जलवायु संकट और क्षमता से अधिक संसाधनों का उपभोग तथा वायु प्रदूषण ने जिन समस्याओं को जन्म दिया है, उनका सबसे अधिक सामना महिलाओं को ही करना पड़ रहा है। गर्भावस्था के पहले और आखिरी महीने में महिलाओं तथा गर्भस्थ शिशु को सबसे ज्यादा खतरा होता है। संयुक्त राष्ट्र की एक रपट के मुताबिक, सन 2050 तक जलवायु संकट के कारण दस करोड़ पचास लाख से ज्यादा महिलाएं और लड़कियां गरीबी की ओर जा सकती हैं। वहीं बीस करोड़ से अधिक महिलाओं और लड़कियों को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ सकता है।
एक अनुमान के अनुसार, दुनिया भर में हर साल तेरह करोड़ लड़कियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित होना पड़ता है और जलवायु संबंधी संकट इस दिक्कत को और अधिक बढ़ा देता है। ऐसे मुश्किल समय में लड़कियों की जल्दी शादी होने की संभावना अधिक होती है, क्योंकि उन्हें घर की जरूरतों में मदद करने के लिए सबसे पहले विद्यालयों से निकाला जाता है। जलवायु संकट, संसाधनों के अत्यधिक उपभोग और अथाह वायु प्रदूषण ने जिन समस्याओं को जन्म दिया है, उनसे सबसे अधिक स्त्रियां ही प्रभावित हुई हैं।
जलवायु संकट और बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण पूरी दुनिया में कोख में पल रहे शिशु भी अब सुरक्षित नहीं हैं। चिकित्सकों का कहना है कि हवा में बिखरे धातु कण मां की सांस के जरिए अजन्मे बच्चों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। वायु प्रदूषण नवजातों के दिल, दिमाग और फेफड़ों के लिए घातक है। प्रदूषित वातावरण में सांस लेने पर प्रदूषक तत्व ‘प्लेसेंटा’ को पार कर भ्रूण तक पहुंच रहा है। प्रदूषण खून के जरिए पोषक तत्त्वों को शिशु तक पहुंचने से रोकता है। इससे उसके दिमाग और फेफड़े ठीक से विकसित नहीं हो पाते हैं। बच्चों के हृदय में परेशानी, सांस की जन्मजात बीमारी, नाड़ी तंत्र पर दुष्प्रभाव और फेफड़े के विकास पर भी असर होता है। कई बच्चों में दिव्यांगता की भी समस्या देखी गई है। चिंता की बात यह है कि गर्भावस्था की शुरुआती जांच में ही भ्रूण में प्रदूषण के कण मिल रहे हैं। लंबे समय तक अगर बच्चा इस प्रदूषण के संपर्क में रहता है, तो उसे कैंसर होने का खतरा भी बना रहता है।
चीन के गुआंगडोंग प्रांत में प्रदूषण से होने वाले समय पूर्व प्रसव को लेकर एक शोध हुआ। इसमें शामिल 687 महिलाओं को समय से पहले बच्चे हुए। और 1097 महिलाओं को कम वजन वाले बच्चे हुए थे। उनकी तुलना 1766 स्वस्थ नवजातों वाली मांओं के साथ की गई। गौर करने वाली बात यह है कि चीन के इस प्रांत में पूरे देश के औसत से कम प्रदूषण होता है। चीन में भी उत्तर भारत की तरह सितंबर-अक्तूबर से वायु प्रदूषण बढ़ना शुरू होता है और गर्मियों में कम होता है। इस शोध में यह पता चला कि गर्भावस्था के पहले और आखिरी महीने में महिलाओं तथा गर्भस्थ शिशु को प्रदूषण से सबसे ज्यादा नुकसान होता है। वहीं अमेरिका में होने वाले कुल समय पूर्व प्रसव में तीन फीसद नवजातों का जन्म प्रदूषण की वजह से होता है। वहां ऐसे बच्चों की संख्या सोलह हजार है। दुनिया भर में करीब साठ लाख बच्चे प्रदूषण की वजह से समय से पहले जन्म ले रहे हैं। इनमें से आधे बच्चे कम वजन के हैं।
‘लैंसेट’ की ओर से भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में वायु प्रदूषण के कारण गर्भ पर पड़ने वाले असर पर एक अध्ययन किया गया। शोध में कहा गया कि प्रदूषण बढ़ने के साथ मानव स्वास्थ्य का खतरा भी बढ़ गया है। आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि वायु प्रदूषण महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि एचआइवी-एड्स, मलेरिया और तपेदिक के लिए हर साल बड़े वैश्विक कोष का निवेश किया जाता है, लेकिन वायु प्रदूषण के लिहाज से ऐसा नहीं है।
असल में जलवायु संकट और वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर के कारण महिलाएं श्वसन एवं हृदय संबंधी समस्याओं, कैंसर और अन्य बीमारियों से प्रभावित हो रही हैं। हालांकि यह सभी को प्रभावित करता है। मगर चिकित्सकों का कहना है कि महिलाओं को कुछ और भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उनमें स्तन कैंसर के मामले अधिक पाए गए हैं। वहीं लकड़ी वाले चूल्हे पर खाना पकाने जैसी गतिविधियां महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए जोखिम बढ़ाती हैं। घर के अंदर वायु प्रदूषण सिर्फ खाना पकाने से नहीं, बल्कि ज्यादा ताप और अन्य कारणों से भी होता है। यह वनों की कटाई और शहरीकरण से काफी बढ़ गया है। वहीं महिलाएं अपनी शारीरिक संरचना, बच्चे पैदा करने, संतुलित आहार न लेने, रसोई में अधिक समय बिताने और आर्थिक रूप से स्वतंत्र न होने के कारण अधिक प्रभावित होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि पिछले दो दशकों में जलवायु संकट और वायु प्रदूषण वैश्विक संकट बन गया है। यह खराब स्वास्थ्य में योगदान देने वाला प्रमुख पर्यावरण संबंधी कारक है, जिससे दुनिया में सालाना लाखों लोगों की मौत होती है।
जलवायु संकट से जो महिलाएं और लड़कियां प्रभावित होती हैं, उनमें ज्यादातर दुनिया के गरीबों देशों की हैं। ये अपनी आजीविका के लिए स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक निर्भर हैं। ग्रामीण इलाकों में महिलाएं और लड़कियां अक्सर अपने परिवारों के लिए भोजन, पानी और लकड़ी जुटाने का दायित्व संभालती हैं। सूखे और अनियमित वर्षा के समय ग्रामीण महिलाएं अधिक मेहनत करती हैं, अधिक दूर तक चलती हैं और अपने परिवारों के लिए आय और संसाधन जुटाने में ज्यादा समय बिताती हैं। उन्हें लिंग आधारित हिंसा के बढ़ते जोखिम का खतरा रहता है, क्योंकि जलवायु संकट मौजूदा संघर्षों, असमानताओं और कमजोरियों को बढ़ाता है। मौसम संबंधी आपदाएं महिलाओं और बच्चों की मृत्यु की संभावना पुरुषों की तुलना में 14 गुना अधिक बढ़ाती हैं। जलवायु संकट के प्रभावों से विस्थापित होने वाले पांच में से चार महिलाएं और लड़कियां हैं। ये आपदाएं प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल सहित आवश्यक सेवाओं को भी बाधित करती हैं, जिससे महिलाओं और लड़कियों पर नकारात्मक प्रभाव और भी बढ़ जाता है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, जलवायु संकट के कारण विस्थापित होने वालों में अस्सी फीसद महिलाएं या लड़कियां हैं, जो कई कारणों से गरीबी, हिंसा या अनचाहे गर्भधारण के बढ़ते जोखिम का सामना कर रही हैं। महिलाओं का स्वास्थ्य बढ़ते तापमान से सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। वायु प्रदूषण और गर्मी के संपर्क में आने से समय से पहले बच्चे का जन्म, कम वजन वाले बच्चे, खराब मातृ स्वास्थ्य और गर्भावस्था के दौरान जटिलताओं का महिलाओं को बहुत सामना करना पड़ता है। यह प्रसव पूर्व तनाव को भी बढ़ाता है। असल में जलवायु संकट का महिलाओं पर गहरे तक पड़ने वाला प्रभाव एक संवेदनशील मुद्दा है। इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। जागरूकता फैला कर, शिक्षा और स्वास्थ्य की पहुंच प्रदान कर, आर्थिक अवसर देने के साथ प्रभावी नीतियों को लागू कर हम महिलाओं और लड़कियों को शक्ति प्रदान कर सकते हैं, ताकि वे जलवायु संकट से पैदा होने वाली चुनौतियों का सामना कर सकें और अपने जीवन को बेहतर बना सकें।