भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रहमण्यम स्वामी ने राम मंदिर के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। स्वामी ने पीएम से राम मंदिर निर्माण के लिए जमीन आवंटित करने की मांग की है। स्वामी का कहना है कि राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि आवंटित करने सरकार को सुप्रीम कोर्ट से कोई अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा है कि यह जमीन अभी भारत सरकार के कब्जे में हैं।
31 मई 2019 को लिखे इस पत्र में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि मंदिर निर्माण के लिए जमीन आवंटन के लिए सुप्रीम कोर्ट की अनुमति की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि साल 1993 में केंद्र की नरसिम्हा राव सरकार ने उस भूमि का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। आर्टिकल 300 के तहत सुप्रीम कोर्ट इस संबंध में कोई सवाल नहीं उठा सकता है। शीर्ष अदालत की तरफ से इस संबंध में सिर्फ मुआवजा तय किया जा सकता है।

इस बीच अयोध्या में मंदिर निर्माण के मुद्दे पर संत आज अयोध्या में एकत्रित होंगे। स्वामी परमहंस दास ने कहा कि बैठक में अयोध्या के सारे धर्माचार्या एकत्रित होंगे। इस बार राम मंदिर निर्माण के लिए निश्चित रूप से एक फैसला लिया जाएगा। हमलोगों का प्रयास है किइसके लिए सरकार के ऊपर दबाव बनाया जाए।

स्वामी परमहंस दास ने कहा कि जिस तरह से वल्लभ भाई पटेल ने कानून बनाकर सोमनाथ मंदिर का निर्माण कराया था उसी तर्ज पर कानून बनाकर राम मंदिर का निर्माण कराया जाए। इसके लिए हम सभी धर्माचार्य एकजुट होकर सरकार के सामने चेतावनी प्रस्तुत करेंगे।

इससे पहले संत परमहंस दास ने राम मंदिर का निर्माण नहीं होने पर आत्मदाह करने की धमकी दी है। उन्होंने कहा था कि यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल में राम मंदिर का निर्माण नहीं कराते हैं तो वह आत्मदाह कर लेंगे। भाजपा सरकार को दूसरी बार पूर्ण बहुमत मिलने के बाद से साधु-संत समुदाय की मंदिर निर्माण को लेकर अपेक्षाएं बढ़ गई हैं।

अब नरेंद्र मोदी के दूसरी बार सत्ता संभालने के बाद शुरू में ही साधु संत दबाव बनाना शुरू करना चाहते हैं। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के मुद्दे पर मध्यस्थता के बनी तीन सदस्यों की समिति बनाई थी। यह समिति अभी अपनी तरफ से विचार विमर्श कर रही है। समिति को 15 अगस्त तक का समय दिया है। इससे पहले मध्यस्थता समिति को 8 सप्ताह का समय दिया गया था। इसे बाद में बढ़ा दिया गया।