उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के अनुसार जून में खुदरा महंगाई दर बढ़कर 5.08 फीसद हो गई है। यह पिछले चार महीनों में सबसे अधिक खुदरा महंगाई दर है। चिंताजनक है कि खाद्य वस्तुओं की खुदरा महंगाई दर 9.36 फीसद रही है। खासकर बाजारों में गेहूं और दाल के बाद आलू, प्याज और टमाटर की बढ़ती कीमतों से खुदरा महंगाई दर पर दबाव बढ़ा है। जून 2024 के एक महीने में आलू, प्याज और टमाटर की खुदरा कीमतों में क्रमश: 25, 53 और 70 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। ‘क्रिसिल मार्केट इंटेलीजेंस ऐंड एनालिसिस’ की मासिक ‘रोटी राइस रेट’ रपट के मुताबिक शाकाहारी थाली का मूल्य जून 2024 में दस फीसद बढ़कर 29.4 रुपए हो गया है, जबकि यह जून 2023 में 26.7 रुपए था। शाकाहारी थाली का मूल्य मई में 27.8 रुपए था।

जून से अगस्त के दौरान कीमतें बढ़ जाती हैं

शाकाहारी थाली में रोटी, सब्जी (प्याज, टमाटर और आलू), चावल, दाल, दही और सलाद शामिल होते हैं। हालांकि किसानों को आलू, प्याज और टमाटर की अच्छी कीमत दिलवाने के साथ इन वस्तुओं की एक ‘वैल्यू चेन’ स्थापित करने के लिए लाई गई थी, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली। हर साल जून से अगस्त के दौरान इन वस्तुओं की कीमतें बढ़ती हैं। इस वर्ष मई में खुदरा महंगाई दर 4.75 फीसद के साथ पिछले बारह माह के निचले स्तर पर पहुंच गई थी, लेकिन खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर 8.69 फीसद थी। प्रमुख रूप से अनाज, दाल और सब्जियों के दाम में बढ़ोतरी के कारण खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर ऊंची है। यानी खाद्य वस्तुओं की महंगाई में कमी आने से खुदरा महंगाई दर कम हो सकेगी तथा आम आदमी को राहत मिल सकेगी।

अब मानसून की व्यापक बारिश हो रही है, इससे देश के कृषि क्षेत्र को मजबूती मिल सकती है। इससे कृषि विकास के साथ खाद्य महंगाई को भी नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। गौरतलब है कि मौसम एजंसी ‘स्काईमेट’ और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने कहा है कि इस वर्ष दक्षिण-पश्चिमी मानसून के अच्छा रहने से कृषि गतिविधियों में तेजी आएगी। ग्रामीण बाजारों में भी मांग बढ़ेगी। स्टेट बैंक आफ इंडिया के अनुसंधान विभाग के मुताबिक इस साल मानसून सामान्य से अधिक रहने से दाल, तिलहन और अनाज का उत्पादन बढ़ेगा और इनकी आपूर्ति बढ़ने से इनकी कीमतें कम होंगी। बेहतर मानसून से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी, जिससे ग्रामीण इलाकों में खपत बढ़ेगी। दरअसल, बेहतर मानसून से ग्रामीण भारत में कृषि विकास, उद्योग-कारोबार में बढ़ोतरी, छोटे किसानों-मजदूरों, ग्रामीण भारत और संपूर्ण अर्थव्यवस्था की उम्मीदें बढ़ी हैं।

सरकार ने 1 जून, 2024 तक करीब 264 लाख टन गेहूं खरीदा

सरकार को ध्यान देना होगा कि जहां वित्तवर्ष 2023-24 में देश की विकास दर 8.2 फीसद रही, वहीं कृषि विकास दर महज 1.4 फीसद थी। पिछले वर्ष 32.8 करोड़ टन उत्पादित खाद्यान्न इसके पूर्ववर्ती वर्ष के 32.9 करोड़ टन से कम है। इस वर्ष गेहूं के उत्पादन में कमी का अनुमान है। पिछले एक वर्ष में गेहूं की कीमतें 8-10 फीसद बढ़ी हैं। अप्रैल 2024 में देश के गोदामों में गेहूं का भंडार घटकर 75 लाख टन रह गया, जो पिछले सोलह वर्ष में भंडारण का सबसे निचला स्तर है। सरकार 1 जून, 2024 तक करीब 264 लाख टन गेहूं खरीद चुकी है। लक्ष्य 372 लाख टन खरीद का है।

इस समय ग्रामीण भारत में जल्द खराब होने वाले ऐसे कृषि उत्पादों की आपूर्ति शृंखला बेहतर करने पर प्राथमिकता से काम करना होगा, जिनकी खाद्य महंगाई के उतार-चढ़ाव में ज्यादा भूमिका होती है। हालांकि इस समय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति दर नियंत्रित है, लेकिन खाद्य पदार्थों की ऊंची महंगाई ने समग्र महंगाई दर को रिजर्व बैंक के लक्ष्य से ऊपर पहुंचा दिया है। ऐसे में महंगाई के प्रबंधन के लिहाज से खाद्य उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ खाद्य उपजों की बर्बादी रोकने से महंगाई पर अंकुश लगने की संभावना बन सकती है।

निश्चित रूप से कृषि मंत्रालय को कृषि उपज की बर्बादी रोकने के लिए बहुआयामी प्रयासों से ग्रामीण भारत की उम्मीदों को खुशियों में बदलने की दिशा में काम करना जरूरी है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के खाद्य फसलों की बर्बादी संबंधी आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर साल करीब 15 फीसद खाद्य उत्पादन नष्ट हो जाता है। स्थिति यह है कि लगभग 15 फीसद फल और सब्जियां उपज के बाद ही बर्बाद हो जाती हैं। कृषि भंडारण के बुनियादी ढांचे में सुधार से कृषि उपज बर्बादी को कम करने में मदद मिल सकती है। देश में अधिक शीत भंडार गृह और प्रशीतन सुविधाओं की दिशा में आगे बढ़ना होगा। चूंकि देश में ज्यादातर किसान गरीब वर्ग के हैं और उनके पास छोटी, बिखरी हुई जोत है, इसलिए यह संभव नहीं है कि वे स्वयं भंडारण ढांचे में निवेश कर सकें।

देश के करीब 92 फीसद शीत भंडार गृहों का संचालन और स्वामित्व निजी क्षेत्र में है, जिनमें छोटे किसानों की सीमित मात्रा की कृषि फसलों का भंडारण महंगा भी होता है। इसलिए खाद्य भंडारण ढांचे में कमी की समस्या के समाधान के लिए सरकार के अधिक दखल और अधिक सबसिडी सहयोग की जरूरत है। जहां एक ओर देश में मौजूदा शीत भंडार गृह क्षमता के एक बड़े हिस्से का इस्तेमाल ही नहीं हो पाता है, वहीं दूसरी ओर मौजूदा शीत भंडार गृह इकाइयों का भौगोलिक इलाकों के हिसाब से वितरण भी असमान है। गौरतलब है कि भारत में कुल सड़क विस्तार का करीब 30 फीसद हिस्सा अब भी कच्चा है, जिससे कृषि पैदावार को मंडियों तक ले जाने में काफी समय लगता है और इससे भी कुछ पैदावार खराब हो जाती है, जिसका असर कृषि उपजों की कीमतों पर पड़ता है।

जरूरी है कि सरकार खाद्य फसलों को बर्बादी से बचाने और किसानों को उनकी फसल के लाभप्रद मूल्य की प्राप्ति हेतु 24 फरवरी 2024 से प्रायोगिक रूप से शुरू की गई सहकारी क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी खाद्यान्न भंडारण योजना के कार्यान्वयन की दिशा में तेजी से काम करे। इसके तहत देश में खाद्यान्न भंडारण की जो क्षमता फिलहाल 1450 लाख टन की है, उसे अगले पांच वर्षों में सहकारी क्षेत्र में 700 लाख टन अनाज भंडारण की नई क्षमता विकसित करके कुल खाद्यान्न भंडारण क्षमता 2150 लाख टन किए जाने के लक्ष्य को प्राप्त करके ग्रामीण भारत में अभूतपूर्व खाद्यान्न भंडारण व्यवस्था के नए अध्याय लिखे जा सकेंगे।

उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार कृषि एवं ग्रामीण विकास के साथ-साथ कृषि सुधारों की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी। प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर खाद्य पदार्थों की बर्बादी को कम करने, कृषि में मशीनीकरण को बढ़ाए जाने, जलवायु अनुकूल कृषि-खाद्य प्रणाली अपनाई जाने, ग्रामीण कच्ची सड़कों को मंडियों से जोड़ने, कृषि भंडारण के बुनियादी ढांचे में क्षमता सुधार जैसी नीतिगत प्राथमिकताओं के साथ-साथ आपूतिर् शृखला में सुधार से खाद्य फसलों की कीमतों में उतार-चढ़ाव को रोकने की नई रणनीति के साथ आगे बढ़ा जाएगी।