Lok Sabha Elections 2024 BJP Manifesto: आगामी लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बीजेपी ने आज दिल्ली स्थित अपने मुख्यालय में पार्टी का घोषणा पत्र यानी ‘संकल्प पत्र’ जारी कर दिया। इसका टाइटल बीजेपी ने ‘मोदी की गारंटी’ दिया है। मोदी की गारंटी नाम के इस टर्म को ही बीजेपी इस बार अपना सबसे बड़ा चुनावी नारा बनाकर पेश कर रही है। बीजेपी के इस संकल्प पत्र में गांव, गरीब, किसान, मध्यम वर्ग से लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर तक का जिक्र किया गया है लेकिन पार्टी के इस घोषणापत्र के सामने आने के बाद एक खास सवाल उठा रहा है कि क्या बीजेपी आक्रामक हिंदुत्व के एजेंडे को अब धीरे-धीरे नजरंदाज कर रही है।

साल 1984 के लोकसभा चुनाव में जिस बीजेपी की दो सीटें आईं थी, ठीक 5 साल बाद उसे 1989 में 85 सीटें मिलीं थीं। इसकी वजह अयोध्या का राम मंदिर आंदोलन था। पार्टी ने 1989 में पालमपुर अधिवेशन में राम मंदिर निर्माण का प्रस्ताव पारित किया था। इसके साथ ही बीजेपी लगभग सभी घोषणापत्रों में राम मंदिर निर्माण को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करती रही।

1992 में लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा के बाद बीजेपी को एक बड़ा बूस्ट मिला और आज भी राजनीतिक विश्लेषक यह स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि अगर राम मंदिर का मुद्दा समय पर हल हो जाता, तो संभवतः बीजेपी का राष्ट्रीय स्तर पर उत्थान इतनी जल्दी कभी न होता। 1996 में बीजेपी की पहली सरकार पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपयी के नेतृत्व में बनी थी, जो कि 13 दिन तक ही चली थी।

NDA ने जब मुख्य मुद्दों को किया नजरंदाज!

इसके बाद अटल ने एक सरकार 13 महीने चलाई लेकिन फिर तीसरी बार लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नेृत्व वाले एनडीए गठबंधन को बहुमत मिला था। खास बात यह है कि जब बीजेपी को एनडीए के तहत विभिन्न राजनीतिक दलों का सहयोग लेना पड़ा तो उसके एजेंडे से राम मंदिर और हिंदुत्व जैसा मुद्दा गायब होने लगा। बीजेपी उसे अपने घोषणापत्र में तो रखती थी लेकिन कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत इन मुद्दों को बाहर रखती थी।

इसी साल जनवरी में पीएम मोदी के हाथों राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो गई। ऐसे में बीजेपी इसे अपने वादे को पूरा करने की प्रतिबद्धता से जोड़कर पेश कर रही है। पार्टी के नेता और कार्यकर्ता इसके बाद वाराणसी में ज्ञानवापी और मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि से जुड़े केस को लेकर सियासी टिप्पणी कर रहे हैं।

काशी-मथुरा एजेंडे से गायब?

जमीनी स्तर पर बीजेपी के कार्यकर्ताओं की एक ऐसी जमात है, जो कि ‘अयोध्या तो झांकी है और काशी मथुरा बांकी है’ नारा लगाकर हिंदुत्व के एजेंडे को धार देने के प्रयास कर रहे है। ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि बीजेपी इस बार अपने चुनावी संकल्प पत्र में काशी मथुरा को शामिल कर सकती है लेकिन ऐसा हुआ ही नहीं। पार्टी के घोषणापत्र में काशी-मथुरा का जिक्र तक नहीं है।

अब कहने को तो बीजेपी के नेता यह बयान दे सकते हैं कि दोनों के ही केस कोर्ट में चल रहे हैं और उनका फैसला भी कोर्ट भी करेगा। ऐसे में यह तर्क दिया जा सकता है कि लंबे वक्त से राम मंदिर का केस भी अदालतों मे था, उस दौरान भी बीजेपी के मेनिफेस्टो में राम मंदिर का जिक्र था।

आक्रामक हिंदुत्व से पीछे हट रही बीजेपी

ऐसे में यह सवाल अहम हो गया है कि क्या बीजेपी अब अपने आक्रामक हिंदुत्व वाले रुख से पीछे हट रही है। इसके पीछे कई तर्क हैं। पार्टी लंबे वक्त से बहुसंख्यक आबादी के सवर्ण वोटबैंक पर निर्भर करती थी लेकिन 2014 के चुनाव के बाद से बीजेपी ने जातिगत समीकरणों तक को ध्वस्त करने में सफलता पाई। यूपी-बिहार जैसे राज्यों में इसके चलते ही पार्टी का विस्तार देखने को मिला। पीएम मोदी ने दिल्ली आने के बाद ही नारा दिया था, ‘सबका साथ सबका विकास’।

इसके बाद बदलते वक्त के साथ पिछले दस वर्षों में बीजेपी अपने इस नारे में सबको समाहित करने के प्रयास करती रही, जिसके चलते पीएम मोदी ने ‘सबका विश्वास’ और फिर ‘सबका प्रयास’ को भी अपने मूल नारे में जोड़ दिया। बीजेपी अब सीधे तौर पर अल्पसंख्यकों को भी लुभाने के प्रयास कर रही है। इसी के चलते उसने केरल से एक मुस्लिम प्रत्याशी को भी टिकट दिया गया है।

बीजेपी पर लंबे वक्त तक यह टैग रहा कि वह अल्पसंख्यक विरोधी पार्टी है, जिसके चलते उसे गठबंधन करने तक में मुश्किलें आती थीं। कई राजनीतिक दल उसे अछूत तक मानते थे, जिसके चलते बीजेपी अब ऐसे मुद्दों से खुद को दूर रखने के प्रयास करती दिख रही है, जिससे उसकी छवि मे बदलाव हो सके। संभवतः यही कारण है कि पार्टी अब अपने घोषणापत्र में आक्रामक हिंदुत्व के मुद्दों को नजरंदाज करती दिख रही है।