बीसवीं सदी ने इंसान को वह दिया है जिसकी कल्पना शायद ही कभी किसी महान पुरुष ने की होगी, वह है ‘करिअर’ यानी भविष्य को बेहतर बनाने की कोशिश। लेकिन वर्तमान में लोग इसके पीछे इतनी तेजी से भाग रहे हैं कि उनको पता ही नहीं है कि क्या गलत है, क्या सही। भविष्य तो उचित, सही और शांति युक्त मार्गों से भी बेहतर बन सकता है।

समाज में एक चलन चल पड़ा है कि मेरा करिअर बनना चाहिए, चाहे उसके परिणाम में कुछ भी हो, रास्ते में कुछ भी गलत क्यों न करना पड़े। इंसानियत नाम की चीज को खोजना पड़ता है। इस दौड़ में व्यक्ति के पास सोचने का वक्त ही नहीं रह गया है।

पढ़ने वाले प्रतियोगी विद्यार्थी केवल किताबों से सीखना चाहते हैं और हमेशा किताब खोले रहते हैं, कहीं विश्वविद्यालय की कक्षा के बहाने या कोचिंग में और फिर घर आए तो पुस्तकालय चले गए और बीच-बीच में वक्त मिला तो मोबाइल में रील (छोटे वीडियो आदि) में व्यस्त हो गए। घर, परिवार, रिश्तेदार, दोस्त-यार किसी से भी बात करने की फुर्सत नहीं है।

वैज्ञानिक रोबोट बना रहे हैं, लेकिन समाज में जिनको विवेक मिला है, वे खुद रोबोट बनने को तत्पर हैं। ज्यादातर लोगों की दिनचर्या किसी रोबोट से कम नहीं है और इसके परिणाम में सामने आ रहे हैं। सड़क पर खड़े होकर गाली-गलौज करने, अपने स्वार्थ के लिए या मामूली झगड़े में किसी की हत्या कर देना आम बात हो गई है।

मणिपुर में जिस तरह की घटना सामने आई, उससे यही लगता है कि इंसानियत मानो मर चुकी है। किसी के भी दिमाग में कोई खयाल आता ही नहीं है कि क्या गलत है, क्या सही। बस करते जाते हैं। सड़क पर कमजोर दिखने वाले वाले व्यक्ति की बेइज्जती करने में कोई शर्म महसूस नहीं होती।

सवाल है कि क्यों व्यक्ति केवल खुद के बारे में सोचने लगा है। समाज की उसे परवाह बिल्कुल नहीं है। इन सबकी वजह दरअसल यह भी है कि कुछ ‘मोटिवेशन स्पीकर’ यानी प्रेरणा देने वाले वक्ता कहते हैं कि समाज क्या कहता है, हमें फर्क नहीं पड़ना चाहिए, हमको बस अपने करिअर पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। व्यक्ति केवल इतना सोचने लगा है कि मुझे ‘अपना करिअर’ बनाना है और इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार हैं। यह वैसा ही है जो हमारी संस्कृति को जड़ से खत्म करने की भरपूर कोशिश में लगा है।
वीएस भारतीय, इलाहाबाद विवि।

बदलते जीवन मूल्‍य

एक समय था कि व्यक्ति अतिमितव्ययिता में भी अपने परिवार का लालन-पालन बड़े प्रेम से कर लेता था और अपनी आमदनी में से कुछ पैसे बचा कर अपने बच्चों के लिए गहने और जायदाद आदि भी आराम से जोड़ लेता था। वह समय था सादा जीवन उच्च विचार के जीवन का, जिससे उस समय इंसान कम में सुखी और खुशहाल महसूस करता था।

बड़ा और भरा-पूरा परिवार होने के बावजूद मन में कभी किसी चीज की कमी सताती नहीं थी। बड़ों के प्रति आदर और पारिवारिक सदस्यों में बहुत प्रेम था। अब जमाना तो बदला ही, पर साथ में इंसान की सोच भी वैसे ही इस प्रवाह में बदल गई। आज अक्सर हम देख सकते हैं कि अमुक व्यक्ति ने अपने पिता की जायदाद हासिल करने के लिए बाप-बेटे के रिश्ते को तार-तार करते हुए खुद को जन्म देने वाले और उसकी परवरिश करने वाले मां-बाप को भी मौत के घाट उतार देता है।

इंसान ने भौतिक संपदा बहुत इकट्ठा की होगी और करेंगे भी पर उनकी साथ में भावनात्मक सोच का स्तर भी उसी तेजी से लगातार गिरता जा रहा है। जो प्रेम-आदर अपने परिवार में बड़ों-छोटों आदि के प्रति पहले था, वह आज कहां है? आज के युग में इंसान का यही सोच सब जगह होती जा रही है। अगर हमारी सीखने की इच्छा हो और हमारा नजरिया सही हो तो हर चीज से हमें जीवन में शिक्षा मिलती है। घड़ी को ही देखिए कि वह रुकती नहीं है। अगर रुक गयी तो खटारा है। जिंदगी में समय और नियम के अनुरूप चलना चाहिए। सफलता हमें अवश्य मिलेगी, लेकिन किसी को बिना नुकसान पहुंचाए।
प्रदीप छाजेड़, नागौर, राजस्थान।

आगे का रास्‍ता

फ्रांस पहला देश है, जिसके साथ भारत ने आर्थिक और सुरक्षा हितों की रक्षा, अंतरराष्ट्रीय कानून के शासन को आगे बढ़ाने और संतुलित और स्थिर व्यवस्था स्थापित करने के लिए दूसरों के साथ काम करने के लिए इंडो-पैसिफिक के लिए एक संयुक्त प्रारूप अपनाया। यह इंडो-पैसिफिक में भविष्य की समन्वित कार्रवाई के लिए खाका तैयार कर सकता है।

फ्रांस आतंकवाद निरोध और असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी, दोनों में भारत के सबसे करीबी साझेदारों में से एक रहा है और ढांचे में छोटे और माड्यूलर परमाणु संयंत्रों के विकास सहित दोनों क्षेत्रों में अधिक सहयोग की परिकल्पना की गई है। रोडमैप में कुल तिरसठ परिणाम हैं, जिनमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और उभरते साइबर खतरे जैसे नए क्षेत्र शामिल हैं।

बैस्टिल डे परेड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति का प्रतीकवाद और रोडमैप द्वारा निर्धारित लक्ष्य दर्शाते हैं कि पेरिस नई दिल्ली के लिए एक प्रमुख रणनीतिक भागीदार के रूप में अपनी भूमिका बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। पिछले कुछ समय से फ्रांस महाद्वीप पर भारत का सबसे करीबी दोस्त रहा है और इस यात्रा से उत्पन्न संबंधों के विस्तार को वाशिंगटन में हुई प्रगति से कम महत्त्वपूर्ण नहीं माना जाना चाहिए।
एमटी फारूकी, मुंबई।

पेयजल का संकट

पृथ्वी का तीन हिस्सा भाग जल से भरा हुआ है, फिर भी शुद्ध पेयजल का संकट गहराता जा रहा है। देश की एक बड़ी आबादी प्रदूषित जल पीने के लिए विवश है। परंपरागत जल स्रोतों का अतिक्रमण, प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग और बढ़ते जल प्रदूषण की वजह से भूमिगत जल तेजी से प्रदूषित हो रहा है। दूषित जल पीने से रोग प्रतिरोधक क्षमता के घटने, जीवन प्रत्याशा में कमी आने और असमय मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।

इसी वजह से कई तरह की बीमारियां फैल रही हैं। जल एक सार्वभौमिक विलायक है, इसलिए यह आसानी से प्रदूषित हो जाता है। पानी को प्रदूषित करने में औद्योगिक कचरा और प्लास्टिक का बहुत बड़ा योगदान है। प्लास्टिक के संपर्क में आने के पश्चात पानी प्रदूषित हो जाता है। प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम कर हम पानी को प्रदूषण से बचा सकते है।
हिमांशु शेखर, गया, बिहार।