स्वतंत्र भारत के इतिहास में इससे पहले कभी भी भाजपा, कांग्रेस, एआइएमआइएम, द्रमुक, बीजद, शिवसेना और अन्य दलों के सांसदों ने एकजुट संदेश के साथ यात्रा नहीं की। शशि थरूर, सुप्रिया सुले, असदुद्दीन ओवैसी और गुलाम नबी आजाद जैसे विपक्षी नेता एक मंच पर प्रमुखता से मौजूद थे। चौबीस करोड़ मुसलमानों की आबादी वाले भारत ने देखा कि यह समुदाय राष्ट्र के खिलाफ धर्म को हथियार बनाने से इनकार कर पाकिस्तान की आतंकवाद की विचारधारा के खिलाफ मजबूती से खड़ा है। खाड़ी देशों में यह संदेश ले जाने वाला प्रतिनिधिमंडल अपने आप में भारत के सामाजिक ताने-बाने का प्रतिबिंब था। इसमें पांच धर्मों- हिंदू, मुसलिम, ईसाई, सिख और बौद्ध नेता शामिल थे, जो सभी धर्मों के भारतीयों की एकता और मजबूती को दर्शाता है। आतंकवाद को कतई बर्दाश्त नहीं करने का स्पष्ट संदेश देने वाली इन समन्वित यात्राओं को न केवल स्वीकार किया गया, बल्कि विदेशों में उनकी सराहना भी की गई।
पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले और भारत की सोची-समझी सैन्य प्रतिक्रिया आपरेशन सिंदूर के बाद केंद्र सरकार ने एक अभूतपूर्व कूटनीतिक पहल की शुरुआत की। 23 मई से सात सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल, जिनमें सत्ताधारी पार्टी और विभिन्न विपक्षी दलों से 59 संसद सदस्य शामिल थे, उन्होंने 30 से अधिक देशों की यात्रा की और रणनीतिक रूप से विश्व नेताओं, नीति निर्माताओं, मीडिया, प्रबुद्ध मंडलों एवं प्रवासी समुदायों के साथ बातचीत की। इन समूहों को एक स्पष्ट और एकीकृत संदेश आगे बढ़ाने का काम सौंपा गया था: आतंकवाद पर भारत का कतई बर्दाश्त नहीं करने का रुख और आतंकवादी तंत्र एवं उनके प्रायोजकों के लिए चेतावनी।
भारत के आतंकवाद विरोधी संदेश को काफी बढ़ावा मिला
उनके मिशन में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य, खाड़ी देश, यूरोप, उत्तरी अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के रणनीतिक साझेदार शामिल थे। इस पहल की विशेषता यह थी कि इससे राष्ट्रीय एकता प्रदर्शित हुई। एकजुटता के इस दुर्लभ प्रदर्शन ने एक शक्तिशाली संदेश दिया कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई राजनीति से परे है और यह एक साझा राष्ट्रीय मुद्दा है। अपने वैश्विक संपर्क के दौरान, सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने कई प्रमुख विश्व नेताओं और प्रमुख राजनीतिक हस्तियों से मुलाकात की, जिससे भारत के आतंकवाद विरोधी संदेश को काफी बढ़ावा मिला।
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वाशिंगटन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने आतंकवाद का मुकाबला करने और भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के साथ व्यापक चर्चा की। ब्रुसेल्स में भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद के समूह ने बेल्जियम के चैंबर आफ डेप्युटीज के अध्यक्ष पीटर डी रूवर से मुलाकात की, जिन्होंने भारत के साथ एकजुटता व्यक्त की। कुवैत में हमारे मिशन ने एक अनौपचारिक बातचीत का आयोजन किया था, जहां प्रतिनिधिमंडल को पूर्व उप प्रधानमंत्री, चार पूर्व मंत्रियों, खाड़ी सहयोग परिषद के पूर्व महासचिव और कुवैत के तीन प्रमुख समाचारपत्रों के वरिष्ठ संपादकों सहित 40 से अधिक प्रमुख हस्तियों के साथ संवाद करने का अवसर मिला।
सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन और अल्जीरिया, इन सभी मुसलिम बहुल देशों में बातचीत एक स्पष्ट संदेश के साथ शुरू हुई: यह दो राष्ट्रों के बीच का संघर्ष नहीं, बल्कि भारतीय नागरिकों पर पाकिस्तान की सेना द्वारा प्रायोजित आतंकी हमला है। कुवैत और सऊदी अरब में बैजयंत पांडा के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने क्षेत्रीय नेताओं और प्रबुद्ध मंडलों को संबोधित किया, जिसमें भारत द्वारा पहले के राजनयिक प्रयासों के दौरान की गई ऐतिहासिक गलतियों पर चर्चा की गई।
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प्रतिनिधिमंडल ने याद दिलाया कि कैसे 2008 के मुंबई हमलों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2009 में शर्म अल-शेख में अपने पाकिस्तानी समकक्ष से मुलाकात की और एक संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए, जिसमें आइएसआइ या पाकिस्तानी सेना का नाम लिए बिना भारत और पाकिस्तान को आतंकवाद के परस्पर पीड़ित के रूप में बताया गया। यह कमजोर स्थिति जुलाई 2011 में मुंबई में एक और आतंकी हमले के बाद जल्दी ही उजागर हो गई। प्रतिनिधिमंडल के सदस्य असदुद्दीन ओवैसी ने इस बात को विस्तार से समझाया कि कैसे पाकिस्तान के वर्तमान सेना प्रमुख और पूर्व आइएसआइ प्रमुख जनरल असीम मुनीर इस आतंकवादी तंत्र की प्रतीकात्मक कड़ी हैं। उन्होंने पाकिस्तान को विदेशी सहायता मिलने पर भी सवाल उठाया।
इस पहल से पांच मुख्य रणनीतिक उपलब्धियां हासिल हुईं। पहला, एकीकृत राष्ट्रीय संदेश। विभिन्न दलों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति ने यह स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद का विरोध चुनावी राजनीति से परे है। दूसरा, पाकिस्तान को बेनकाब करना। प्रतिनिधिमंडलों ने पहलगाम हमले की साजिश रचने में पाकिस्तान की भूमिका को सफलतापूर्वक उजागर किया। तीसरा, कूटनीतिक अलगाव- इस अभियान ने पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से और अलग-थलग करने में मदद की तथा इस संदेश को मजबूत किया कि आतंकवादियों और उनके प्रायोजकों के बीच कोई अंतर नहीं किया जा सकता।
चौथा, सामुदायिक जुड़ाव-प्रतिनिधिमंडलों ने विदेशों में भारतीय प्रवासियों और स्थानीय समुदायों के साथ बातचीत की और भारत के रुख के लिए समर्थन जुटाया। पांचवां, भविष्य की कूटनीति का खाका- आगे बढ़ते हुए भारत को संसदीय कूटनीति को औपचारिक रूप देना चाहिए। बीते दस जून को सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की और अपनी प्रतिक्रिया साझा की। प्रधानमंत्री ने परिणामों पर अपनी संतुष्टि व्यक्त की और बाद में सोशल मीडिया पर पोस्ट कर कहा, जिस तरह से उन्होंने भारत की आवाज को आगे बढ़ाया, उस पर हम सभी को गर्व है।
(लेखक निशिकांत दुबे बीजेपी के सांसद हैं और हर्ष शृंगला भारत के पूर्व विदेश सचिव रहे हैं।)