जब देश में भ्रष्टाचार के किस्से आए दिन पकड़ में आते रहते हैं, ऐसे में एक सरकारी संस्था जो देश का गौरव बनी हुई है, वह इसरो है।आज इस संस्था के अंदर कार्यरत वैज्ञानिकों पर हर एक भारतीय गर्व कर रहा है। उसने विश्व में हमारी कीर्ति बढ़ाई है। हमारे वैज्ञानिकों की अटूट मेहनत का ही परिणाम है कि आज चंद्रयान-तीन का सफल प्रक्षेपण हो पाया।

अब इंतजार है हर एक भारतीय को उस पल का जब यह चंद्रमा पर उतरने में सफल होगा। इसी के साथ भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा, जबकि चंद्रमा के दक्षिणी हिस्से पर उतरने वाला भारत पहला देश बनेगा।आजादी के बाद से इसरो ने वैज्ञानिक क्षेत्र में आमूलचूल प्रगति की है आज दुनिया में सबसे सस्ते राकेट इसरो प्रक्षेपित करता है। इससे भारत की अंतरिक्ष बाजार में धाक जमी हुई है।

यह नए आत्मनिर्भर भारत के लिए दूरगामी घटना होगी। इसके सफल होने से हमारा देश और हमारे वैज्ञानिक संस्था आत्मनिर्भर तो बनेंगे ही, साथ ही वैश्विक स्तर पर हमारी ताकत में भी इजाफा होगा। इसके अलावा अंतरिक्ष पर्यटन में भी एक सकारात्मक प्रतिस्पर्धा का जन्म होगा। इसी के साथ हम अंतरिक्ष के विस्तार को और सूक्ष्मता से परख सकेंगे और चंद्रमा के रासायनिक तत्त्वों, मिट्टी और जल की उपस्थिति और वहां का वातावरण, इन सबकी महत्त्वपूर्ण जानकारी जुटा पाएंगे।

भूमंडलीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी केवल दो फीसद है। निश्चित तौर पर इस अभियान के सफल होने से हम इस क्षेत्र में प्रगति कर सकेंगे। हमें यह जानकर खुशी होती है कि इस अभियान को लेकर केवल हम ही उत्सुक नहीं हैं, बल्कि अमेरिका, रूस, चीन भी इस पर अपनी नजर बनाए हुए हैं। वे भी इसके महत्त्व को जानते हैं।
सौरव बुंदेला, भोपाल, मप्र।

इंसानियत की जरूरत

हिमाचल प्रदेश की पहचान पूरी दुनिया में ईमानदारी, मेहनत और इंसानियत के ठौर के रूप में भी है। यह देवभूमि और पर्यटन के लिए भी दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इस बार गर्मी के मौसम में भी पर्यटक दूर दूर से हिमाचल आए, लेकिन बहुत ही दुख की बात है कि इस बार कुदरत का कहर बारिश के रूप में इस कदर बरपा कि यह हिमाचल में बहुत से लोगों के लिए आफत बना।

कुछ पर्यटकों को भारी नुकसान भी उठाना पड़ा। हालांकि प्रदेश के इस आपदा से निपटने के लिए ठोस कदम भी उठाए गए और बाढ़ग्रस्त इलाकों का दौरा भी किया गया। केंद्र सरकार भी इस आपदा से प्रदेश की मदद करने की कोशिश कर रही है।

प्रदेश इस समय प्राकृतिक आपदा से जुझ रहा है। इससे प्रदेश को करोड़ों का नुकसान भी हुआ। इस प्राकृतिक आपदा से उबरने के लिए अभी समय लगेगा। लेकिन इस घड़ी में प्रदेश के आम लोगों को भी सरकार, प्रशासन का सहयोग करना चाहिए। साथ ही जो पर्यटक इस आपदा की चपेट में आएं, उनकी मदद करनी चाहिए।

यह नहीं कि संकट की इस घड़ी में पर्यटकों से कोई होटल, रेस्तरां, टैक्सी या अन्य व्यापारी अधिक पैसे किसी चीज के लिए मांगें। हमें इस संकट की घड़ी में दुनिया को एक बार फिर से अपनी ईमानदारी और इंसानियत की भावना से परिचय देते हुए अपनी इंसानियत की मिसाल कायम करनी है।

बरसात के कारण जिन राज्यों में नुकसान हुआ है, उसके लिए बहुत से दानवीर अपना योगदान दे रहे हैं। सरकार भी गरीबों की मदद के लिए विशेष पैकेज जारी कर रही। लेकिन इस राहत और मदद का जब कुछ जरूरतमंद लोगों को लाभ नहीं मिलता है, तब कई सवाल खड़े हो जाते हैं?

इस बात का खयाल रखना भी जरूरी है कि कुछ लालची और संवेदनहीन लोग इसका फायदा उठाकर लोगों से धन या अन्य समान तो एकत्रित कर लेते हैं, लेकिन वह प्रकृति के कहर भुगत रहे लोगों तक नहीं पहुंचता है। इसलिए सरकार की तरफ से जो राहत कोष बनाए जाते हैं। केवल उन्हीं में सहायता के लिए अपना योगदान देना चाहिए।
राजेश कुमार चौहान, जलंधर

जिम्मेदारी का सवाल

अगर एक सक्षम व्यक्ति आश्रित पत्नी के भरण-पोषण को बाध्य है तो आश्रित मां के लिए क्यों नहीं? कर्नाटक हाई कोर्ट ने बुजुर्ग मां को दस हजार रुपए महीने भरण-पोषण देने के आयुक्त के आदेश को चुनौती देने वाले दो बेटों की याचिका खारिज करते हुए अपने आदेश में यह टिप्पणी की। अदालत ने दोनों बेटों पर पांच हजार रुपए जुर्माना भी लगाते हुए आदेश दिया कि यह राशि तीस दिन के भीतर अपनी मां को देंगे।

अगर तय सीमा में पैसा नहीं दिया जाता है तो रोजाना एक सौ रुपए अतिरिक्त जुड़ते जाएंगे। दरअसल, जो दलीलें बेटों की ओर से दी जा रही थीं, वह कानून और संबंधित धर्म का उल्लंघन करती हैं। कानून, धर्म और परंपरा के मुताबिक बेटों को अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल करनी चाहिए। तैत्तिरीय उपनिषद में कहा गया है कि जब कोई विद्यार्थी गुरुकुल में रहता है तो गुरु उसे यही सीख देते हैं कि माता-पिता, गुरु और अतिथि देवता होते हैं।

हाई कोर्ट ने कहा कि सद्विचार यही कहता है कि व्यक्ति को भगवान की पूजा करने से पहले अपने माता-पिता, गुरु और अतिथि का सम्मान और सेवा करनी चाहिए। लेकिन अफसोस की बात यह है कि आजकल युवाओं का एक वर्ग वृद्ध और बीमार माता-पिता की देखभाल नहीं करता। यह एक तरह से जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ना है, जो कतई नहीं होना चाहिए।
सदन जी पत्रकार, पटना।

प्रकृति के आगे

देश के कई हिस्सों में मूसलाधार बारिश ने शहरों में व्यवस्था के तमाम दावों को धो दिया है। ‘स्मार्ट सिटी’ की परिकल्पना वाले शहरों की हालत देखें तो यह मानना पड़ता है कि हम अपने आप को कितना ही काबिल समझ लें, पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रकृति हमसे ज्यादा ताकतवर है। अगर हम अपनी ज्यादा तेजी दिखाएंगे तो और प्रकृति से टकराएंगे तो हमारी बुरी हालत होने वाली है। हमें जो भी विकास करना है वह प्रकृति के साथ कदम मिलाते हुए ही करना चाहिए।
विनय मोघे, पुणे, महाराष्ट्र।