Rajya Sabha Cash Bundle Recovered: देश में इस वक्त संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है। लेकिन शुक्रवार को राज्यसभा में ऐसा घटनाक्रम सामने आए जिसने सियासत की दुनिया में तूफान मचा दिया। मामला है कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अभिषेक मनु सिंघवी की सीट के पास से नोटों की गड्डी मिलने का। हालांकि, इस पूरे मामले से अभिषेक मनु सिंघवी ने अपना पल्ला यह कहते हुए झाड़ लिया है कि वो संसद में 500 रुपये से ज्यादा लेकर जाते ही नहीं हैं।

इस पूरे घटनाक्रम पर हंगामा होने के बाद राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने मामले की जांच कराने की बात कही है। लेकिन जानकारी के लिए बता दें कि यह पहली बार नहीं है कि जब संसद में नोटों का शोर सुनाई दिया हो। पहले भी दो मौकों पर नोटों की वजह से देश की संसद सुर्खियों में रह चुकी है।

पहला घटनाक्रम- साल 1993

बात साल 1993 की है। जब केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार थी, लेकिन सरकार के पास पूर्ण बहुमत नहीं था। बाबरी विध्वंस के बाद नरिसम्हा राव पार्टी नेताओं के निशाने पर भी थे। राव और अर्जुन सिंह के बीच मतभेदों की खबर रोज अखबारों में छपती थी। इस बीच भाजपा ने राव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे दिया। पार्टी का कहना था कि सरकार अब अल्पमत में आ गई है। इस अविश्वास प्रस्ताव पर तीन दिन तक खूब बहस हुई और जब वोटिंग का वक्त आया, तो सभी सन्न रह गए।

नरिसम्हा राव के पास उस वक्त 244 सांसदों का ही साथ था, लेकिन वोट उन्हें 265 मिले। अविश्वास प्रस्ताव के वक्त विपक्ष को सिर्फ 251 वोट मिल पाए और राव की सरकार गिरने से बच गई।

‘मैं राज्यसभा में 500 रुपये लेकर जाता हूं’, सीट के नीचे नोटों की गड्डी मिलने पर अभिषेक मनु सिंघवी ने दी सफाई

1996 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसद सूरज मंडल ने एक खुलासा किया। मंडल के मुताबिक, 1993 में पैसे बंटने की वजह से राव की सरकार बच पाई। मंडल का कहना था कि सरकार बचाने के लिए एक-एक सांसदों को 40 लाख रुपए दिए गए थे। कहा जाता है कि कैश कांड की यह पूरी स्क्रिप्ट बूटा सिंह ने लिखी थी, जो राव की सरकार में कद्दावर मंत्री थे। मंडल जेएमएम की तरफ से इस डील को देख रहे थे। 1993 में जेएमएम के साथ-साथ चौधरी अजित सिंह की पार्टी भी टूटी थी।

इस पूरे घटनाक्रम में सीबीआई की तरफ से दाखिल हलफनामे में कहा गया था कि पैसा कैश में मिला था और जेएमएम के सांसदों ने इस पैसे को स्थानीय स्तर पर ब्याज पर लगा दिया। हालांकि, बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, लेकिन केस में सभी आरोपी बरी हो गए। दिल्ली हाईकोर्ट ने साल 2000 में पूरे मामले को लेकर सीबीआई को लताड़ लगाई।

दूसरा घटनाक्रम- साल 2008

साल 2008 में भी इसी तरह का मामला सामने आया। उस वक्त मनमोहन सिंह सरकार ने अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील की थी। इस समझौते के खिलाफ सीपीएम ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इसके तुरंत बाद बीजेपी ने अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे दिया।

संसद में इस अविश्वास प्रस्ताव पर खूब बहस हुई। लेकिन जब बारी वोटिंग की आई तो बीजेपी के तीन सांसदों ने नोट लहरा दिए। यह नोट तत्कालीन लोकसभा के स्पीकर सोमनाथ चटर्जी के टेबल पर लहराए गए। नोट लहराने वाले बीजेपी के सांसद थे- अशोक अर्गल, फगन कुलस्ते और महावीर भागौरा।

तीनों सांसदों का आरोप था कि मुझे पैसे सपा के अमर सिंह ने दिए हैं। यह पैसा सरकार के पक्ष में क्रॉस वोटिंग के लिए दिया गया है। इस आरोप को तब और बल मिला, जब समाजवादी पार्टी ने मनमोहन सरकार का समर्थन कर दिया। इस अविश्वास प्रस्ताव में सरकार के पक्ष में 268 वोट पड़े। विपक्ष को 263 वोट मिले। मतदान के दौरान बीजेपी के आठ सांसदों ने पार्टी का ही खेल बिगाड़ दिया।

हालांकि, भाजपा ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया और मनमोहन सरकार के खिलाफ मोर्चेबंदी की। अमर सिंह को इस मामले में सलाखों के पीछे भी जाना पड़ा। हालांकि, अमर सिंह पर कोई कठोर कार्रवाई नहीं हुई।

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