दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसौदिया की तरफ से दायर मानहानि के केस में सुप्रीम कोर्ट तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि पब्लिक को सच से मतलब है, कानून की धाराओं से नहीं। जनता जानना चाहती है कि पब्लिक सर्वेंट के खिलाफ जो आरोप लगाए गए हैं उनमें कितना सच है। कोर्ट ने बीजेपी सांसद मनोज तिवारी की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये बात कही।
जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की बेंच ने कहा कि लोगों को इस बात से मतलब नहीं कि है कि सीआरपीसी की धारा 199(2) और 199(6) में क्या अंतर है। उसे केवल इस बात से सरोकार है कि क्या पब्लिक सर्वेंट ने कुछ गलत किया था। मनोज तिवारी की तरफ से एडवोकेट वेंकटरमानी ने दलीलें दीं।
वेंकटरमानी का कहना था कि शिकायत का संज्ञान लेते समय मजिस्ट्रेट ने सेक्शन 199(2) की अनदेखी की। उनका कहना था कि इसके मुताबिक मंत्री के खिलाफ टिप्पणी पर मानहानि का मुकदमा केवल सेशन कोर्ट में ही चल सकता है। उसके लिए भी सरकारी वकील की तरफ से शिकायत दर्ज कराई जानी चाहिए। लेकिन सिसौदिया ने 199(6) के तहत मजिस्ट्रेट कोर्ट में शिकायत दी।
मनीष सिसोदिया ने सांसद मनोज तिवारी, हंस राज हंस, परवेश वर्मा, विजेंद्र गुप्ता, मनजंदर सिंह सिरसा और हरीश खुराना के खिलाफ सरकारी स्कूल में कक्षाओं के निर्माण को लेकर दो हजार करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार के झूठे आरोपों के लिए शिकायत दर्ज कराई थी। इन नेताओं ने दिल्ली में स्कूल भवनों के निर्माण में सिसोदिया पर घपले का आरोप लगाया था। 2019 में एक ट्रायल कोर्ट ने तिवारी और विजेंद्र गुप्ता को आपराधिक मानहानि मामले में आरोपी के रूप में तलब किया था।
2020 में दिल्ली हाईकोर्ट ने लोअर कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें मनोज तिवारी और विजेंद्र गुप्ता को समन किया गया था। हाईकोर्ट की जज अनु मल्होत्रा ने दिसंबर 2020 को मनीष सिसोदिया द्वारा बीजेपी नेताओं के खिलाफ दायर मानहानि मामले में उन्हें जारी समन को चुनौती देने वाली भाजपा नेताओं की याचिका को खारिज कर दिया था। उनके फैसले के खिलाफ मनोज तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।