सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और राज्यसभा सांसद रंजन गोगोई ने AFSPA को भयावह बताया है। उन्होंने कहा कि इस कानून को खत्म करने की मांग 40 साल से चल रही है। बता दें कि गोगोई ने अपनी आत्मकथा ‘जस्टिस फॉर द जज: एन ऑटोबायोग्राफी’ की लॉन्चिंग के समय यह बातें कहीं। एक निजी न्यूज चैनल से बात करते हुए उन्होंने कहा कि सेना और अर्धसैनिक बलों को AFSPA के तहत कड़े अधिकार दिए जाते हैं। जिसके चलते दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं होती हैं।
दरअसल हाल ही में नगालैंड में सेना द्वारा हुई गोलीबारी की घटना के बाद आफस्पा को वापस लेने की मांग तेज हो गई है। ऐसे में रंजन गोगोई ने कहा कि नगालैंड की घटना दुर्भाग्यपूर्ण है, ये एक भूल थी। लेकिन कड़े कानूनों की भी आवश्यकता होती है। कई बार आपको इसकी जरूरत महसूस होती है। वहीं कभी-कभी दुर्घटनाओं और ज्यादतियों के मामलों में इसे निरस्त करने की आवश्यकता होती है। सच्चाई दोनों तरफ है।
उन्होंने कहा कि मेरी राय जल्दबाजी में कोई फैसला लेने का नहीं, बल्कि संतुलन बनाने का है। इसकी जिम्मेदारी कार्यपालिका की है। रंजन गोगोई ने कहा कि सरकार को संतुलन बनाने की जरूरत है।
नगालैंड में क्या हुआ?: नगालैंड के मोन जिले में 4 और 5 दिसंबर को एक सैनिक सहित 15 लोगों की मौत के बाद सरकार द्वारा अफ्सपा को खत्म करने की मांग फिर से शुरू हो गई है। बता दें कि आरोप है कि 4 दिसंबर को कोयला खनिकों की एक पिकअप गाड़ी पर भारतीय सेना के विशेष बलों ने गोलीबारी की। जिसमें 13 कोयला खदान कर्मियों की मौत हो गई। इस दौरान गुस्साई भीड़ ने कोन्याक यूनियन और असम राइफल्स के कैंप पर धावा बोल दिया। कार्यालयों में तोड़फोड़ करने लगे। कैंप के कुछ हिस्सों में आग भी लगा दी थी।
क्या है AFSPA: इसका पूरा नाम आर्म्ड फोर्सेज़ स्पेशल पावर एक्ट है। 1958 में इस कानून को देश के कई ‘अशांत’ इलाकों में लागू किया गया। जिसमें त्रिपुरा, असम, मणिपुर, जम्मू-कश्मीर, पंजाब आदि राज्य शामिल हैं।
दरअसल केंद्र सरकार को जहां लगता है कि शांति व्यवस्था भंग हो सकती है, वहां सरकार इस कानून को लागू कर सकती है। इसमें सेना को अहम भूमिका दी जाती है। हालांकि हालात ठीक होने के बाद कई जगहों से आफस्पा को वापस भी लिया गया है।