बीजेपी के कई दिग्गज नेता ऐसे हैं जो कि राज्यसभा के जरिए संसद आते हैं और वहीं से उन्हें मोदी सरकार में मंत्री पद भी मिलता है। 2014 हो या 2019, मोदी कैबिनेट में ऐसे कई मंत्री हुए जो कि राज्यसभा के जरिए ही संसद सदस्य थे लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद संभवतः यह स्थिति पलटती हुई नजर आ सकती है। इसके संकेत 56 सीटों के लिए होने वाले राज्यसभा चुनावों के लिए बीजेपी द्वारा घोषित उम्मीदवारों के नाम से मिलने लगे हैं। खास बात यह है कि बीजेपी द्वारा घोषित 28 उम्मीदवारों में से 24 नए चेहरे हैं। इसीलिए यह अनुमान लगाया जाने लगा है कि मोदी कैबिनेट में राज्यसभा के जरिए बैकडोर से एंट्री की संभावनाएं न के बराबर हो सकती है।

दरअसल, 27 फरवरी को होने वाले राज्यसभा चुनावों के लिए बीजेपी ने अपने 28 प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। इनमें से 24 नए चेहरे हैं और 4 मौजूदा सांसदों को रिपीट किया गया है। उन चार सांसदों की बात करें तो पहला नाम पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा का है, दूसरा नाम रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव, तीसरा नाम मंत्री एल मुरुगन और आखिरी नाम राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी का है। इसके अलावा सभी के टिकट कटे है जिनमें कई दिग्गज मंत्रियों के नाम शामिल हैं।

मंत्रियों का राज्यसभा से कटा पत्ता

राज्यसभा से मोदी कैबिनेट शामिल नेताओं की बात करें तो इसमें मनसुख मंडाविया, धर्मेंद्र प्रधान, भूपेंद्र यादव, नारायण राणे और पीयूष गोयल जैसे कद्दावर नेताओं का नाम शामिल है। ऐसे में स्पष्ट है कि इन सभी नामों को लोकसभा से जीतकर आना होगा। इसके अलावा बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी, अनिल बलूनी और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पांडे को भी राज्यसभा के लिए रिपीट नहीं किया गया है। ऐसे में यह भी देखना दिलचस्प होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ मिलकर इन नेताओं के लिए क्या रणनीति बनाते हैं।

जनता के बीच खुद को साबित करना होगा

राज्यसभा से कैबिनेट में आने वाले मंत्रियों के लोकसभा चुनाव लड़ने की पूरी संभावनाएं हैं। केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ओडिशा, स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया गुजरात, पीयूष गोयल केरल, भूपेंद्र यादव हरियाणा या राजस्थान की किसी एक सीट से लोकसभा चुनाव में उतर सकते हैं। इसके अलावा नारायण राणे को भी महाराष्ट्र की किसी एक सीट से चुनाव लड़ने को कहा जा सकता है। इन नेताओं को जनता के बीच जाकर मोदी सरकार के काम गिनाने होंगे और वोट लेकर जीत के साथ वापस आना होगा, वरना इनके सियासी फ्यूचर पर भी खतरा मंडरा सकता है।

इन्हें भी लड़ाया जा सकता है चुनाव

माना ये भी जा रहा है कि भले ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का राज्यसभा कार्यकाल खत्म न हुआ हो लेकिन फिर भी पार्टी उन्हें तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से अपनी प्रत्याशी बना सकती है। इसको लेकर पूर्व सहयोगी अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन के मुद्दे पर बातचीत भी की जा रही है। इसी प्रकार विदेश मंत्री एस जयशंकर को लेकर भी खबरें हैं कि वे भी कर्नाटक या दिल्ली की किसी सीट से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं।

ऐसा नहीं है कि बीजेपी ने राज्यसभा सांसदों को लेकर अचानक ही कोई फैसला लिया है बल्कि इसकी प्लानिंग काफी पहले से ही हो गई थी। इसका उदाहरण पीएम मोदी का पिछले साल का बयान है। पीएम मोदी ने पिछले साल अगस्त में एनडीए सांसदों की बैठक में कहा था कि प्रत्येक राज्यसभा सांसद को कम से कम एक लोकसभा चुनाव लड़ना चाहिए, ताकि उन्हें चुनावों का अनुभव हो सके। वहीं पार्टी में अंदर खाने यह भी संदेश भेजा गया था कि राज्यसभा से आने वाले सांसद अपने लिए फेवरिट लोकसभा सीट भी चुन सकते हैं।

नकवी की गलती, सांसदों को सबक!

गौर करने वाली बात यह भी है कि यूपी की रामपुर सीट पर हुए लोकसभा उपचुनावों के दौरान बीजेपी ने तत्कालीन राज्यसभा सांसद और अल्पसंख्यक मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को लड़ने का प्रस्ताव दिया था लेकिन उन्होंने हार के डर से चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। बाद में बीजेपी वो सीट जीत गई लेकिन इसका बड़ा झटका नकवी साहब को ही लगा था। माना जाता है कि बीजेपी की पकड़ होने के बावजूद नकवी का उस सीट पर लड़ने से मना करना पार्टी हाई कमान को रास नहीं आया था। इसीलिए उन्हें दोबारा राज्यसभा नहीं भेजा गया। नकवी के साथ जो कुछ भी हुआ वो अन्य नेताओं के लिए सबक बन गया था और उसी के बाद से ज्यादातर राज्यसभा से आने वाले मंत्री भी अपने लिए लोकसभा की सेफ सीट ढूंढने लगे थे।