पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने हाल ही में एक इंटरव्यू में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष की प्रशंसा करते हुए कहा था कि राहुल गांधी अब अलग तरह की राजनीति कर रहे हैं। स्मृति के इस बयान से कई लोगों को आश्चर्य हुआ था लेकिन राहुल के सियासी खेल में आया यह बदलाव सबसे छुपा भी नहीं है। कांग्रेस नेता ने हाल के दिनों में कांग्रेस की राजनीति में कई बदलाव लाए हैं।
पिछले कुछ सालों में राहुल गांधी कई राजनीतिक रणनीतियों और पहलों में सक्रिय रूप से लगे हुए हैं। वह कांग्रेस के पुनर्गठन और पुनरुत्थान पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इसमें पार्टी की जमीनी स्तर पर पहुंच को बढ़ाने और संगठनात्मक स्तर पर सुधार करने के प्रयास शामिल हैं।
राहुल पार्टी के भीतर आंतरिक सुधारों पर जोर दे रहे हैं, जिसमें पार्टी की निर्णय लेने की प्रक्रियाओं और नेतृत्व संरचनाओं में बदलाव भी शामिल है। वह पार्टी को आधुनिक बनाने की कोशिश कर रहे हैं। राहुल कांग्रेस की चुनावी रणनीति को सुधारने पर काम कर रहे हैं, जिसका मकसद राज्यों और राष्ट्रीय चुनावों में पार्टी की स्थिति को मजबूत करने के लिए क्षेत्रीय दलों और अन्य विपक्षी समूहों के साथ गठबंधन बनाना है।
पिछले एक दशक में बदली राहुल गांधी की राजनीतिक दिशा
राहुल गांधी को यहां तक पहुंचने में एक दशक लग गया जहां उन्हें भारत में दूसरे सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक नेता के रूप में गंभीरता से लिया जाना चाहिए। इंडिया टुडे के हालिया मूड ऑफ द नेशन पोल से पता चलता है कि राहुल को नरेंद्र मोदी के बाद प्रधानमंत्री बनने के लिए दूसरे सबसे उपयुक्त व्यक्ति के रूप में देखा जाता है। इस पोल के मुताबिक वह अभी भी मोदी से कुछ पीछे हैं, लेकिन अमित शाह, योगी आदित्यनाथ और नितिन गडकरी से आगे हैं।
इससे पता चलता है कि वह उन दिनों से बहुत आगे आ गए हैं जब वह मुश्किल से हिंदी में भाषण दे पाते थे और जब भाषण देते थे तो भ्रमित करने वाली बातें कहते थे जैसे कि भारत एक देश नहीं बल्कि मधुमक्खी का छत्ता है। इस बयान का इस्तेमाल नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनावों में उन्हें देशद्रोही साबित करने के लिए किया था।
सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव हैं राहुल
इंडियन एक्सप्रेस पर लिखे अपने एक आर्टिकल में तवलीन सिंह लिखती हैं, “राहुल गांधी सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय हैं और हर तरह की चीजें पोस्ट करते रहते हैं। पिछले हफ्ते, उन्होंने श्रीनगर में कश्मीरी लड़कियों के साथ बातचीत और जिउ-जित्सु नामक मार्शल आर्ट का प्रदर्शन करते हुए अपनी रील पोस्ट कीं। उनके कई पोस्ट का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है और उनके कई बयान निश्चित रूप से नासमझी वाले हैं।”
लेखिका आगे लिखती हैं, “जब उन्होंने कुछ दिन पहले कहा था कि आपको मिस इंडिया बनने के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाली कोई दलित, आदिवासी या ओबीसी लड़की कभी नहीं मिलेगी तो मुझे यकीन नहीं था कि उनका क्या मतलब था। मिस इंडिया बनना कोई सरकारी नौकरी नहीं है जिसे जाति के आधार पर आरक्षित किया जा सके। यह एक निजी प्रतियोगिता है जिसमें कोई भी भारतीय महिला भाग ले सकती है तो वास्तव में उनका क्या मतलब था?”
जातिगत राजनीति पर राहुल गांधी का ज़ोर
जातियों के प्रति उनका जुड़ाव न केवल चौंकाने वाला है बल्कि मूर्खतापूर्ण भी है। जब अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन किया गया तो उन्होंने कहा कि उन्हें अधिक दलित, आदिवासी और ओबीसी लोगों की उपस्थिति न देखकर निराशा हुई। क्या उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि प्रधानमंत्री मोदी खुद ओबीसी जाति से आते हैं? कुछ समय पहले उन्होंने कहा था की थी कि बॉलीवुड में निचली जातियों को प्रतिनिधित्व न मिलता देख उन्हें दुख होता है। पर यहां फिल्म स्टार बनना भी कोई सरकारी नौकरी नहीं है। यह बॉक्स ऑफिस है जो तय करता है कि कौन स्टार बनेगा। जब विपक्ष का नेता इस तरह की बातें कहता है तो उसे गंभीरता से लेना मुश्किल हो जाता है।
इन सबसे अलग भारत जोड़ो यात्रा और कुली, मोची, डीटीसी बस ड्राइवर जैसे आम लोगों से मुलाक़ात कर वह यह साबित करना चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी के उलट वह एक आम नेता हैं जो आम लोगों से जुड़े रहते हैं। राहुल गांधी सामाजिक न्याय, आर्थिक असमानता और किसानों के अधिकारों जैसे मुद्दों पर प्रकाश डालते रहे हैं। उनके हालिया अभियानों में इन मुद्दों पर गहरा ध्यान केंद्रित किया गया है, जिसका लक्ष्य व्यक्तिगत और नीति दोनों स्तरों पर मतदाताओं से जुड़ना है।
सोशल मीडिया और डिजिटल कैंपेनिंग पर जोर
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने मतदाताओं के साथ सीधे जुड़ते हुए सार्वजनिक मंचों और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर अपनी उपस्थिति बढ़ाई है। यह बदलाव युवा मतदाताओं से जुड़ने की एक व्यापक रणनीति को दर्शाता है।
राहुल गांधी ने आधुनिक राजनीति में सोशल मीडिया और डिजिटल कैंपेनिंग के महत्व को पहचाना है। उन्होंने कांग्रेस पार्टी के लिए एक मजबूत डिजिटल उपस्थिति बनाने, युवाओं से जुड़ने और पार्टी के संदेश को फैलाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का उपयोग करने में भारी निवेश किया है।
युवाओं और हाशिए पर रहने वाले लोगों तक पहुंच
राहुल गांधी ने युवाओं और समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों तक पहुंचने के लिए प्रयास किया है। उन्होंने युवाओं से जुड़ने के लिए “युवा क्रांति यात्रा” जैसी पहल शुरू की है और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर बात की है। वह भारत जोड़ो यात्रा, भारत जोड़ो न्याय यात्रा और हाल ही में अनाउंस की गयी भारत डोजो यात्रा के माध्यम से युवाओं के बीच अपनी पहुंच को बढ़ाने की कोशिश की है।
राहुल गांधी ने एक ऐसे राजनेता की छवि बनाई है जो पीएम मोदी के बिल्कुल विपरीत है। वह स्वयं को लोगों के बीच के व्यक्ति के रूप में दर्शाने में सफल रहे हैं। उन्होंने नरेंद्र मोदी को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में चित्रित करने का अच्छा काम किया है जो इतनी ऊंची ऊंचाइयों पर रहता है कि उसका आम भारतीयों से संपर्क टूट गया है।
बीजेपी के खिलाफ आक्रामक रुख
राहुल गांधी ने पार्टी की नीतियों और कार्यों की आलोचना करते हुए बीजेपी के खिलाफ आक्रामक रुख अपना लिया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भ्रष्टाचार और साठगांठ वाले पूंजीवाद का आरोप लगाते हुए तीखे हमले किए हैं।
गठबंधन और गठबंधन की राजनीति: राहुल गांधी ने वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में गठबंधन और गठबंधन की राजनीति के महत्व को पहचाना है। उन्होंने समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ गठबंधन किया है और भाजपा के खिलाफ एकजुट विपक्ष बनाने के लिए काम किया है।
मोदी की लोकप्रियता घटी, राहुल की बढ़ी
यहां 2019 और 2024 में सीएसडीएस-लोकनीति के द्वारा किए गए पोस्ट पोल सर्वे का भी जिक्र करना जरूरी होगा। इसमें उन्हें बतौर प्रधानमंत्री पसंद करने वालों लोगों की संख्या 2019 की तुलना में करीब चार फीसदी बढ़ी है, जबकि नरेंद्र मोदी को बतौर पीएम पहली पसंद बताने वालों की संख्या करीब सात फीसदी कम हुई है।
साल | पीएम पद के लिए राहुल गांधी को पसंद करने वाले लोग | पीएम पद के लिए नरेंद्र मोदी को पसंद करने वाले लोग |
2019 | 23.2% | 46.5% |
2024 | 27% | 40.7% |
लोकसभा चुनाव 2024 परिणाम
हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव 2024 में पिछले एक दशक में अपने प्रदर्शन में सुधार करते हुए कांग्रेस ने 99 सीटें जीतीं। वहीं, राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश की रायबरेली और केरल की वायनाड दोनों लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की। इससे पहले हुए चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा था। 2029 के चुनावों में कांग्रेस को महज 52 और 2014 में 44 सीटों से संतोष करना पड़ा था।
पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का सीट शेयर
