Atal-Advani Duo: पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी को बीजेपी की अहम कड़ी माना जाता था लेकिन अटल के एक फैसले की वजह से आडवाणी प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए। इसको लेकर पूर्व पीएम अटल के मीडिया सलाहकार अशोक टंडन ने अपनी नई किताब में अहम खुलासा किया है।
दरअसल, पूर्व पीएम वाजपेयी के मीडिया सलाहकार रहे अशोक टंडन ने प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित अपनी किताब ‘अटल संस्मरण’ में देश के 11वें राष्ट्रपति चुनाव का जिक्र है। इसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति प्रत्याशी के तौर पर बीजेपी की पहली पसंद वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम नहीं बल्कि अटल बिहारी वाजपेयी थे।
आडवाणी को पीएम बनाना चाहती थी BJP
बीजेपी का प्लान था कि प्रधानमंत्री अटल को राष्ट्रपति भवन भेजकर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बीजेपी के दूसरे सबसे बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी को बिठाया जाए लेकिन ये योजना अधूरी रह गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल ने यह कहते हुए मना कर दिया कि बहुमत के आधार पर उनका राष्ट्रपति बनना एक गलत मिसाल कायम करेगा।
बता दें कि एपीजे अब्दुल कलाम 2002 में तत्कालीन सत्ताधारी नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) और विपक्ष दोनों के समर्थन से 11वें राष्ट्रपति चुने गए थे। वे 2007 तक इस पद पर थे। अशोक टंडन ने 1998 से 2004 तक पूर्व प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार के रूप में काम किया था।
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वाजपयी ने क्या कहकर खारिज किया था सुझाव?
टंडन ने अपनी किताब में लिखा कि वाजपेयी ने अपनी पार्टी के राष्ट्रपति बनने वाले इस सुझाव को साफ तौर पर खारिज कर दिया। टंडन के अनुसार, वाजपेयी इसके लिए तैयार नहीं थे। उनका मानना था कि किसी भी लोकप्रिय प्रधानमंत्री के लिए बहुमत के आधार पर राष्ट्रपति बनना भारतीय संसदीय लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं होगा। यह एक बहुत गलत मिसाल कायम करेगा, और वह ऐसे कदम का समर्थन करने वाले आखिरी व्यक्ति होंगे।
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कांग्रेस नेताओं को वाजपयी ने बताया था कलाम का नाम
अशोक टंडन ने अपनी किताब में लिखा कि वाजपेयी ने मुख्य विपक्षी पार्टी, कांग्रेस के नेताओं को आमंत्रित किया, ताकि राष्ट्रपति पद के लिए आम सहमति बन सके। उन्होंने लिखा, “मुझे याद है कि सोनिया गांधी, प्रणब मुखर्जी और डॉ. मनमोहन सिंह उनसे मिलने आए थे। वाजपेयी ने पहली बार आधिकारिक तौर पर खुलासा किया कि NDA ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को अपना उम्मीदवार बनाने का फैसला किया है। बैठक में कुछ देर सन्नाटा छा गया। फिर सोनिया गांधी ने चुप्पी तोड़ी और कहा कि वे उनके इस चुनाव से हैरान हैं, और उनके पास उनका समर्थन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, लेकिन वे उनके प्रस्ताव पर चर्चा करेंगे और फिर फैसला लेंगे।
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बता दें कि अशोक टंडन ने प्रधानमंत्री के तौर पर वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान हुई कई दूसरी घटनाओं और कई नेताओं के साथ वाजपेयी के रिश्तों के बारे में बताया है। अटल-आडवाणी की जोड़ी के बारे में, वह लिखते हैं कि कुछ पॉलिसी मुद्दों पर मतभेदों के बावजूद दोनों नेताओं के बीच रिश्ता कभी भी सार्वजनिक तौर पर खराब नहीं हुआ।
टंडन के अनुसार आडवाणी हमेशा अटल को “मेरे नेता और प्रेरणा के स्रोत” कहते थे, और वाजपेयी, बदले में, उन्हें अपना “पक्का साथी” कहते थे। उन्होंने अपनी किताब में लिखा, “अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी की पार्टनरशिप भारतीय राजनीति में सहयोग और संतुलन का प्रतीक रही है। उन्होंने न सिर्फ BJP बनाई बल्कि पार्टी और सरकार दोनों को एक नई दिशा भी दी।”
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