कोरोना के चलते वर्ष 2020 से 2022 तक भारतीय अर्थव्यवस्था पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। वर्ष 2022 के अंत से देश की अर्थव्यवस्था में सुधार आना शुरू हुआ। इस महामारी के बाद अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को कुछ अर्थशास्त्री अंग्रेजी अक्षर ‘के’ आकार की वृद्धि मान रहे हैं, जिसमें अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब और गरीब। अगर हम ‘के’ अक्षर की कल्पना करें तो इसमें दो रेखाएं नजर आती हैं। एक रेखा ऊपर की तरफ जाती है और दूसरी नीचे की तरफ। अर्थव्यवस्था में अंग्रेजी अक्षर ‘के’ आकार की वृद्धि यह बताती है कि इसमें कुछ उद्योग और व्यावसायिक समूह ऊपर उठ रहे हैं, जबकि अन्य नीचे की ओर जाते हुए, संघर्ष करते लग रहे हैं।

संगठित क्षेत्र आगे बढ़ता है, तो असंगठित क्षेत्र पीछे बना रहता है

इस वृद्धि में मोटे तौर पर पूरी अर्थव्यवस्था में सुधार होता प्रतीत होता है, जबकि यह सुधार सभी क्षेत्रों में सामान रूप से नहीं होता। इसमें कुछ क्षेत्र ठीक हो पाते हैं, जबकि अन्यों को संघर्ष करते रहना पड़ता है। इसमें संगठित क्षेत्र आगे बढ़ता है, तो असंगठित क्षेत्र पीछे बना रहता है। कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि कोरोना काल के बाद जहां समाज के संपन्न वर्ग द्वारा अधिक खर्च करने के कारण महंगे सामान की मांग में वृद्धि हुई है, वहीं आमजन की जरूरत की वस्तुओं के बाजार की मांग में कमी आई है।

असंगठित क्षेत्र महामारी के पहले के कारोबार वाली स्थिति में नहीं पहुंचा

हालांकि सरकार और कुछ आर्थिक विश्लेषक ‘के’ आकार की वृद्धि के विचार को खारिज करते हैं। उनका मानना है कि अर्थव्यवस्था में स्वाभाविक वृद्धि हो रही है, लेकिन औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आइआइपी) में यह विभाजन स्पष्ट नजर आता है। यह सूचकांक विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों की वृद्धि दरों का मापन करता है। वित्तवर्ष 2014 में आइआइपी 3.3 फीसद था, जो वित्तवर्ष जनवरी 2024 में बढ़कर 5.5 फीसद हो गया। इसमें वृद्धि मुख्य रूप से सरकार द्वारा बुनियादी ढांचे के विकास हेतु किए जाने वाले खर्च, जो कि मुख्य रूप से इस्पात और सीमेंट आदि की मांग में वृद्धि के कारण हुई है। उपभोक्ता आधारित उद्योग जैसे उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुएं और गैरटिकाऊ जैसे खाद्य, परिधान, किराना आदि में बढ़ोतरी की दर कम हुई है या घटी है। असंगठित क्षेत्र महामारी के पहले के कारोबार वाली स्थिति में अब भी नहीं पहुंच पाया है और यह लगातार गिरावट की ओर है।

‘सेंटर फार मानिटरिंग इंडियन इकोनामी’ (सीएमआइई) की रपट के अनुसार भीषण गर्मी और मानसून में देरी की वजह से रोजगार के लिहाज से जून 2024 का महीना असंगठित क्षेत्र के लिए अच्छा नहीं रहा। खरीफ फसलों के बुवाई सीजन की शुरुआत में रोजगार की उम्मीद में 70 लाख से अधिक लोग जून में श्रम बाजारों में शामिल हुए, लेकिन उनमें अधिकांश को निराशा हाथ लगी। श्रम बाजारों ने उन्हें जोड़ने के लिए अतिरिक्त रोजगार पैदा करने के बजाय विद्यमान रोजगार में भी कटौती कर दी। इससे रोजगार ढूंढ़ने वालों की संख्या और बढ़ गई। इसी प्रकार लगभग 90 लाख छोटे व्यापारी और दिहाड़ी मजदूर, जिनमें कृषि मजदूर भी शामिल थे, श्रम बाजार से बाहर हो गए।

देश के असंगठित श्रम बाजारों में कोरोना काल के बाद भारी उतार-चढ़ाव रहा है, इसकी दिशा अधिकांशत: नकारात्मक ही रही है। जून 2024 भी असंगठित क्षेत्र की दृष्टि से काफी मुश्किल भरा महीना रहा। इस अवधि में असंगठित क्षेत्र में कुल रोजगार में 28 लाख की गिरावट देखने को मिली और बेरोजगारों की संख्या करीब एक करोड़ बढ़ गई। इससे देश में बेरोजगारी दर जून में बढ़कर 9.2 फीसद तक पहुंच गई। रपट में कहा गया कि भीषण गर्मी के कारण रोजगार के लिहाज से निर्माण क्षेत्र को भी बड़ा झटका लगा है। इस क्षेत्र में जून में 1.7 करोड़ लोगों का रोजगार छिन गया। यह चिंताजनक है कि इस क्षेत्र में मार्च 2024 से ही रोजगार में लगातार गिरावट आ रही है। व्यावसायिक क्षेत्र में भी रोजगार में 50 लाख की गिरावट रही। इस नुकसान का अधिकांश असर ग्रामीण क्षेत्रों पर पड़ा। रपट के अनुसार असंगठित क्षेत्र की तुलना में संगठित क्षेत्र में नौकरियां बढ़ी हैं। जून 2024 में वेतनभोगी कर्मचारियों की संख्या 28 लाख बढ़ गई। यह वृद्धि विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में हुई है।

संगठित क्षेत्र में पैदा हुए रोजगार को लेकर ईपीएफओ द्वार जारी पिछले चार वर्ष के आंकड़ों पर नजर डालें, तो वित्तवर्ष 2019-20 से 2022-23 के दौरान 4.86 करोड़ कर्मचारी भविष्य निधि संगठन यानी ईपीएफओ से जुड़े हैं। एसबीआइ रिसर्च ने अपने आंकड़ों में बताया है कि दुबारा नौकरी पाने वाले या फिर से ईपीएफओ में पंजीकरण कराने वालों की संख्या 2.27 करोड़ रही। ‘नेशनल पेंशन सिस्टम’ यानी एनपीएस द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वित्तवर्ष 2022-23 में 8.23 लाख नए कर्मचारी नई ‘पेंशन स्कीम’ से जुड़े हैं। इसमें राज्य सरकारों के 4.64 लाख, गैर-सरकारी क्षेत्रों के 2.30 लाख और केंद्र सरकार के 1.29 लाख कर्मचारी जुड़े। इस प्रकार ईपीएफओ और एनपीएस से जो आंकड़ों मिले, उनके अनुसार संगठित क्षेत्र में 5.2 करोड़ से ज्यादा रोजगार के अवसर सृजित हुए हैं, इनमें महिलाओं की भागीदारी लगभग 27 फीसद है।

रोजगार में कमी और वृद्धि के साथ आय में असमानता भी ‘के’ आकर वृद्धि की अवधारणा को बल देती है। ‘इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च’ के विश्लेषण से पता चलता है कि कंपनी जगत, जिसमें उच्च आय श्रेणी के शीर्ष 50 फीसद का प्रतिनिधित्व है, उसमें वित्तवर्ष 2022 में आय 11.6 फीसद, तो वित्तवर्ष 2023 में 10.7 फीसद बढ़ी, लेकिन कम आय श्रेणी वाले कृषि ग्रामीण मजदूरों और शहरी क्षेत्रों के कुशल कामगारों की मजदूरी में या तो कोई वृद्धि नहीं हुई या घट गई। शहरी क्षेत्रों में अकुशल श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी वित्तवर्ष 2022 में तीन फीसद घटी और वित्तवर्ष 2023 में 0.55 फीसद की कमी आई। कृषि आय, जो ग्रामीण मजदूरी का आईना होती है, वह भी वित्तवर्ष 2022 में 3.4 फीसद घटी और वित्तवर्ष 2023 में मात्र एक फीसद बढ़ी है।

संगठित और असंगठित क्षेत्र के रोजगार के आंकड़ों और विभिन्न आयवर्ग के व्यक्तियों में उपभोग उत्पादों की मांग में कमी और वृद्धि से मोटेतौर पर यही लगता है कि देश की अर्थव्यवस्था में ‘के’ आकार की वृद्धि की दिशा में है, लेकिन अगर हम समग्र रूप से स्वाधीनता के 77 वर्षों में अर्थव्यवस्था की दिशा का अध्ययन करें, तो देश में अमीर लोगों के और अमीर होने और गरीब लोगों के और गरीब होने की स्थिति आजादी से लेकर आज के दौर तक बनी हुई है। सभी सरकारों ने इस खाई को पाटने का भरसक प्रयास किया, लेकिन बढ़ती आबादी और देश की बड़ी अर्थव्यवस्था में यह खाई आज तक बनी हुई है। इस दिशा में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, उद्योग जगत और सभी हित धारकों के मिले-जुले गंभीर प्रयासों की जरूरत है, तभी अर्थव्यवस्था स्वस्थ विकास की दिशा में अग्रसर हो सकती है और गरीब तथा अमीर के बीच की खाई को पाटा जा सकता है।