केंद्र सरकार को किसानों के लिए और भी उदार होने की जरूरत है। इतनी उदार कि किसी किसान को फसल उगाने के लिए साहूकार या बैंक से कर्ज न लेना पड़े और कर्ज न चुकता कर पाने की हालत में ऐसे कदम उठाने पर मजबूर न होना पड़े, जो उसके परिवार के लिए दुख की वजह साबित हो। यह केंद्र सरकार की किसानों के कल्याण को लेकर प्रतिबद्धता दर्शाता है कि हर फसल के समय वह बीजों, उर्वरकों आदि पर सबसिडी की घोषणा कर देती है, लेकिन खेती में लगने वाले दूसरे खर्चे भी कम नहीं होते।

खरीफ फसल के लिए गांवों में तैयारियां शुरू हो गई हैं। देसी, कंपोस्ट और ढैंचे की खाद तैयार करने के लिए भी कवायदें शुरू हो गई हैं। खरीफ फसल के लिए देसी खाद बनाने के पीछे किसानों का मकसद पैसा बचाना रहता है, इससे वे जहां रासायनिक उर्वरकों पर खर्च किए जाने वाले पैसे की बचत कर पाते हैं, वहीं फसल में रसायनों के प्रयोग से बच जाते हैं।

मगर क्या वाकई ऐसा हो पाता है? बगैर फास्फेट और पोटाश के इस्तेमाल के, उनकी फसल वैसी होगी जैसी वे चाहते हैं? रासायनिक खाद डालना हर फसल के लिए वैसे ही जरूरी माना जाता है, जैसे कि नए बीज का इस्तेमाल। इसकी वजह है। किसान किसी भी तरह का जोखिम उठाना नहीं चाहता। क्योंकि जितनी लागत हर फसल में लगती है, उसमें उन जरूरी कीटनाशकों, उर्वरकों और बीजों को भी शामिल किया जाता है, जो फसल की ज्यादा पैदावार को सुनिश्चित करते हैं।

केंद्र सरकार ने किसानों को खरीफ की फसल के लिए राहत पहुंचाने के मकसद से खरीफ सत्र में मृदा पोषक तत्त्वों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए उर्वरक सबसिडी पर कुल 1.08 लाख करोड़ रुपए खर्च करने की घोषणा की है। केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में खरीफ सत्र 2023-24 के लिए किसानों को फास्फेट और पोटाश उर्वरकों पर 38 हजार करोड़ रुपए की सबसिडी देने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। इस तरह खरीफ सत्र के लिए सरकार का कुल सबसिडी व्यय बढ़कर 1.08 करोड़ रुपए हो जाएगा।

गौरतलब है कि इसके पहले यूरिया पर 70,000 करोड़ रुपए सबसिडी देने की घोषणा बजट सत्र में पहले ही की जा चुकी है। सरकार ने यह कह कर किसानों को निश्चिंत कर दिया कि उर्वरकों की खुदरा (एमआरपी) कीमतों में इस अवधि में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। फिलहाल, यूरिया की कीमत 276 रुपए प्रति बोरी है, जबकि डीएपी 1,350 रुपए प्रति बोरी पर बिक रही है। सरकार के इस नए कदम से करीब 12 करोड़ किसानों को फायदा पहुंचने की उम्मीद है। सवाल है कि केंद्र सरकार ने सबसिडी देने का कोई मानक तय किया होगा। वजह साफ है, देश के बारह हजार करोड़ किसानों को ही इस नई सबसिडी से फायदा पहुंचेगा। बाकी किसानों को सबसिडी का हकदार क्यों नहीं माना गया?

अभी केंद्र सरकार हर किसान को हर साल 227 डालर यानी 15674 रुपए सबसिडी के तौर पर देती है। यह बिजली, पानी, खाद, बीज और न्यूनतम समर्थन मूल्य आदि के तौर पर दी जाती है। गौरतलब है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य अलग-अलग फसल के हिसाब से तय होता है। उर्वरकों पर जो सबसिडी सरकार देती है उसमें डीएपी की कीमत का 55 फीसद और पोटाश की कीमत का 31 फीसद देती है। इसी प्रकार यूरिया पर प्रत्येक बोरी पर 3,700 रुपए की सबसिडी खाद कंपनियों या किसानों को देती है।

पिछले साल केंद्र सरकार ने 2022-23 के संशोधित अनुमान में 2 लाख 25 हजार 220 करोड़ रुपए के मुकाबले 2023-24 के बजट में सबसिडी के लिए 1 लाख 75 हजार 099 करोड़ रुपए निर्धारित किए। अगर देखा जाए तो अमेरिका में किसानों को दी जाने वाली सबसिडी के मुकाबले यह ऊंट के मुंह में जीरा जैसा भी नहीं है। इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों को किसानों को दी जाने वाली रियायतों पर सहानुभूति के साथ विचार करना चाहिए। एक तरफ किसान इस देश का सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति ‘अन्नदाता’ कहा जाता है, वहीं दूसरी तरफ उसके लिए राहत के नाम उतना भी नहीं मिलता, जो फसल के लागत मूल्य को कम करने में कुछ राहत दिलाए।

उर्वरक सबसिडी से खरीफ की फसल के उत्पादन को बढ़ाने में तब तक मदद नहीं मिल सकती, जब तक सिंचाई, बीज, बिजली और कृषि उपकरणों पर सबसिडी को पहले से कम से कम दोगुना न किया जाए। इसकी वजह है, आमतौर पर महंगाई न होते हुए भी किसान को महंगे बीज, उर्वरक खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है। आमतौर पर केंद्र और राज्य सरकार के जरिए मिलने वाली राहत के बारे में किसानों को कोई जानकारी नहीं होती।

किसान के पास कोई ऐसा तंत्र नहीं है कि वह केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा मिलने वाली राहतों की जानकारी उचित वक्त पर पा जाए और उसका फायदा ले सके। हां, इतना जरूर हुआ है कि जबसे राहत सीधे किसानों के बैंक खातों में पहुंचने लगी है, तबसे वे कई तरह की समस्याओं से बचने लगे हैं। मगर ऐसा हमेशा नहीं होता। कई दफा तकनीकी खराबी की वजह से राहत किसान के खाते में नहीं पहुंच पाती और किसान बगैर जानकारी के फसल उगाने की तैयारी में लगा रहता है। इस तरफ केंद्र और राज्य सरकारों को गौर करना चाहिए।

दूसरी बात, किसान बगैर सबसिडी वाला बीज, खाद खरीदने के लिए मजबूर होता है। ग्राम प्रधान गुटबाजी की वजह से किसान को सरकारी राहतों की जानकारी नहीं देता। ऐसे में सबसिडी के साथ-साथ तंत्र को भी मजबूत करना पड़ेगा, जो किसानों को हर तरह की जानकारी दे सके। कृषि वैज्ञानिक स्वामी रमानाथन ने जो सिफारिश कृषि सबसिडी के लिए की थी, वह व्यावहारिक धरातल पर भी समझ में आए।

मौजूदा सरकार के पहले किसानों को सबसिडी के नाम पर महज दिखाने के लिए झुनझुना थमा दिया जाता था। उसका कोई मायने नहीं हुआ करता था। यानी सबसिडी किसानों के साथ मजाक समझ में आती थी, लेकिन सरकार बदली तो सबसिडी को बढ़ाया गया, लेकिन उतना नहीं कि सबसिडी पाकर किसान निश्चिंत हो सकें कि अगर किसी वजह से उसकी फसल खराब भी हो जाती है, तो उसे कम से कम घाटा तो नहीं होगा। किसान आंदोलन में भी किसानों ने यह बात उठाई थी कि जिन किसानों की आय का साधन केवल और केवल खेती है, उसे इतनी सबसिडी तो केंद्र सरकार को देनी चाहिए, जिससे फसल बर्बाद होने पर उसे मौत के मुंह में जाने के लिए मजबूर न होना पड़े।

केंद्र और राज्य सरकारें अगर खेती की हर चीज पर जरूरी रियायत देतीं, तो महाराष्ट्र, पंजाब, उत्तर प्रदेश और बिहार के किसानों को साहूकार से कर्ज न लेना पड़ता और कृषि के घाटे में जाने पर साहूकार को कर्ज न लौटाने की हालत में गांव में अपनी इज्जत ढंकने के नाम पर जहर या फांसी के फंदे को न चुनता। केंद्र सरकार को किसानों के लिए और भी उदार होने की जरूरत है।

इतनी उदार कि किसी किसान को फसल उगाने के लिए साहूकार या बैंक से कर्ज न लेना पड़े और कर्ज न चुकता कर पाने की हालत में ऐसे कदम उठाने पर मजबूर न होना पड़े, जो उसके परिवार के लिए दुख की वजह साबित हो। यह केंद्र सरकार की किसानों के कल्याण को लेकर प्रतिबद्धता दर्शाता है कि हर फसल के समय वह बीजों, उर्वरकों आदि पर सबसिडी की घोषणा कर देती है, लेकिन खेती में लगने वाले दूसरे खर्चे भी कम नहीं होते।

अगर परिवार में हाथ बंटाने वाला कोई नहीं है, तो मजदूर रखना उस किसान की मजबूरी होती है। इसके लिए उसे कम से कम प्रतिदिन चार सौ रुपए खर्च करने पड़ते हैं। इसी तरह के दूसरे कई खर्चें होते हैं। इन ऊपरी खर्चों के लिए उसे साहूकार से कर्ज लेना पड़ता है। इसी तरह जुताई, बिजाई और पशुओं से बचाने के लिए सुरक्षा-बाड़ तैयार करने में भी कम खर्च नहीं होता। इसलिए अगर सबसिडी लागत मूल्य से ज्यादा मिलेगी, तो किसान निश्चिंत होकर खेती करेगा।