अल्पसंख्यक संगठन पंजाब के प्रमुख हैं, ने कहा: “इस तरह के धर्मांतरण के पीछे कई कारण हैं। एक कारण यह है कि गांवों में दलितों को काफी भेदभाव का सामना करना पड़ता है। दलितों में अशिक्षा और गरीबी भी है, जो उन्हें आसान निशाना बनाती है। उन्हें बताया जाता है कि धर्म परिवर्तन से उन्हें विदेशों में बसने में मदद मिलेगी।

उन्होंने कहा, “मिशनरी दलितों को समझाने के लिए उनके घरों में जाते हैं। एसजीपीसी की ओर से ऐसा कोई प्रयास नहीं है। हमें इस तरह के धर्मांतरण को रोकने के लिए एसजीपीसी प्रचारकों और एसजीपीसी और उसके संस्थानों में अधिक दलित प्रतिनिधित्व की जरूरत है।”

सिंह ने कहा कि हालांकि वर्तमान अकाल तख्त जत्थेदार एक दलित सिख हैं, लेकिन “समान अधिकार सुनिश्चित करने के लिए अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है।” उन्होंने दलित सिखों को एसजीपीसी में प्रमुख पदों पर भर्ती करने, किसी भी भेदभाव के खिलाफ अकाल तख्त से सख्त आदेश जारी करने और एसजीपीसी के तहत सभी शैक्षणिक और व्यावसायिक संस्थानों में मुफ्त शिक्षा देने का आह्वान किया।